हम बचपन से सुनते हुए बड़े हुए हैं, कि खाना अच्छी तरह से चबा कर खाना चाहिए और इस गोल्डन वर्ड्स की वजह बहुत ही ख़ास है. इस छोटी-सी बात का सरोकार हमारे स्वास्थ से है जो काफ़ी लाभदायक है. हाल के दिनों में 'धीमी गति से खाना खाने या अच्छी तरह से चबा कर खाने' की अवधारणा ने एक बार फिर ज़ोर पकड़ा है, लेकिन यह बिल्कुल भी नया नहीं है. इससे पहले 19वीं सदी में भी भोजन से संबंधित 'फ़्लेचरिज़्म' का कॉन्सेप्ट काफ़ी लोकप्रिय हुआ करता था.
क्या है फ़्लेचरिज़्म?
दरअस्ल, 19वीं शताब्दी में इंग्लैंड और अमेरिका में होरेस फ़्लेचर नामक स्वास्थ्य विज्ञानी द्वारा प्रचलित उस कॉन्सेप्ट, जिसमें धीरे-धीरे और ठीक से चबाकर खाना खाने की वक़ालत की गई थी, को फ़्लेचरिज़्म कहा गया था. इस कॉन्सेप्ट में धीरे-धीरे खाने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है. निवाला निगलने की जगह जितना संभव हो सके उसे उतना चबा कर खाना चाहिए, जिससे खाना लार के साथ मिलकर एक लिक्विड की तरह हो जाए, जिसे पचाना आसान होता है. हाल के वर्षों में शोधकर्ताओं और न्यूट्रिशिनिस्ट ने फ़्लेचरिज़्म से होने वाले फ़ायदों को मान्यता दी है, जिसके बाद फ़्लेचरिज़्म ने एक तरह से वापसी की है.
फ़्लेचरिज़्म के लाभ
फ़्लेचर का कहना था कि खाना धीरे-धीरे चबा कर खाने से पोषण मिलता है. इसके साथ ही चबा कर खाया गया खाना जब व्यक्ति के शरीर में जाता है, तो उसे पचाने में आसानी होती है. खाना खाते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या और कितना खा रहे हैं. इसके साथ ही अगर आपको लगे की आप का पेट भरा हुआ है तो कुछ भी खाने से बचें. जब आप इन सभी बातों का ध्यान रखेंगे तो, आप उतना ही खाएंगे जितना आपके शरीर को चाहिए.