लाइफस्टाइल; बच्चे की आंखें खराब कर सकती है मोबाइल फोन की लत स्मार्टफोन आजकल घर और परिवारों में एक चिंता का कारण बन गया है। हर दूसरे माता-पिता की शिकायत है कि उनके बच्चे को फोन देखने की आदत लग गई है। अगर उन्हें ऐसा न करने दिया जाए तो वो चीखने और चिल्लाने लगते हैं। इतना ही नहीं बच्चों को ये लत शारीरिक और मानसिक तौर पर बीमार बना रही है।
इस डिजिटल युग में मोबाइल हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। इसके बिना इस दौर के जीवन की कल्पना करना भी असंभव सा लगता है। एक दौर में बातचीत के लिए बना आसान जरिया ये छोटा सा डिवाइस आजकल के परिवारों में चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि बातचीत के अलावा मोबाइल पर सभी काम किए जाते हैं, फिर वो चाहे ईमेल भेजना हो, वीडियो कॉल करना हो, फिल्में देखना हो या फिर तमाम तरह के बिल भरने हों। हालांकि इन कामों के साथ जिंदगी आसान हुई है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन इसी मोबाइल फोन ने जो चिंता खड़ी की है वो है इसकी लत, जो न सिर्फ युवा, वयस्क और बुजुर्गों में बल्कि बच्चों में सबसे अधिक देखी जा रही है।
आज हर दूसरे माता-पिता की चिंता है उनके स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे की मोबाइल फोन देखने की लत, जो इतनी बुरी है कि अगर उनसे फोन ले लिया जाए तो वो रो-रोकर अपनी हालत तक खराब कर लेते हैं। इतना ही नहीं फोन देखने से मना करने पर बच्चों द्वारा खुद को नुकसान पहुंचाए जाने के मामले भी सामने आए हैं। (बीते कुछ समय पहले महानगर मुंबई में 16 साल के बच्चे ने खुद को इसलिए फांसी लगा ली क्योंकि उसके पिता ने उससे फोन छीन लिया। मृतक बच्चे को ऑनलाइन गेमिंग की लत थी, जिस वजह से उसके परिजन परेशान थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बच्चे की एक मेडिकल हिस्ट्री रही है, जिसमें बताया गया कि फोन इस्तेमाल नहीं करने देने पर बच्चा परेशान हो जाता था)।
क्यों बच्चों को लग रही है मोबाइल फोन की लत
बच्चों के हाथ में खिलौनों की मोबाइल होने के पीछे का कारण माता-पिता और घर के बड़े लोग ही हैं। क्योंकि न सिर्फ 5 या 6 साल के बच्चों में ये लत है बल्कि 1 और 2 साल के बच्चे भी मोबाइल फोन में आंखें गड़ाए नजर आते हैं। यहां तक की कई माता-पिता 1 साल या उससे भी छोटे बच्चे को चुप कराने के लिए मोबाइल फोन में कार्टून या कविताएं चलाकर उनके सामने रख देते हैं, जो एक बहुत बड़ी गलती है। माता-पिता का ऐसा करने की वजह कहीं न कहीं उनकी व्यस्तता से भरी जिंदगी, एकल परिवारों का होना और उनका खुद मोबाइल फोन देखना और रील्स स्क्रॉल करना है। यही कारण बच्चों में मोबाइल फोन की लत के जिम्मेदार हैं। जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है वो फोन की लत का शिकार हो चुका होता है। ऐसे में आपका बच्चा न सिर्फ खाना खाते हुए बल्कि सोते हुए भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल करता है, जो उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य एवं विकास के लिए हानिकारक है।
स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर हैरान करते हैं आंकड़े
अति हर चीज की घातक है और लत जानलेवा तक होती है, इस बात को हम सभी जानते तो हैं लेकिन मानते नहीं हैं। तभी तो मोबाइल फोन के दुष्प्रभावों से अवगत होते हुए भी हम अपने बच्चों के हाथ में उसको थमा देते हैं। अगर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की साल 2021 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में 59.2 प्रतिशत बच्चे मैसेज भेजने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते थे, जिसमें पढ़ाई से जुड़े मैसेज भेजने वाले सिर्फ 10.1 प्रतिशत बच्चे थे। वहीं 8 से 18 साल के 20 प्रतिशत बच्चे सोने से पहले बिस्तर पर स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा 10 साल के 37.8 प्रतिशत बच्चों के फेसबुक और 24.3 बच्चों के इंस्टाग्राम पर अकाउंट थे। जाहिर है बढ़ते सालों के साथ ये आंकड़ा भी बढ़ा होगा।
होते हैं ये नुकसान
