कुछ दिनों पहले साथ में काम कर रही एक सीनियर ने बताया कि उनके बेटे ने उनसे सवाल किया, "मम्मी ये चॉकलेट कैसे बनती है"? बच्चे के सवाल का जवाब वह नहीं दे पाईं और यह किस्सा हमें सुनाने लगीं। हम भी सुनकर थोड़ी देर के लिए चुप हो गए। चॉकलेट भले ही हम सबने खाई है, लेकिन यह सवाल शायद ही किसी के मन में आया हो। चलिए आप ही बताइए क्या आपको पता है चॉकलेट बनने के प्रोसेस के बारे में?
चॉकलेट को ककाओ से बनाया जाता है यह सबको पता है, लेकिन उसे उगाने, हार्वेस्ट, फर्मेंट, टेम्परिंग और मोल्डिंग के स्टेप्स क्या आप जानते हैं? चलिए विस्तार से इस आर्टिकल में चॉकलेट बनाने की प्रक्रिया के बारे में जानें।
1. ककाओ बीन्स से बनती है चॉकलेट
ककाओ की फलियां चॉकलेट बनाने के लिए तब तैयार होती हैं जब उनमें येलो और ऑरेंज कलर आता है। उन पॉड्स को खोलकर उनमें से सीड्स निकाले जाते हैं। ये सीड्स ऑलिव के साइज के होते हैं। इसके बाद उन्हें लाइट में फर्मेंट किया जाता है।
2. बीन्स की होती है सफाई
चॉकलेट बनाने की प्रक्रिया ककाओं की फलियों को एक मशीन से गुजरने से शुरू होती है जो सूखे ककाओ के गूदे, फली के टुकड़ों और अन्य एलिमेंट को हटा देती है। बीन्स को सावधानीपूर्वक तौला जाता है और विशेषताओं के अनुसार ब्लेंड किया जाता है। इसके बाद इसकी गंदगी को शक्तिशाली वैक्यूम टूल से साफ किया जाता है।
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3. बीन्स को किया जाता है रोस्ट
चॉकलेट की खुशबू पाने के लिए, बीन्स को बड़े रोटरी सिलिंडर्स में रोस्ट किया जाता है। बीन्स की वैरायटी के आधार पर, इसे 250 डिग्री फ़ारेनहाइट और इससे भी ज्यादा तापमान पर 30 मिनट से दो घंटे तक भूना जाता है। जैसे-जैसे फलियां पलटती जाती हैं, उनकी नमी कम हो जाती है। उनका रंग गहरे भूरे रंग में बदल जाता है और चॉकलेट का अरोमा आने लगता है।
4. शेल को हटाया जाता है
कोको बीन्स को ठंडा किया जाता है और फिर उनका पतला शेल निकाला जाता है। एक बड़ी विनोइंग मशीन में इन बीन्स को डालकर पास किया जाता है। इससे शेल क्रैक होता है और बीन्स अलग हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में, मैकेनिकल छलनी की एक सीरीज से टूटे हुए टुकड़ों को बड़े और छोटे दानों में अलग कर देती है और पंखे की मदद से पतले और हल्के शेल्स अलग इकट्ठे होते हैं। ये छोटे, पतले और हल्के टुकड़ों को 8-10 किस्मों को मिलाया जाता है। ये बाद में चॉकलेट की अलग-अलग वैरायटी में स्वाद लाता है।
5. कोको पेस्ट बनाने की प्रक्रिया
वे टुकड़े जिनमें 53 प्रतिशत कोको बटर होता है एक रिफाइनिंग मिल्स से गुजरता है और बड़े और हैवी स्टील के ग्राइंडिंग स्टोन्स से पीसकर पेस्ट तैयार होता है। पेस्ट को हाइड्रोलिक दबाव से तैयार किया जाता है और निकलने वाले कोको बटर में एक खास सुगंध होने के साथ शुद्ध और वैल्युएबल फैट होता है।
कोको बटर बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चॉकलेट को एक बेहतरीन स्ट्रक्चर देता है। इससे चॉकलेट में एक शाइन आती है। इस प्रोसेस में कोको बटर या फैट जब पिघलता है तो उस फॉर्म को चॉकलेट लिकर कहते हैं। इस लिक्विड को जब सांचों में डाला जाता है और सेट किया जाता है तब जो केक बनता है वह मीठा नहीं होता है और कड़वा होता है।
6. चॉकलेट लिकर में मिलाए जाते हैं इंग्रीडिएंट्स
