जानिए पालक से जुड़ी कुछ रोचक बातें..
पूरी दुनिया में पालक की ख्याति है. हरी सब्जियों में सबसे अधिक पालक ही खाया जाता है. इसकी विशेषता यह है कि यह मधुर, शीतल, पित्तनाशक और तृप्ति देने वाला है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पूरी दुनिया में पालक की ख्याति है. हरी सब्जियों में सबसे अधिक पालक ही खाया जाता है. इसकी विशेषता यह है कि यह मधुर, शीतल, पित्तनाशक और तृप्ति देने वाला है. इसमें पाए जाने वाले विटामिन्स व मिनरल्स शरीर के लिए बेहद लाभकारी हैं. इन्हीं गुणों के कारण पालक ने विश्वयुद्ध में घायल सैनिकों की जान बचाने में भूमिका अदा की थी. सालों पहले अमेरिका में पालक की 'ताकत' पर आए एक कार्टून सीरियल ने इसकी खपत 30 प्रतिशत बढ़ा दी थी. हैरानी की बात यह है कि उस दौर में बच्चों में सबसे लोकप्रिय हो गया था यह साग.
फिजिकल, मेंटल वर्क वालों के लिए है उपयोगी
शरीर को पुष्ट और सेहतमंद रखने में आयरन व कैल्शियम की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. पालक में यह दोनों तत्व तो भरपूर है हीं, साथ ही अनेक विटामिन्स भी पाए जाते हैं. श्रम कार्य करने वाले लोगों को पालक शक्ति प्रदान करता है तो मानसिक श्रम करने वालों के लिए भी अमृत के समान ही है. उसका कारण यह है कि कच्चे पाल में खीरे से कुछ ही कम 91 प्रतिशत पानी होता है. इसके अलावा इसमें 4 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, तीन प्रतिशत प्रोटीन और न के बराबर फेट (वसा) होता है. 100 ग्राम पालक में मात्र 34 कैलोरी पाई जाती है. इसीलिए इसे पोषण तत्वों से भरपूर माना जाता है.
भारत में 2000 साल पहले से उग रहा है पालक
एक्सपर्ट मानते हैं कि पालक की उत्पत्ति 2000 साल पूर्व हुई थी. वे दावा करते हैं कि सबसे पहले यह फारस में उगा, उसके बाद भारत, चीन व नेपाल आदि देशों में पहुंचा. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बिश्वजीत चौधरी का कहना है कि पालक की सबसे पहली खेती अरब लोगों ने की थी और संभवत: यह दक्षिण-पश्चिम एशिया की सब्जी है. दूसरी ओर अमेरिकी वनस्पति वैज्ञानिक सुषमा नैथानी ने अपने रिसर्च में पालक के उत्पत्ति केंद्र की जानकारी देते हुए बताया है कि पालक सबसे पहले सेंट्रल एशियाटिक सेंटर में उगा, जिसमें उत्तर-पश्चिम भारत, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान और उजबेकिस्तान प्रमुख हैं. भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथ भी तस्दीक करते हैं कि यह भारत का ही साग है. ईसा पूर्व सातवीं-आठवीं सदी में लिखे ग्रंथ 'चरकसंहिता' में पालक का वर्णन करते हुए इसे मधुर, पाचक लेकिन पेट में वायु पैदा करने वाला बताया गया है.
पालक से जुड़ी हैं कई किस्से
पालक के प्रसार की बात करें तो 12वीं शताब्दी में यह अफ्रीका होता हुआ यूरोप पहुंचा. 14वीं शताब्दी में यह इंग्लैंड और फ्रांस में दिखाई दिया. 1800 ईस्वी में यह संयुक्त राज्य अमेरिका में आया. इसकी विशेषता यह रही है कि मध्य युग में पालक से निकाले गए हरे रंग के द्रव्य के प्रयोग कलाकृतियों को रंगने के लिए किया जाता था. पालक में पाए गए विशेष तत्व खून को गाढ़ा कर देते हैं, इसीलिए प्रथम विश्व युद्ध के दौरान घायल फ्रांसीसी सैनिकों के घावों का खून रोकने के लिए उन्हें शराब में पालक का रस घोलकर पिलाया जाता था.
