Life Style : बच्चों की गलतियों को डांटने मारने की जगह ट्राई करें सुधरने के लिए जानिए किसे करे

Update: 2024-06-24 05:00 GMT
Life Style :   पुराने जमाने की पेरेंटिंग और आजकल की पेरेंटिंग में काफी बदलाव आ चुका है। पहले जहां माता- पिता बच्चों की गलतियों पर उन्हें डांट-मार कर सिखाते हैं, वहीं आजकल के पेरेंट्स ऐसा नहीं कर रहे हैं। उन्हें समझ आ गया है कि डांटने-मारने से बच्चों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता, इसलिए वो उन्हें सही चीजें सिखाने और सुधारने का एक दूसरा फॉर्मूला अपना रहे हैं, जो है टाइम आउट सिद्धांत। सही पेरेंटिंग में एक और जिस चीज ने बहुत हेल्प की है वो है साइकोलॉजिस्ट और चाइल्ड एक्सपर्ट का सर्पोट। जो बच्चों को ही नहीं, बल्कि मां-बाप को भी सही गाइड करते हैं। इंदु राव, जो एक करियर काउंसलर है, उनका मानना है कि टाइम आउट सिद्धांत काफी हद तक कारगर है बच्चों को उनकी गलतियों का एहसास कराने के लिए। इससे सिर्फ बच्चों का ही नहीं, पेरेंट्स का भी फायदा होता है। आइए जानते हैं कैसे। क्या है
टाइम आउट पेरेंटिंग Time Out Parenting का एक ऐसा तरीका है, जिसमें जब बच्चा गलती करता है, तो उसे डांटकर या फटकार तुरंत सजा नहीं दी जाती, बल्कि किसी कमरे में अकेला छोड़ दिया जाता है। जहां उसके एंटरटेनमेंट के लिए कोई ऑप्शन नहीं होता, साथ ही घर का कोई सदस्य उससे बात भी नहीं करता। ऐसी सिचुएशन में बच्चे को सोचने को समय मिलता है। उन्हें सही, गलत के बीच का फर्क समझ आता है। शांत मन से खुद का बेहतर तरीके से आंकलन किया जा सकता है।
टाइम आउट सिद्धांत के फायदे Advantages of the time out principle
इससे बच्चे मेंटली स्ट्रॉन्ग होते हैं, जो उनकी बढ़ती उम्र में बहुत हेल्पफुल साबित होता है।
डांटने-मारने की जगह ऐसा करने से बच्चों को अपनी गलती जल्द समझ आती है, जिससे वो दोबारा गलती करने से बचते हैं।
इस उपाय की मदद से बच्चे पेरेंट्स की बात मानने लगते हैं।
टाइम आउट सिद्धांत बच्चों को आत्म निरीक्षण करने का मौका देता है।
इससे बच्चों के बिहेवियर में पॉजिटिव positive in behavior बदलाव देखने को मिलते हैं। वो पेरेंट्स की बातों को ध्यान से सुनते और मानते हैं।
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