मालिश निष्क्रिय व्यायाम का एक रूप है। यह प्राकृतिक चिकित्सा का ऐसा महत्त्वपूर्ण साधन है, जो आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मददगार है। कैसे करें मालिश तथा कैसे यह हमें स्वस्थ रखने में सहायक है, जानने के लिए पढ़ें यह लेख। मालिक त्वचा की शुष्कता को दूर करती है, जिससे त्वचा की स्निग्धता व कोमलता बढ़ जाती है। मालिश द्वारा रक्त-संचार तीव्र होने से त्वचा में गुलाबी रंगत आती है और त्वचा का वास्तविक रंग निखरने लगता है।
रक्त-संचार के बढ़ने से त्वचा की अंदरूनी सतहों को पूर्ण पोषण प्राप्त होता है और नवीन स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण कार्य के तीव्र होने से त्वचा की स्वस्थ सतह जल्दी उभरने लगती है। मांसपेशियों का ढीलापन दूर होता है और मानसिक व शारीरिक तनाव से राहत मिलती है। रक्त-संचार तीव्र होने से त्वचा के भीतर जमा विषैले तत्त्व शरीर से बाहर निष्कासित हो जाते हैं।मालिश से तैलीय ग्रंथियों के कार्य में और रोम-छिद्रों में जमे तेल को त्वचा की सतह पर आने में मदद मिलती है। इससे त्वचा पर झुर्रियां जल्दी नहीं आती, मालिश मांसपेशियों को पुष्ट करती है, जिससे त्वचा का कसाव बढ़ जाता है।
चेहरे की मालिश हाथों द्वारा की जाती है। इसके अतिरिक्त आजकल मालिश करने के लिए अनेक उपकरण भी मिलते हैं। वैसे उपकरणों की तुलना में हाथों द्वारा ही चेहरे की सही व अच्छी मालिश हो सकती है। हथेली व उंगलियां, मांसपेशियों की बनावट के अनुसार मसाज करने से अधिक सक्षम होती हैं। उपकरण इस कार्य को करने में पूर्णतया असमर्थ होते हैं। इनके द्वारा की गई मालिश से केवल रक्त-संचार ही तीव्र हो सकता है। नाजुक मांसपेशियों को उचित दवाब व कसाव केवल हाथों द्वारा ही दिया जा सकता है। हथेली द्वारा चेहरे के हर भाग पर दवाब को कम व ज्यादा कभी भी किया जा सकता है। आंखों के आस-पास की त्वचा को सबसे कम दवाब की जरूरत होती है। मालिश करने का अर्थ चेहरे को रगड़ना या मसलना नहीं है, मालिश सदा हल्के दवाब के साथ उंगली व हथेलियों को मांसपेशियों पर फिसलाते हुए करनी चाहिए।
त्वचा की मालिश के प्रकार सभी प्रकार की त्वचा चाहे वह खुश्क हो या तैलीय, 25 वर्ष की आयु हो या 35 वर्ष की, सभी को मालिश से पूरा लाभ मिलता है। त्वचा पर झुर्रियां हों या झांइयां, सभी में मालिश पूर्ण उपचार का कार्य करती है। केवल मुंहासों व एक्नो से ग्रस्त त्वचा पर किसी भी प्रकार की चिकनी क्रीमों द्वारा मालिश करना उचित नहीं है। मालिश करने से पूर्व त्वचा की प्रकृति देखकर ही मालिश का समय, मालिश के लिए प्रयुक्त होने वाली क्रीम या तेल का निर्धारण करना चाहिए। इसके लिए त्वचा को दो वर्गों में रखा जा सकता है।
अधिक तैलीय त्वचा इस प्रकार की त्वचा पर सप्ताह में एक या दो बार मालिश करनी चाहिए तथा इसके लिए पानी में घुलनशील क्रीमों को ही प्रयोग में लाएं। तैलीय त्वचा पर मालिश के बाद किसी अच्छे फेस-पैक का प्रयोग करना जरूरी है, ताकि त्वचा पर बढ़ी हुई अनावश्क चिकनाई कम की जा सके।
