लाइफस्टाइल: ये कोई उम्र है, शादी करने की। समाज क्या कहेगा?" मुदिताजी और संदेशजी एक साथ बोले।"पापाजी, शादी करने की कोई उम्र नहीं होती और समाज?? आपका समाज तो हम बच्चे हैं। और जब आपका समाज मतलब हम सभी बच्चे चाह रहे हैं तो आपको क्यों ऐतराज है?" बड़ी बेटी निशा बोली जिसे सभी ने जोर से यह कह कर स्वीकृति दे दी कि सही तो कह रही।"नानी, प्लीज आप और नानू शादी कर लो ना। फिर मैं अपने दोस्तों के आगे गर्व से पूछूंगा कि अपने नाना-नानी की लाइव शादी किसी ने देखी है?" निशा के बच्चे आरव-चीनू भी अपनी जिद लेकर आ गए तो सबसे छोटा पोता डुग्गु क्यों पीछे रहता। वो भी शुरु हो गया,"वॉव ! दादा-दादी की शादी...इट्स अमेजिंग। मैं तो दादाजी की तरफ रहूंगा और बाराती बनकर घोड़े के आगे नागिन डांस करूंगा।""घोड़ा नहीं, घोड़ी... नानाजी घोड़ी पर बैठकर आएंगे और हम सब नानी की तरफ से रहेंगे और बारात का स्वागत करेंगे" छोटी बेटी दिशा की बेटी दिया भी अपनी इच्छा बताने लगी।
थोड़ी देर में ही मुदिताजी और संदेशजी अपने ही कमरे में चुपचाप एक कोने में बैठे थे और दोनों बेटी-दामाद और बेटा-बहू और चार नाती और एक पोता उनकी 50वीं शादी की सालगिरह को यादगार बनाने की तैयारी करने लगे और इस तैयारी के बीच बहू पूजा ने बताया कि फोटोग्राफर से बात हो गयी है कल वो मम्मीजी-पापाजी की प्री-वेडिंग की फोटो शूट करने आएगा। सभी जोर-जोर से ताली बजाने लगे और मुदिताजी शरम से दोहरी हुयी जा रही थी और संदेशजी अपने बच्चों के प्यार और सम्मान को देख कर गर्वित महसूस कर रहे थे।संदेशजी ने धीरे से मुदिताजी का हाथ पकड़ा और प्यार से बोले,"थैंक यू मुदिता! यह सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी परवरिश और तुम्हारे दिए संस्कार का फल है जो हमारे बच्चे हमारे साथ है। वरना उम्र के इस पड़ाव में अधिकतर बच्चे अपने माता-पिता का साथ छोड़ देते है।""ना जी, इसमें आपकी तपस्या भी जुड़ी है... आपका मुझ पर विश्वास करना ही मेरी सबसे बड़ी ताकत थी। वरना आपके एक उस फैसले ने मेरी जिन्दगी में तूफान खड़ा कर दिया था" मुदिताजी बीती बात को याद करके बोलीं।"लेकिन देखो न वो तूफान आज मीठा पानी बनकर हम सबके साथ बह रहा है" बच्चों की तरफ इशारा करते हुये संदेशजी मुस्कुराकर बोले।संदेशजी सरकारी नौकरी में होने के कारण शादी के बाद अधिक समय शहर से बाहर गावों, कस्बों या तहसील में ही रहें। जब तक बच्चे पढ़ने लायक नहीं हुए मुदिताजी साथ में ही रहती थी। बच्चों के बड़े होने पर उनकी उचित शिक्षा के लिए संदेशजी ने शहर में घर बनवा दिया और मुदिताजी से कहा कि तुम बच्चों की शिक्षा के लिये शहर में ही रहो। मैं महीने के हर दूसरे शनिवार की छुट्टी में घर आता रहूंगा। पहले मुदिता तैयार नहीं हुयी कि बिना आपके अकेले कैसे करूंगी। फिर एक-दूसरे की ताकत बनकर एक साथ जीवन बिताने की इच्छा मन में दबा कर बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए दूर-दूर रहने लगे। और देखते-देखते बच्चों की पढ़ाई, शादी सब काम पूरे हो गए। रिटायर होकर संदेशजी जब वापस आए, तब तक चार बच्चों के नाना-नानी और एक पोता के दादा-दादी बन चुके थे।
रिटायरमेंट के साथ ही 50वीं सालगिरह भी आ गयी। यह सबसे अच्छी बात रही कि शादी जून के महीने में थी। सभी बच्चों की गर्मी की छुट्टियां थी। दोनो बेटी और दामाद और दोनों के बच्चे सभी आ गए थे। सभी ने मिलकर फैसला किया कि मम्मी-पापा की शादी होगी,फिर से।घर में शादी का माहौल हो गया। सभी रिश्तेदारों को सूचित कर दिया गया। कुछ ने कहा "वाह क्या बात है!!!"... कुछ ने कहा"शादी इस उम्र में???"... कुछ ने बच्चों के काम को सराहा और कुछ ने नए ज़माने के चोंचले कहा। अब सबकी राय एक जैसी तो हो नहीं सकती इसी को तो समाज कहते हैं। लेकिन हां आए सभी रिश्तेदार क्योंकि शादी किसी की भी हो, शादी के रस्मों का मजा और शादी का खाना खाने का लुत्फ कोई नहीं छोड़ना चाहता।