जानें ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के बारे में सबकुछ

Update: 2023-04-28 14:06 GMT
खोने का डर
ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. टाटा मेमोरियल रिसर्च सेंटर, मुंबई द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध के अनुसार, भारत में 28 में से 1 महिला इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित है, जिसमें इलाज का एकमात्र विकल्प मैस्टेक्टमी होता है (जिसमें सर्जरी द्वारा कैंसरग्रस्त वक्षों को आंशिक या पूरी तरह निकाल दिया जाता है). यह सच है कि मैस्टेक्टमी जीवनदान देता है, लेकिन इस सच्चाई को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि यह सर्जरी महिला से उसके शरीर का सबसे ख़ूबसूरत व महत्वपूर्ण अंग छीन लेती है. मुंबई स्थित काउंसलर सोनाली गुप्ता कहती हैं,‘‘वक्ष का आकार एक ऐसी चीज़ है, जिसपर महिलाएं अक्सर चर्चा करती हैं. हालांकि शरीर की लंबाई और वज़न का एक तय पैमाना है, लेकिन जब महिला के वक्ष के आकार की बात हो तो कोई आदर्श या आइडियल साइज़ नहीं है. यही वजह है कि इसे लेकर महिलाएं हमेशा असमंजस में रहती हैं. जहां छोटे वक्षवाली महिलाओं को लगता है कि वे पुरुषों की तरह दिखती हैं, वहीं भारी व बड़े स्तनवाली महिलाएं अपने बड़े कप साइज़ को लेकर हमेशा चिंतित रहती हैं.’’
कैंसर के कारण वक्ष निकाल दिए जाने पर महिलाओं की मानसिक वेदना और ज़्यादा बढ़ जाती है,’’ कहती हैं सोनाली. सोनाली यह भी मानती हैं कि मैस्टेक्टमी के बाद शरीर में आए बदलाव को स्वीकार कर पाना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है. ‘‘वे इस बात को लेकर ज़्यादा चिंतित रहती हैं कि दूसरी महिलाएं उनके बारे में क्या सोचेंगी,’’ कहती हैं सोनाली.
जीवन का पुनर्निर्माण
डॉ एलडी धामी, प्लास्टिक सर्जन, नानावटी हॉस्पिटल, मुंबई कहते हैं कि हालांकि महिलाएं अपने शारीरिक आकार को लेकर चिंतित रहती हैं, लेकिन वे पश्चिमी देशों की महिलाओं की तरह ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्शन के बारे में विचार नहीं करतीं. ‘‘भारतीय महिलाओं के लिए कैंसर से निजात पाना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है,’’ कहते हैं डॉ धामी. फ़ोर्टिस हॉस्पिटल, चंडीगढ़ के सीनियर प्लास्टिक ऐंड कॉस्मेटिक सर्जन डॉ केएम कपूर कहते हैं,‘‘इसका एक कारण इस सर्जरी के बारे में जानकारी का अभाव और अनुभवी सर्जन्स की कमी है.’’ फिर भी दोनों डॉक्टर्स इस बात को लेकर एकमत हैं कि बदलते समय के साथ ज़्यादातर महिलाएं अपने खोए हुए आत्मविश्वास को पुन: प्राप्त करने के लिए इस सर्जरी के बारे में सोचने लगी हैं.
ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्शन के प्रकार
ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्शन के लिए आमतौर पर एक से ज़्यादा सर्जरीज़ करानी पड़ती हैं. पहली सर्जरी मैस्टेक्टमी के दौरान या फिर बाद में अलग से की जा सकती है. इसके बाद होनेवाली प्रक्रियाओं के अंतर्गत निप्पल और एरोला (निप्पल के आसपास का काला हिस्सा) का निर्माण किया जाता है. डॉ धामी कहते हैं,‘‘इसे ब्रेस्ट इम्प्लांट या टिशू फ़्लैप या फिर दोनों प्रक्रियाओं की मदद से किया जा सकता है.’’
* इम्प्लांट्स: ‘‘कंज़र्वेटिव मैस्टेक्टमी (जिसमें ब्रेस्ट्स का आकार नहीं बदलता), के बाद किया जानेवाला रीकंस्ट्रक्शन एक्सटेंसिव मैस्टेक्टमी (जिसमें पूरे ब्रेस्ट व लिम्फ़ नोड्स निकाल दिए जाते हैं) के बाद किए जानेवाले रीकंस्ट्रक्शन से अलग होता है,’’ कहते हैं डॉ कपूर. पहली प्रक्रिया में इम्प्लांट्स की सलाह तभी दी जाती है, जब ब्रेस्ट का सिर्फ़ एक हिस्सा या छोटा टिशू निकाला जाता है. जबकि दूसरी प्रक्रिया में, जब पूरे टिशूज़ को निकाल दिया जाता है, लेकिन स्किन कवर पर्याप्त मात्रा में होता है, तब एक्सपैंडर बैग और इऩफ्लैटेबल इम्प्लांट्स के साथ टिशू एक्सपैंशन को वरीयता दी जाती