एक्सपर्ट मानते हैं कि पालक की उत्पत्ति 2000 साल पूर्व हुई थी.एक्सपर्ट मानते हैं कि पालक की उत्पत्ति 2000 साल पूर्व हुई थी.
आपको हैरानी होगी कि 1930 के दशक में अमेरिका में पालक की खपत बहुत बढ़ गई थी. कारण, उस समय प्रसारित होने वाला एक कार्टून सीरियल पोपेय द सेलर मैन (Popeye the Sailor Man) था, जिसका मुख्य चरित्र पालक खाते ही ताकतवर बन जाता था. इस सीरियल के कारण अमेरिका में पालक की खपत 33 प्रतिशत बढ़ गई थी और बच्चे इसे बहुत ही चाव से खाने लगे थे. वर्ष 2004 में पोपेय के 75वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में एम्पायर स्टेट बिल्डिंग को पालक के हरे रंग से सजाया गया था. पूरे विश्व में आजकल पालक सबसे अधिक अमेरिका, कनाडा और यूरोप में खाया जाता है.
चमत्कारी गुणों से भरा है यह साग
पालक में पाए जाने वाले गुणों की बात करें तो वह 'चमत्कारी' हैं. इसमें विटामिन ए, सी, के, बी6, ई तो मिलते ही हैं साथ ही राइबोफ्लेविन (पाचक तत्व), कैल्शियम, पोटेशियम, फाइबर, मैग्नीशियम, फोलेट (विटामिन बी9 का प्राकृतिक रूप) और आयरन का एक बड़ा स्रोत है. इसमें मीट से ज्यादा लोहा (आयरन) होता है, जिसे शरीर अवशोषित कर लेता है. जानी-मानी आयुर्वेदाचार्य डॉ. वीना शर्मा के अनुसार पालक को आयुर्वेद में सुपाच्य और शरीर के लिए पुष्टिकारक माना जाता है. इसमें लौह तत्व की मात्रा अधिक होने से रक्त में हीमोग्लोबिन तेजी से बढ़ता है, जिससे शरीर में नया उत्साह, नई शक्ति-स्फूर्ति और जोश का संचार होता है.
पालक का सेेवन करने से पाचन शक्ति भी मजबूत होती है.पालक का सेेवन करने से पाचन शक्ति भी मजबूत होती है.
पालक चरपरा, मधुर, पथ्यशीतल, पित्तनाशक और तृप्तिकारक है. पोषक तत्वों की प्रचुरता के चलते यह गर्भवर्ती महिलाओं के अलावा कुपोषित बच्चों के लिए लाभकारी है. जिनकी पाचन शक्ति कमजोर है, उनकी यह मजबूत करता है. इसका रस आमाशय व आंतों या उदर के अनेक रोगों में फायदा पहुंचाता है. इसके अलावा अम्ल-पित्त, अजीर्ण, बवासीर, कब्ज आदि रोगों को भी नियंत्रित रखता है.
कमजोरों को पथरी हो सकती है, खून जमा सकता है
पालक की अन्य विशेषताएं भी हें. इसके नियमित सेवन से कैंसर, ब्लड प्रेशर, हड्डी मजबूत होने के अलावा, वजन कम करने में मदद मिलती है. यह आंखों के लिए लाभकारी, हाइपर टेंशन कंट्रोल करने वाला, इम्युनिटी बढ़ाने के अलावा दिमाग को दुरुस्त रखता है. पालक व नीबू के रस की दो या तीन बूंदों में ग्लिसरीन मिलाकर त्वचा पर सोते समय लगाने से झुर्रियां व त्वचा की खुश्की दूर होती है. इसके सेवन से बाल नहीं झड़ते.
वैसे पालक में पाए जाने वाले इतने अधिक पोषक तत्व कुछ लोगों के लिए परेशानी का कारण हो सकते हैं. इसमें बड़ी मात्रा में विटामिन K1 होता है जो रक्त के थक्के जमने का कारण बन सकता है. पालक में ऑक्सलेट भी होता है. यदि शरीर उसे पचा नहीं पाएगा तो वह यूरिन के सहारे बाहर निकल जाएगा, लेकिन जिन लोगों में ऐसा नहीं तो तो यह गुर्दे की पथरी का कारण बन सकता है. इसके खतरे से बचने के लिए पालक को उबालकर खाने की सलाह दी जाती है.