अधिक खुश्क त्वचा अधिक खुश्क त्वचा में तैलीय ग्रंथियां मंद गति से कार्य करती हैं, अत: इस कारण त्वचा की सतह पर आवश्यक चिकनाई का अभाव होता है। अत: ऐसी त्वचा की नियमित रूप से प्रतिदिन 2 मिनट मालिश करना आवश्यक है। मालिश के लिए किसी अच्छी क्रीम या बादाम व जैतून के तेल का प्रयोग भी किया जा सकता है। मालिश के बाद चेहरे से फालतू क्रीम या तेल को सदैव गीली रुई से पोंछकर अवश्य हटा देना चाहिए। मालिश 2 से 3 मिनट तक की जा सकती है। रात को सोने से पूर्व नियमपूर्वक मालिश करने से बहुत लाभ होता है।
चेहरे की मालिश चेहरे की मालिश झुर्रियों को दूर करती है तथा चेहरे की रंगत निखारती है। चेहरे की मालिश करते वक्त उंगलियों के पोरों को हल्के से तेल में डुबो सकते हैं। मजबूत हथेली से भौहों और केशों तक माथे को ऊपर की ओर खींचते हुए मालिश करें। तर्जनी और बीच की उंगलियों से कनपटी के दोनों ओर हल्का दबाव डालें और धीरे-धीरे 10 बार गोल-गोल घुमाएं। बीच की उंगलियों को हल्के-हल्के आंखों के चारों ओर घुमाएं। यह ध्यान रहे कि आंख की पुतली को उंगली छूने न पाए। तर्जनी और बीच की उंगलियों को नाक के किनारे से गालों की हड्डी तक पिछले दांतों तक फेरें। ऐसा कई बार करें। मुंह को खोलें और बंद करें, जिससे आपको अंदाजा हो जाए कि जबड़े की कौन सी मांसपेशियां हिलती हैं। यहां पर भी गोलाई में मालिश करें। कानों के पीछे भी हल्के हाथ से दबाएं, ऐसा दो बार करें। मजबूती से जबड़े के बाहरी हिस्से को मुंह के नीचे से कानों तक हल्के-हल्के चिकोटी काटें। ऐसा दो बार करें।
बांहों की मालिश मालिश द्वारा बांहों के ऊपरी भाग की अतिरिक्त चरबी घट जाती है। ढीला मु_ से बांहों से कलाइयों तक पहले ऊपर फिर नीचे तक हल्के-हल्के मुक्के मारें। दोनों बांहों पर 1-1 बार ऐसा करें। इसी प्रकार दोनों बांहों को कलाई से कंधे तक विशेषकर उस भाग को जहां चरबी अधिक जमी हो, हल्के-हल्के नोचें। अंत में खुली हथेली से पूरे भाग पर मजबूती से हाथ फेरें। हाथों की मालिश हाथों की मालिश से रक्त संचार और हाथों की लचक में वृद्धि होती है। अपनी उंगुलियों को जितना हो सके, फैला लें। फिर मजबूत मुट्ठी बांधें और कई बार जल्दी-जल्दी हाथ को खोलें और बंद करें।
एक हथेली को ऊपर करके दूसरे हाथ से पकड़ें और अंगूठे की सहायता से गोलाई में हथेली की मालिश करें। दूसरी हथेली पर भी इसी प्रकार दोहराएं। प्रत्येक हाथ के पीछे की ओर नाखून से कलाई तक धीरे-धीरे मालिश करें। एक बार में एक उंगली लेकर दूसरे हाथ की तर्जनी और बीच की उंगली को हल्के से खींचे। टांगों और जांघों की मालिश टांगों और जांघों की मालिश करने से अतिरिक्त चरबी घटती है। खड़े होकर ढीली मु से जांघों और कूल्हों पर मजबूती से थपथपाएं। बैठकर पैरों को सामने की ओर फैला लें। दोनों जांघों को मजबूती से गूंथे। अंत में घुटनों से लेकर अरुसंधि तक हल्के हाथ से थपथापाएं। घुटनों के चारों ओर अंगूठों की सहायता से गोलाई में मालिश करें। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराएं।