है. सर्जन वक्षस्थल की त्वचा के नीचे सही माप का इम्प्लांट रखता है और फिर बैग में मौजूद वॉल्व के ज़रिए स्टेराइल सॉल्ट वॉटर (सेलाइन) डालकर, उसे धीरे-धीरे फुलाता है. हर दूसरे हफ़्ते अस्पताल में जाकर, तब तक सेलाइन डलवाना पड़ता है, जब तक ब्रेस्ट को संतोषजनक आकार न मिल जाए. त्वचा में सही खिंचाव आने में तक़रीबन 8 से 12 सप्ताह लग सकते हैं. आमतौर पर दो प्रकार के इम्प्लांट्स होते हैं व दोनों ही सिलिकॉन रबर एन्वेलप से बने होते हैं. एक में सिलिकॉन जेल भरा होता है और दूसरे में सेलाइन. डॉ धामी कहते हैं,‘‘सिलिकॉन जेल इम्प्लांट्स मुलायम होते हैं एवं ज़्यादा स्वाभाविक भी.’’
* ऑटोलॉगस टिशू फ़्लैप सर्जरी: इस सर्जरी के अंतर्गत शरीर के दूसरे भाग की त्वचा, वसा और मांसपेशी की मदद से ब्रेस्ट को आकार दिया जाता है. टिशू फ़्लैप सर्जरी दो प्रकार की होती है. पहली है-टीआरएएम फ़्लैप (ट्रान्सवर्स रेक्टस एब्डॉमिनिस मसल्स फ़्लैप), जिसमें हमारे पेट के निचले हिस्से के टिशूज़ का प्रयोग किया जाता है और दूसरी है- लैटिसिमस डॉर्सी फ़्लैप, जिसमें पीठ के ऊपरी हिस्से के टिशूज़ का प्रयोग किया जाता है. पहली प्रक्रिया में रक्तप्रवाह को बिना रोके पेट के टिशूज़ को छाती तक लाया जाता है. टिशूज़ को त्वचा के नीचे वक्षवाले हिस्से तक खींचकर सिल दिया जाता है. वहीं फ्री फ़्लैप प्रक्रिया में टिशूज़ और रक्त धमनियों को काट दिया जाता है. इसके बाद सर्जन रक्त धमनियों को चेस्ट एरिया में मौजूद फ़्लैप में सिल देता है.
ठीक होने में लगने वाला समय और देखरेख
डॉ देसाई कहते हैं,‘‘टिशू फ़्लैप सर्जरी से स्थायी परिणाम मिलते हैं एवं मरीज़ को 3-4 दिन बाद अस्पताल से जाने की अनुमति मिल जाती है. पूरी तरह ठीक होने में ३-४ सप्ताह लग जाते हैं.’’ डॉ धामी आगे कहते हैं, ‘‘मरीज़ को ४ सप्ताह के लिए स्पोर्ट्स ब्रा (अंडरवायर रहित) पहनना पड़ सकता है. शुरू में थोड़ी सूजन हो सकती है, लेकिन यह एक से डेढ़ महीने में कम हो जाती है.’’ इम्प्लांट्स की मदद से की जानेवाली रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के 48 घंटों के बाद ही घर जाने की अनुमति मिल जाती है. किसी भी प्रकार की ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्टिव सर्जरी करवाने के बाद बांहों और कंधोंको ठीक ढंग से हिलाने-डुलाने के लिए थोड़ी एक्सरसाइज़ेज़ करनी पड़ती हैं.
ख़तरा
यदि घाव ठीक से न भरे, तो किसी भी प्रकार का ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्शन असफल साबित हो सकता है. इम्प्लांट सर्जरी नए वक्ष प्राप्त करने का सबसे आसान तरीक़ा है. इसमें दाग़ पड़ने की संभावना काफ़ी कम होती है. इसकी एक कमी यह है कि वक्ष उतने प्राकृतिक नहीं लगते, जितने कि शरीर के टिशूज़ से बननेवाले वक्ष. इम्प्लांट्स थोड़े कड़े होते हैं इसलिए कुछ महिलाओं को इनमें सहज महसूस नहीं होता. समय के साथ इनका आकार बिगड़ सकता है और इन्हें समान आकार देने के लिए दोबारा सर्जरी करानी पड़ सकती है. इसके अलावा इम्प्लांट्स से संक्रमण व हेमाटोमा (ब्लड क्लॉटिंग) होने की आशंका बनी रहती है. कुछ केसेज़ में इम्प्लांट्स टूट कर रिसने भी लगते हैं. इसी वजह से सिलिकॉन के बजाय सेलाइन को ज़्यादा सुरक्षित विकल्प माना जाता है. टिशूज़ की मदद से ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्शन करने से नेक्रोसिस हो सकता है (स्थानांतरित टिशूज़ की मौत). इसके अलावा ब्लड क्लॉट, दर्द, स्थायी दाग़ और जहां से टिशूज़ निकाले गए हैं, उस हिस्से में कमज़ोरी जैसी समस्याएं हो भी सकती हैं. फिर भी टिशू फ़्लैप पद्धति ज़्यादा प्राकृतिक आकार प्रदान करती है एवं शरीर द्वारा इसे न स्वीकारने की संभावना बेहद कम होती है. हालांकि इस प्रक्रिया से सर्जरी कराने के बाद पूरी तरह ठीक होने में ज़्यादा समय लगता है, लेकिन मरीज़ को इम्प्लांट्स की तरह वार्षिक चेकअप के लिए नहीं जाना पड़ता.
Tags:    

Similar News

-->