सदियों से अपने स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण हमारे खानपान समेत, कई आयुर्वेदिक औषधियों, कारगर घरेलू नुस्ख़ों में शामिल रहा शहद पिछले दिनों ख़बरों में रहा. हालांकि कारण अच्छा नहीं कहा जा सकता, यानी हमारे देश में तमाम ब्रैंड्स द्वारा मिलावटी शहद बेचे जाने के कारण शहद सुर्खिर्यों में रहा. शहद से जुड़ी इन नकारात्मक ख़बरों का एक सिल्वरलाइन या कहें कि अच्छा पक्ष यह भी रहा कि अब बाज़ार में बिना मिलावट वाला शहद पहले की तुलना में अधिक मिलेगा. ख़ैर, हमारा यह लेख लिखने का उद्देश्य था, शुद्ध शहद के उन फ़ायदों के बारे में बताना, जिसके बारे में हम बचपन से सुनते आए हैं. उसके पहले हम शहद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां और उसमें मौजूद पोषक तत्वों की भी पड़ताल करना चाहेंगे.
दुनियाभर में शहद से जुड़ी कुछ रोचक बातें
भारत समेत दुनियाभर में प्राचीन काल से ही शहद के महत्व को स्वीकार किया गया है. हमारे वेदों में शहद का गुणगान किया गया है. उनमें लिखा गया है कि वैदिक काल में लोग मादक सुरा के साथ शहद का सेवन किया करते थे. अरबी साहित्य में तो शहद पर कई कविताएं लिखी र्ग हैं. मशहूर अरबी कवि हाफ़िज़ की कविताओं में शहद का वर्णन पढ़ने मिलता है. मिस्र में भी विभिन्न प्रकार की औषधियों के निर्माण में शहद का उपयोग किया जाता था. प्राचीन यूनान में शहद अत्यधिक लोकप्रिय था. ओलिम्पिक खेलों में कड़ी मेहनतवाली कसरतों के बाद पुनः शक्ति अर्जित करने के लिए शहद का ख़ूब उपयोग किया जाता था. यूरोपीय औषधि-विज्ञान के जनक यानी मेडिकल साइंस के पिता माने जानेवाले हिपोक्रेट्स का विश्वास था कि शहद दीर्घायु प्रदान करता है. अत: वे अपने मरीजों को शहद लेने की सलाह देते थे. भारत में वाग्भट्ट के अनुसार शहद आंख के लिए बहुत उपयोगी है. आज भी आंख की विविध आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में शहद का उपयोग किया जाता है.
शहद के पोषक तत्व
मधुमक्खियां फूलों का रस चूस कर उसे शहद के छत्ते में संचित करती हैं. एक किलो शहद इकट्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को दो से पांच लाख फूलों का चक्कर काटना पड़ता है. कभी-कभी तो उन्हें फूलों की खोज में अपने स्थान से दो-दो मील दूर तक भटकना पड़ता है. शहद के छत्ते में एकत्र फूलों के रस में शुरुआत में 75% भाग पानी का होता है. पर जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, पानी का अधिकांश भाग बाष्पित हो जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान शहद में सिर्फ़ 20% ही पानी रह जाता है.
शुरुआत में मधुमक्खियों द्वारा फूलों से जमा किए गए रस में जो शुगर होता है, वह गन्ने में पाई जानेवाली शुगर की तरह होता है. पर छत्ते में एकत्रित करने के बाद उसमें रासायनिक परिवर्तन होते रहते हैं. गन्ने में पाई जानेवाली शुगर का रूपांतरण द्राक्ष यानी अंगूर में पाई जानेवाली शुगर और फलों के शुगर में हो जाता है. बाद में केवल 1.9% ही गन्ने की शुगर रह जाता है. शहद में 20% पानी के अलावा 76.4% शुगर होती है (40.5% फलों की शुगर, 34% द्राक्ष शुगर और 1.9% गन्ने की शुगर). इसके अलावा डेक्सट्रीन, आयरन, फ़ॉस्फ़ोरस, कैल्शियम, सोडियम, पोटैशियम, सल्फ़र, मैग्नीज़ जैसे मिनरल्स पाए जाते हैं.
शहद के फ़ायदे
शहद मूलभूत रूप में शुष्क होता है, अत: यह कफ़ को दूर करता है. मोटापा कम करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है. शहद यह कामोद्दीपक है, काम शक्ति को जगाता है. पुंसत्व में वृद्धि करता है. आयुर्वेद में शहद को ‘योगवादी’ माना गया है. अर्थात् जिस औषधि में शहद का मिश्रण किया जाता है, उस औषधि की रोग-निवारक शक्ति में वृद्धि हो जाती है. शहद पचाने में आसान है, यही कारण है कि इसके सेवन से हमें तुरंत ऊर्जा मिलती है. शहद के नियमित सेवन से हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है. अपच, पेट की सूजन और एसिडिटी जैसे पेट संबंधित तक़लीफ़ों में भी शहद का सेवन फ़ायदेमंद होता है. बुख़ार में जब रोगी भोजन न कर पाने के कारण अशक्त हो जाता है, तब उसे ऊर्जा देने के लिए शहद खिलाने की सलाह दी जाती है. टायफ़ॉइड और न्यूमोनिया में भी शहद के सेवन की सलाह दी जाती है.
शहद में जीवाणुनाशक गुण पाए जाते हैं, यही कारण है कि जब टीबी की बीमारी की दवा नहीं बनी थी, तब टीबी के रोगियों को शहद दिया जाता था. मरीज़ों को कफ़ से राहत मिलती थी और उनका वज़न भी बढ़ता था. अल्सर होने पर शहद का लेप करने से घाव ठीक हो जाते हैं. मूत्र संबंधी बीमारियों, गठिया और वात रोगों में भी शहद दवा का काम करता है.
बेशक शहद कई बीमारियों में लाभदायक है. पर किसी भी गंभीर बीमारी में इसका सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर या किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह ज़रूर ले लें.