स्मार्टफोन का बहुत अधिक इस्तेमाल करने से बच्चे न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर बीमार रहे हैं। साथ ही उनका सामाजिक विकास अवरुद्ध रहा है, जिस वजह से बच्चा अकेला रहने लगता है। अगर आपका बच्चा या आपके घर में भी बच्चों को स्मार्टफोन देखने की लत है तो जल्द से जल्द उनकी इस आदत में सुधार करना आवश्यक है। स्मार्टफोन इस्तेमाल की आदत बच्चे को निम्नलिखित बीमारियों का शिकार बना सकती है-
दिल से जुड़ी बीमारी: स्मार्टफोन की लत बच्चों में शारीरिक गतिविधियों की कमी ला देती है, जिस वजह से उन्हें दिल से जुड़ी समस्या होने का खतरा बना रहता है।
मोटापे का शिकार: कई बच्चे स्मार्टफोन चलाते वक्त लम्बे समय तक बैठे या लेते रहते हैं जो उनमें मोटापे को बढ़ाता है। इतना ही नहीं कई बच्चे तो फोन स्क्रीन में आंखें गड़ाए रहते हैं और वो कितना और क्या खा रहे हैं, उसका भी ध्यान नहीं रखते।
आक्रामक हो रहे बच्चे: आजकल मोबाइल का अधिक इस्तेमाल के कारण बच्चों में स्पीच डेवलपमेंट नहीं हो पा रहा, जिस कारण वे चिड़चिड़े होने लगे हैं। चिड़चिड़ापन अधिक बढ़ने के कारण बच्चे आक्रामक तक हो जाते हैं।
एकाग्रता की कमी: बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम उनकी एकाग्रता को उच्च स्तर पर प्रभावित कर रहा है। एनसीपीसीआर की साल 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अक्सर मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले 37.15 प्रतिशत बच्चे एकाग्रता की कमी महसूस कर रहे हैं।
ऑटिज्म का शिकार: ऑटिज्म बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है। ऐसे में मोबाइल फोन का इस्तेमाल 3 से 5 साल के बच्चों को इस रोग का शिकार बना रहा है। इस रोग में पीड़ित बच्चे का तुलनात्मक विकास सामान्य बच्चों के मुकाबले बहुत धीरे होता है।
पारिवारिक संस्कारों से दूरी: फोन की लत बच्चों को परिवार के लोगों से दूर कर रहा है। बच्चे अपनी ही दुनिया में मस्त रहने लगते हैं। अगर माता-पिता उनकी इस दुनिया में दखल करें तो वे चिड़चिड़े और अभद्र व्यवहार करने लगते हैं।
आंखों में समस्या: लम्बे समय तक स्क्रीन पर बने रहने से आंखों पर नकारात्मक असर पड़ता है। साथ ही आंख में रूखापन या पानी आने की समस्या आने लगती है। लगातार यही स्थिति ग्लूकोमा का कारण बन सकती है। यही कारण है कि भारत में बहुत ही कम उम्र में बच्चों को आंखों से संबंधित समस्याएं होने लगी हैं।
माता-पिता करें खुद में बदलाव
बच्चों में सुधार से पहले घर के बड़ों को अपनी फोन देखने की आदत में बदलाव करना होगा क्योंकि बच्चा चाहे एक साल का हो या 10 साल का वे अपने बड़ों की आदतों को ही अपनाता है। अगर आपके पास समय है तो आप फोन को छोड़कर बच्चे के साथ समय बिताएं। उससे उसके दिन से जुड़ी बाते करें। थोड़ी उनकी सुने, कुछ अपनी कहें।
इन तरीकों से पाएं समाधान
समय करें निर्धारित: बच्चे के लिए फोन इस्तेमाल का समय निर्धारित करें। समय निर्धारित करने का मतलब ऐसा कुछ भी नहीं है कि आप बच्चे के इंटरनेट इस्तेमाल पर ध्यान न दें।
बनाएं स्क्रीन फ्री एरिया: अक्सर देखा जाता है कि घर में लोग घर के हर हिस्से में मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं। ऐसे माहौल का बच्चे पर काफी असर होता है, इसलिए अपने घर में एक ऐसी जगह बनाएं जहां फोन का इस्तेमाल बैन हो। ये जगह आपका होम गार्डन हो सकता है, घर का लिविंग एरिया हो सकता है, डिनर टेबल हो सकता है। परिवार के लोग एक साथ बैठकर एक-दूसरे के साथ समय बिता सकते हैं।
आउटडोर गेम्स के लिए करें प्रेरित: आजकल एंड्राइड फोन में तमाम तरह के ऑनलाइन गेम्स हैं, जो न सिर्फ उनकी इस लत का कारण बनता है, बल्कि के विकास को भी प्रभावित करता है। इसलिए जरूरी है बच्चों को आउटडोर गेम्स के लिए प्रेरित किया जाए। एक कमरे की जगह बच्चों को खुला मैदान दें, उन्हें भागने-दौड़ने दें।
सुने उनकी समस्याएं: बच्चों का मोबाइल फोन की तरफ तब और अधिक झुकाव हो जाता है जब घर में कोई उन्हें सुनने वाला नहीं होता। इसलिए रोजाना बच्चें के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का प्रयास करें।
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