विशेष तेलों से मालिश साधारणत: सरसों या नारियल का तेल ही मालिश के लिए उपयोगी माना जाता है, परन्तु अलग-अलग रोगों में विशेष तेलों से मालिश करके लाभ उठाया जा सकता है। ये विशेष तेल, नारियल के तेल को अलग-अलग रंग की बोतलों में भरकर सूर्य की किरणों की उपस्थिति में तैयार किए जाते हैं। इसके लिए विशेषत: चार रंगों का प्रयोग किया जाता है- लाल, हल्का, नीला और हरा। इन रंगों की बोतलों में तैयार तेल अलग-अलग रोगों में प्रभावकारी होते हैं।
लाल रंग की बोतल में तैयार किए हुए तेल का प्रभाव बहुत गर्म होता है। जहां गर्मी देने की व हरकत पैदा करने की आवश्यकता होती है, वहां ये तेल बहुत काम करता है। हल्के नीले रंग की बोतल में तैयार किए गए तेल का प्रभाव ठंडा होता है, जो सिर की मालिश या खारिश में लाभदायक होता है। जहां ठंडक की आवश्यकता होती है, वहां भी यह तेल प्रयोग किया जाता है। नीले रंग की बोतल में तैयार तेल भी ठंडा होता है। पीठ, छाती व गर्दन के रोगों में तेल की मालिश विशेष लाभ देती है। हरे रंग की बोतल में तैयार हुआ तेल कृमिनाशक होता है, जो चर्म रोग में बहुत लाभदायक होता है।
तेलों को तैयार करने की विधि आप तेल को जिस रंग में तैयार करना चाहते हैं, पहले उस रंग की एक खाली बोतल लीजिए। फिर उस बोतल में नारियल का तेल तीन भाग भर दीजिए, उसके बाद बोतल का ढक्कन अच्छी तरह बंद करके उसे किसी लकड़ी के तख्ते पर रखकर धूप में रख दीजिए। बोतल को ऐसी जगह रखना चाहिए, जहां से उस पर पूरे दिन धूप पड़ती रहे। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बोतल को किसी लकड़ी की वस्तु पर ही रखें, जमीन पर नहीं, क्योंकि जमीन पर बोतल रखने से उसमें भरे तेल में वह रासायनिक क्रिया पैदा नहीं होती, जो आप पैदा करना चाहते हैं।
सारा दिन बोतल को धूप में रखें। शाम को वहां से उठाकर अंदर कमरे में रख लें। बोतल पर चांद की चांदनी कदापि नहीं पड़नी चाहिए। इस प्रकार बोतल को कम-से-कम 40 दिन तक धूप में रखें। आपका तेल तैयार हो जाएगा। 40 दिन के अतिरिक्त आप बोतल को जितने अधिक समय तक धूप में रखेंगे, उतना ही तेल का लाभ बढ़ता जाएगा।
रोगों में विशेष तेल का लाभ कमजोर रोगियों के लिए जैतून का तेल विशेष लाभदायक होता है। यदि सिर में दर्द हो तो कद्दू रोगन, बादाम रोगन या हल्के नीले रंग की बोतल के तेल की मालिश करें, लाभ होगा। नीले रंग की बोतल का तेल नाड़ी दौर्बल्यता, नपुंसकता, शरीर में अधिक गर्मी व सूखी खारिश आदि में विशेष लाभदायक होता है। हरे रंग की बोतल का तेल छाजन, खारिश तथा अन्य चर्म रोगों में बहुत लाभकारी होता है, वैसे चर्म रोगों में अलसी का तेल भी लाभदायक होता है।
इस तेल को हरे या नीले रंग की बोतल में तैयार करके प्रयोग में लाया जा सकता है। आधा भाग नींबू का रस और आधा भाग नारियल का तेल लेकर उसे हरे रंग की बोतल में भरकर ऊपर बताए हुए ढंग से तैयार करें। जिन बच्चों को रक्ताल्पता एवं विकृत हड्डियों के रोग हों, उनकी प्रतिदिन धूप में जैतून के तेल या मछली के तेल से मालिश करें, बहुत लाभ होगा। पागलपन और हिस्टीरिया के रोगों में हल्के नीले रंग का तैयार तेल विशेष लाभ प्रदान करता है। इस तेल से सिर, गर्दन तथा पीठ की मालिश करनी चाहिए।