लिवर और किडनी के लिए बेहद फायदेमंद होता है शहतूत, जानिए इसके फायदे

शहतूत फल देखने में रोचक तो है ही, गुणों के मामले में भी कम नहीं है. कई ‘रंग’ है इसके. इस खट्टे-मीठे, टेढ़े-मेढ़े फल की विशेषता यह है कि यह किडनी और लिवर के लिए लाभकारी है.

Update: 2022-07-01 08:51 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शहतूत फल देखने में रोचक तो है ही, गुणों के मामले में भी कम नहीं है. कई 'रंग' है इसके. इस खट्टे-मीठे, टेढ़े-मेढ़े फल की विशेषता यह है कि यह किडनी और लिवर के लिए लाभकारी है. इस फल की कुछ और कहानियां भी हैं. कहीं इसे ज्ञान की देवी के साथ जोड़ा जाता है तो कहीं पर इसका जुड़ाव शैतान के साथ माना गया है. शहतूत के पेड़ को आलसी भी कहा जाता है.

इतने रंग शायद ही किसी और फल में नजर आएं
शहतूत के फल को ध्यान से देखिए, इसके मोटे, गदगदे आवरण में कई रंग दिखाई देंगे. नारंगी, लाल, बैंगनी, काले, पीले, नीले रंग. ऐसा लगेगा, जैसे यह रंग शहतूत से फूट रहे हैं. दुनिया का शायद ही कोई ऐसा फल होगा, जिसमें इतने अधिक रंग भरे हुए हैं. यही रंग इसमें खट्टा मीठा-फीका स्वाद भरते हैं, लेकिन ये स्वाद भी और फलों से अलग रंगत लिए हुए होते हैं. बहुत कम समय में यह फल नजर आता है, लेकिन अपनी पूरी छाप छोड़ता है. इसमें भरी क्वॉलिटी को देखते हुए अब तो शहतूत को खाने के साथ-साथ सिरप, जैम, आइसक्रीम, जेली, जूस, वाइन, सिरका व पाई फिलिंग आदि के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा है.
इसकी उत्पत्ति को लेकर कई विचारधाराएं हैं
शहतूत की उत्पत्ति को लेकर दो-तीन विचार-धाराएं हैं. एक का कहना है कि यह पृथ्वी के उर्वर अर्धचंद्र (Fertile Crescent) क्षेत्र जैसे तुर्की, इजरायल, सीरिया, जॉर्डन लेबनान, ईराक, तुर्कमेनिस्तान से निकला है. एक तर्क यह दिया जाता है कि शहतूत असल में चीन की उपज है और वहां 3500 ईसा पूर्व से इसकी खेती के अलावा रेशम भी बनाया जा रहा है. तीसरा अध्ययन यह कहता है कि शहतूत की जड़ें संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़ी है, जहां से यह मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना की ओर बढ़ा. भारत में इसका पेड़ कब पला-बढ़ा, इसके कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है. लेकिन कयास लगाए जाते हैं कि यह चीन से हिमालयी क्षेत्र में पहुंचा, उसके बाद इसने भारत के अन्य क्षेत्रों में प्रवेश किया. वैसे भारत के प्राचीन धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में शहतूत का कोई वृतांत्त नहीं हैं.
इस पेड़ को लेकर हैं कई किवदंतियां
इन सबके बावजूद इसमें दो-राय नहीं है कि शहतूत का पेड़ बहुत प्राचीन है. इसाइयों के धर्मग्रंथ बाइबिल में विशेष संदर्भ में इसका वर्णन किया गया है. जर्मनी में शहतूत को बुरी आत्माओं से जोड़ा जाता है. वहां की प्राचीन मान्यता के अनुसार शैतान अपने जूतों को चमकाने के लिए शहतूत के पेड़ की जड़ का उपयोग करता है, ताकि उसमें अति बल पैदा हो जाए. शहतूत प्राचीन यूनान में विशेष लोकप्रिय था, क्योंकि यह ज्ञान की देवी मिनर्वा को समर्पित था. उज्बेकिस्तान में शहतूत के पेड़ को एक पवित्र लेकिन रहस्यमय पेड़ माना जाता था. इसके पेड़ काटना पाप माना जाता है. इसे आलसी पेड़ भी कहा जाता है. उसका कारण यह है कि यह बिना किसी मेहनत से किसी भी मिट्टी या चट्टान पर भी उग जाता
विटामिन सी, आयरन का अच्छा स्रोत
गुणों को लेकर शहतूत भरपूर है. यह फल विटामिन सी, विटामिन के और आयरन का बहुत अच्छा स्रोत है और आहार फाइबर, राइबोफ्लेविन (रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक), मैग्नीशियम और पोटेशियम का एक अच्छा स्रोत है. इसमें कार्बोहाइड्रेट भी होता है जो शर्करा को ग्लूकोज में बदलता है. इसमें आयरन भी होता है जो ऊत्तकों को ऑक्सीजन पहुंचाने में मददगार है. आहार विशेषज्ञ व पोषण सलाहकार रमा गुप्ता के अनुसार 100 ग्राम शहतूत में 43 कैलोरी होती है. इसके सेवन से पाचन शक्ति अच्छी रहती है. सर्दी जुकाम होने पर अगर इसे खाया जाए तो यह लाभकारी रहता है. यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है और बढ़ती उम्र के लक्षणों को जल्दी आने से भी रोकता है. इसकी विशेषता यह भी है कि लिवर से जुड़ी बीमारियों में राहत मिलती है. साथ ही यह किडनी के लिए भी बहुत फायदेमंद है.
इसके पत्ते भी शरीर के लिए लाभकारी हैं
इसके पत्तों को रगड़ें तो उसमें अलग प्रकार की गंध निकलती है. पत्तों की यही गंध घाव या फोड़े में लगाने पर आराम पहुंचाती है. इसकी पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से गरारे किए जाएं तो गले की खराश तो दूर होगी ही, साथ ही मुंह की बदबू से भी फायदा होगा. अगर शहतूत ज्यादा खा लिया तो समस्या भी हो सकती है. ज्यादा सेवन से अपच, पेट दर्द, डायरिया, उल्टी, पेट फूलने की समस्या भी हो सकती है. मधुमेह के रोगियों को इसके सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि यह शुगर का लेवल कम कर सकता है. इसका ज्यादा सेवन स्किन में एलर्जी भी पैदा कर सकता है.
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