अपेंडिसाइटिस भी आज दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली बीमारियों में से एक है। अमेरिका में 20 में से एक व्यक्ति कभी न कभी अपेंडिसाइटिस से पीड़ित होता है। यह बीमारी 10-30 साल के युवाओं में अधिक देखी जाती है। अपेंडिसाइटिस में पेट के निचले दाहिने हिस्से में तेज दर्द होता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर लोग इस दर्द को सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जो एक गंभीर कारण बन सकता है। इसलिए इस बीमारी में सावधान रहने की जरूरत है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक अपेंडिसाइटिस किसी को भी हो सकता है। युवाओं में इसका खतरा अधिक देखा जाता है। समय रहते इसकी पहचान कर इससे बचा जा सकता है, नहीं तो यह गंभीर रूप भी ले सकता है। आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में...
अपेंडिसाइटिस क्या है
अपेंडिसाइटिस तब होता है जब अपेंडिक्स में सूजन आ जाती है। अगर समय पर इसकी पहचान न की जाए और इलाज न किया जाए तो इसके फटने का डर रहता है। डॉक्टर के मुताबिक अपेंडिक्स आंत से जुड़ी एक छोटी सी थैली होती है, जो पेट के निचले दाहिने हिस्से में होती है। अपेंडिक्स में कोई समस्या होने पर इसमें बैक्टीरिया पनप सकते हैं। इससे मवाद बन सकता है, सूजन हो सकती है और इसलिए पेट में दर्द हो सकता है। अपेंडिसाइटिस के कारण रक्त संचार भी रुक सकता है।
एपेंडिसाइटिस की पहचान कैसे करें
1. यह दर्द पेट के ऊपरी हिस्से या नाभि क्षेत्र में हल्की ऐंठन से शुरू होता है, जो धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
2. पेट के निचले दाहिने हिस्से में अचानक दर्द होना।
3. खांसने या चलने पर यह दर्द बढ़ जाता है।
4. जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, भूख में कमी और हल्का बुखार हो सकता है।
5. पेट में सूजन हमेशा कब्ज या दस्त के साथ होती है।
अपेंडिसाइटिस का कारण
संक्रमण तब होता है जब अपेंडिक्स की परत में रुकावट होती है। इसे अपेंडिसाइटिस का कारण माना जाता है। संक्रमण में बैक्टीरिया तेजी से बढ़ते हैं। इससे अपेंडिक्स में सूजन और मवाद बनने लगता है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो यह फट सकता है, जिससे पेट में संक्रमण का खतरा हो सकता है।
एपेंडिसाइटिस का उपचार और रोकथाम
अपेंडिसाइटिस को ठीक करने के लिए सर्जरी की जाती है और इसे हटा दिया जाता है। इसके बाद मरीज को एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं। हालाँकि अपेंडिसाइटिस से बचाव का कोई निश्चित तरीका नहीं है, फिर भी आपको अपने आहार में फाइबर युक्त चीजें खानी चाहिए। यह समस्या महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक होती है। अगर इस बीमारी का पारिवारिक इतिहास है तो इसका खतरा और भी बढ़ जाता है।