Health Care: धूप में कैंसर से लेकर सनस्क्रीन की जरूरत तक, सुने एक्सपर्ट का बात

Update: 2024-06-20 14:29 GMT
Health Care: हमारे देश में जितनी बीमारियां हैं, उससे ज्यादा लोगों में डर है। जैसे कुछ लोग धूप में होने वाली टैनिंग को स्किन कैंसर की एक वजह समझ लेते हैं। लेकिन क्या ये सच है? क्या सच में धूप में रहने से स्किन कैंसर होने की संभावना होती है? आपके इन्हीं सवालों का जवाब देने के लिए  देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात की है।साथ ही उन्हें टैनिंग और उससे बचाव, सनस्क्रीन और उसके फायदों आदि के बारे में भी बताया है। साथ ही हम आपको ये भी बताने वाले हैं कि स्किन के
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और उनकी जरूरतों के बारे में भी बताने वाले हैं। तो अगर आपके मन में भी इससे जुड़े कुछ सवाल हैं तो उन्हें हमारे इस लेख के जरिए दूर कर लीजिए।
क्या भारत में तेज धूप की वजह से ज्यादा होता है स्किन कैंसर?
ऐसा बिलकुल भी नहीं है। जब तेज धूप हमारी स्किन पर पड़ती है तो उसका रंग बदलने लगता है जिसे हम Tanning कहते हैं। यह एक तरीके से सूरज की किरणों से बचने के लिए शरीर का अपना डिफेंस मिकेनिजम भी है। अपने देश में धूप की वजह से स्किन कैंसर की परेशानी बहुत कम होती है। हां, टैनिंग की परेशानी जरूर ज्यादा होती है।
धूप सहने की अपनी-अपनी क्षमता
धूप में ज़्यादा बैठने से सन टैन (धूप की वजह से त्वचा का काला पड़ना) की समस्या हो सकती है। यहां इस बात को जानना ज़रूरी है कि धूप के प्रति संवेदनशीलता अलग-अलग हो सकती है। किसी को 20 मिनट धूप में रहने से भी सन टैन हो सकता है, वहीं किसी को 1 घंटे में भी नहीं होता। फिर भी जब सर्दियों की धूप भी स्किन को परेशान करने लगे तो धूप से हटना ही सही ऑप्शन है।
फायदे और नुकसान
विटामिन-D का सबसे अच्छा और सस्ता जरिया है धूप। इसकी कमी से कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। पर यह भी सच है कि जब हम ज्यादा देर तक धूप में रहते हैं तो इसका नुकसान भी होता है। अगर पूरे शरीर के अंगों की बात करें तो सबसे ज्यादा धूप हमारे चेहरे पर ही पड़ती है। पूरे 12 महीने हमारा चेहरा धूप को झेलता है। इसलिए चेहरे की त्वचा हाथ, पैर, जांघ आदि की तुलना में जल्दी बूढ़ी यानी एजिंग का शिकार होती है।
स्किन के रंग के हिसाब से ही होती है सूरज की प्रतिक्रिया
‘धूप में निकला न करो रूप की रानी, गोरा रंग काला न पड़ जाए।’ इस सुपरहिट गाने में एक MEDICAL फैक्ट भी है। ज्यादा धूप में रहने से स्किन टैन की परेशानी हो जाएगी। त्वचा का रंग बदल जाएगा और झाइयां भी हो जाएंगी। सच तो यह है कि धूप से खूबसूरती में कमी हो न हो, लेकिन शरीर के किसी हिस्से पर अगर त्वचा का रंग अलग-अलग होगा तो अच्छा नहीं लगेगा। यह समझना भी ज़रूरी है कि हमारी त्वचा के रंग के अनुसार धूप किस तरह की प्रतिक्रिया देती है।
ज्यादा मेलेनिन से विटामिन-D मुश्किल
जो गोरे रंग के होते हैं, उनके शरीर में ज्यादा मात्रा में विटामिन-D बनता है। वहीं गहरे रंग वाले लोगों में मौजूद मेलेनिन पिग्मेंट UV रेज़ को शरीर में प्रवेश करने से रोकता है। इससे विटामिन-D कम बनता है। इसलिए ऐसे लोगों को गोरे लोगों की तुलना में 20 से 30 फीसदी तक ज्यादा वक्त धूप में बैठना पड़ता है।
धूप की वजह से अमूमन 3 तरह की परेशानियां
स्किन टैन: यह सबसे कॉमन है। जिन अंगों पर सीधी धूप पड़ती हो, वे काले पड़ने लगते हैं। कई बार यह रंग 1 से 2 दिनों में ठीक हो जाता है। तो कई बार कुछ आसानी से नहीं जाता।
उपाय: सनस्क्रीन लगाएं। विटामिन-C वाली क्रीम लगाना फायदेमंद है। छाते और हैट का इस्तेमाल करें। खासकर, हंटर हैट (काउबॉय हैट) का। पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें। अपनी क्षमता के मुताबिक झेल सकें, उतनी मोटाई वाले कपड़े पहनें। खादी, सूती अच्छा ऑप्शन है।
स्किन/सन बर्न: रेडनेस आ जाती है या फिर स्किन पर पपड़ी बनने लगती है। हमारे देश में यह पहाड़ी इलाकों में ज्यादा देखने को मिलता है।
उपाय: सनस्क्रीन और 
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क्रीम का इस्तेमाल करना पड़ता है। बिना डॉक्टर की सलाह के न करें।
झाइयां: चेहरे पर गहरे और भूरे धब्बे होते हैं। सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से बढ़ जाते हैं।
किन बीमारियों में बदलता है स्किन का रंग
वैसे तो स्किन का रंग सबसे ज्यादा टैन होने के बाद ही बदलता है। स्किन काली पड़ती है। लेकिन कई बीमारियां भी होती हैं जिनमें स्किन काली पड़ सकती है। ऐसे में दूसरे लक्षणों के आधार पर और जांच के बाद ही डॉक्टर तय करते हैं कि स्किन के कलर में बदलाव किस वजह से हुआ है।
फैटी लिवर: इसमें माथे, गर्दन, बाजू आदि की स्किन का रंग काला पड़ सकता है।
तब साथ में दूसरे लक्षण: बहुत ज्यादा थकावट, कुछ लोगों के हाथ-पैरों में सूजन होना, पीलिया होना या Jaundice जैसे लक्षण- आंखें पीली होना, शुगर का मरीज़ होना।
किडनी की परेशानी: इसमें भी घुटनों से नीचे की स्किन का कलर काला पड़ सकता है।
तब साथ में दूसरे लक्षण: यूरिन की मात्रा बढ़ना या कमी, यूरिन में झाग या बुलबुले बनना आदि। थकावट होना। हमेशा लेटे रहने का मन होना। किडनी की परेशानी अमूमन हाई बीपी और शुगर के मरीजों में ज्यादा होता है।
मेलास्मा: यह hormonalपरिवर्तन, प्रेग्नेंसी की वजह से, ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव्स लेने से और सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से होता है। इसका इलाज लंबा चलता है।
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