मिल्क चॉकलेट को दूध, चीनी, कोको बटर और अन्य सामग्री मिलाकर बनाया जाता है। अगर-अलग कोको पेस्ट और अन्य इंग्रीडिएंट्स को मिलाकर एक अच्छा और अल्टीमेट स्वाद तैयार होता है। सारे इंग्रीडिएंट्स को रोटेटिंग और नींडिग टूल्स के साथ मिक्स किया जाता है, ताकि पेस्ट जैसे मिक्सचर का स्वाद किरकिरा न लगे।
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7. कोंचिंग मशीन से गूंथा जाता है चॉकलेट पेस्ट
ये प्रोसेस फ्लेवर को विकसित करता है और कंट्रोल टेम्परेचर में टेक्सचर को बदलता है। यह आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण रिफाइनिंग प्रोसेस है, जो अलग-अलग इंग्रीडिएंट्स के अलग-अलग फ्लेवर्स को मिलाने में मदद करता है। कोंचेंस हैवी रोलर्स होते हैं, जिसमें चॉकलेट पेस्ट को गूंथा जाता है और यह प्रोसेस कुछ घंटों से लेकर कई दिनों तक चलता है।
स्विस और बेल्जियन चॉकलेट्स को 96 घंटों तक कोंच करने की जरूरत होती है। वहीं कुछ चॉकलेट्स को बिल्कुल भी कोंच नहीं किया जाता और कुछ सिर्फ 4 से 12 घंटे तक कोंच की जाती हैं।
8. चॉकलेट की टेम्परिंग कैसे होती है
यह चॉकलेट को गाढ़ा करता है और उसके सही फ्लो को बरकरार रखता है। इस कॉम्प्लेक्स प्रक्रिया को टेम्परिंग प्लांट में परफॉर्म किया जाता है। इससे चॉकलेट को फाइनल और डेलिकेट कंपोजिशन मिलती है। सही स्ट्रक्चर और फ्लेवर मिलता है। इससे स्टोरेज लाइफ भी बढ़ती है।
इसमें चॉकलेट को धीरे-धीरे एक निश्चित तापमान पर लाया जाता है। टेम्परिंग चॉकलेट एक ऐसी चीज है जिसे कोई भी बेकर या चॉकलेट बनाने वाला घर पर आजमा सकता है।
इस प्रक्रिया के दौरान, कोको मक्खन अपने सबसे स्टेबल रूप तक पहुंचता है। यह अच्छी तरह से टेम्पर्ड चॉकलेट को चमकदार सरफेस और स्मूथनेस देता है।
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9. लिक्विड चॉकलेट को स्टोर किया जाता है
कोंच को चॉकलेट की ज्यादा मात्रा से फिल किया जाता है और मोल्डिंग मशीन में बार, चॉकलेट और अन्य उत्पादों को आकार देने के लिए एक समय में केवल थोड़ी मात्रा में चॉकलेट पेस्ट फिल किया जा सकता है। चॉकलेट को लिक्विड स्टेट में बाकी खाद्य निर्माताओं को भेज दिया जाता है, या इसे थोड़े समय के लिए स्टोर किया जा सकता है। लंबे समय तक इसे स्टोर करने के लिए, इसे जमा दिया जाता है। आगे प्रोसेसिंग में इसे रिहीट किया जाता है।
असली चॉकलेट कैसे बनती है?
असली चॉकलेट चीनी और कोको बीन से प्राप्त होने वाले 2 इंग्रीडिएंट्स (कोको मास और कोको बटर)से बनती है। इसके साथ-साथ डार्क चॉकलेट (डार्क चॉकलेट खाने के फायदे) के लिए बस चीनी की आवश्यकता होती है, लेकिन मिल्क चॉकलेट के लिए चीनी और मिल्क पाउडर का उपयोग होता है। व्हाइट चॉकलेट कोको बटर (आमतौर पर कोको बीन्स का 50% तक), मिल्क पाउडर और चीनी से बनाई जाती है।
क्या 100% चॉकलेट होती है?
100% डार्क चॉकलेट को बिना स्वीटनर के साथ बनाया जाता है और अक्सर कोको बीन्स के अलावा इसमें कोई अन्य सामग्री नहीं होती है। कुछ कंपनियां रिफाइनर में चॉकलेट को स्मूथ करने के लिए अतिरिक्त कोको बटर या थोड़ी मात्रा में प्लांट लेसिथिन का उपयोग करती हैं, लेकिन उस चॉकलेट को मात्रा के हिसाब से मिनिमम 99.75% कोको की क्वांटिटी को मेंटेन करती हैं।
देखा तो यह है चॉकलेट बनाने का इतना लंबा चौड़ा प्रोसेस। अब अगली बार आपसे कोई पूछे कि चॉकलेट कैसे बनती है तो आप बता सकेंगे। हमें उम्मीद है यह लेख पढ़ने के लिए विजिट करें हरजिंदगी।