ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखता है चने का सेवन, जानिए इसका इतिहास
चना को हम दालों (तिलहन) का सरताज कहें तो बड़ी बात नहीं है. वजह यह है कि इसमें ताकत ‘कूट-कूटकर’ भरी हुई है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चना को हम दालों (तिलहन) का सरताज कहें तो बड़ी बात नहीं है. वजह यह है कि इसमें ताकत 'कूट-कूटकर' भरी हुई है. यह शरीर की मांसपेशियों (Muscle) और हड्डियों (Bones) को मजबूत करता है. इसमें पाए जाने वाले अन्य पोषक तत्व नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखते हैं. शर्त यह है कि इसे आप ढंग से पचा लें. यह एक तरह से 'लड़ाकू' आहार है और सदियों से अपनी ताकत दिखाता आ रहा है. असल में दालों के इस राजा को पचाना 'लोहे के चने' चबाने जैसा है. विशेष बात यह है चना उगाने में विश्व में नंबर वन है भारत.
इसलिए कहलाता है सुपरफूड
असल में चना एक 'सुपरफूड' है. हमने इसे 'लड़ाकू' आहार इसलिए कहा कि जिस मध्य पूर्व क्षेत्र में इसकी सबसे पहले उत्पत्ति हुई, वहां के देश के लोग उत्पत्ति काल से ही लड़ाके माने जाते हैं. इनमें तुर्कमेनिस्तान, सीरिया, जॉर्डन, बहरीन, ईरान, इराक, इजरायल, लेबनान, तुर्की, यूएई, यमन आदि शामिल हैं. इन देशों का इतिहास हमेशा युद्ध में लीन रहा है. वैसे तो ये देश मांसाहारी हैं, लेकिन उन्होंने अपने भोजन में एक प्राकृतिक तत्व को भी शामिल किया, जिसका नाम चना है. इस क्षेत्र के लोग जानते थे कि इसमें पाए जाने वाले गुण उनकी ताकत को और मजबूत करेंगे, ताकि वे हमेशा युद्ध लड़ते रहें. चूंकि चने में जबर्दस्त ताकत है. यह ताकत तब और बढ़ जाती है, जब यह शरीर में आसानी से पच जाए.
हम्मस, सत्तू और घोड़ों का चबेना
इन क्षेत्रों के लोग जान चुके थे कि चने को हजम करना 'लोहे के चने चबाना' जैसा है. इसलिए उन्होंने चने की हम्मस (Hummus) नाम से ऐसी डिश बनाई जिसमें चने को उबाल और पीसकर (Mash) उसमें नींबू, लहसुन, जैतून का तेल, जीरा और स्पेशल मसाले डाले जाते हैं. यह एक तरह से स्प्रेड (Spread) बन जाता है. बेहद स्वादिष्ट इस आहार को खाने में आनंद तो आता है, साथ ही पचाना भी आसान. इसे छोटी-छोटी मोटी रोटी के साथ आज भी खाया जाता है. पूरे मध्य पूर्व के देशों में एक बहुत ही मशहूर डिश है.
आपको यह भी बता दें कि घोड़ों को भी चना ही खिलाया जाता है. यानी चने में ताकत ही ताकत है. भारत में भी इसे पचाने का तरीका सालों पहले तलाश लिया गया था. यहां सैंकड़ों सालों से चने का सत्तू खाने की परंपरा है. बरसों पहले बौद्ध भिक्षुओं का भी यह प्रिय आहार रहा है.
7500 वर्ष पूर्व से अपना 'लोहा' मनवा रहा है
सारे जोड़-घटाकर यह निष्कर्ष निकला कि करीब 7500 वर्ष पूर्व चने के अवशेष पाए गए हैं और इसका निकास स्थल मध्य पूर्व क्षेत्र है. भारतीय अमेरिकी वनस्पति विज्ञानी प्रो. सुषमा नैथानी ने भी अपनी रिसर्च में इसी क्षेत्र को चने का उत्पत्ति का केंद्र मानती हैं. खोजबीन बताती है कि तुर्की में नवपाषाण काल के कुछ मिट्टी के बर्तन मिले, जिनमें चने के प्रमाण पाए गए. वहां से यह दक्षिणी पूर्वी यूरोप पहुंचा और उसके बाद धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैलता चला गया वैसे प्रो. नथानी ने चने का एक उत्पत्ति केंद्र सेंट्रल एशियाटिक सेंटर भी माना है, जिसमें भारत, अफगानिस्तान आदि शामिल हैं. लेकिन यह कन्फर्म है कि इस क्षेत्र में चने की खेती हजारों सालों से हो रही थी, लेकिन उसके प्रमाण मध्य पूर्व से बाद के हैं.
भारत के धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में है वर्णन
भारत में चने का इतिहास 2000 ईसा पूर्व माना जाता है. असल में भारत के राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब व उत्तर प्रदेश के एक-दो क्षेत्रों में प्रागेतिहासिक क्षेत्रों की जानकारी के लिए की गई खुदाई में चने के अवशेष पाए गए हैं. यह काल 3000 ईसा पूर्व से लेकर 800 ईस्वी तक जाना जाता है. भारत के प्राचीन धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी चने का विस्तृत वर्णन है. वेद भाष्यों में 'खलवा' शब्द को दाल माना गया है. मार्केंडेय पुराण, मत्स्य पुराण अदि में चने का विवरण मिलता है. 700-800 ईसा पूर्व लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ 'चरकसंहिता' व 'सुश्रुतसंहिता' में चने को 'चणक' कहा गया है. कौटिल्य अर्थशास्त्र (लगभग 300 ईसा पूर्व) में भी चने का वर्णन आया है.
बौद्ध साहित्य में चने को भिक्षुओं के लिए बेहद लाभकारी बताया गया है. जानकारी दी गई है कि वह सत्तू के रूप में इसे खाते थे और कड़ी साधना करते थे. सामान्य चने का रंग धूसर (मटमैला) सा होता है, लेकिन एक और भी चना है, जिसे काबुली चना (छोले) कहा जाता है. यह हल्के बादामी रंग का होता है और सीधी सी बात है कि अफगानिस्तान (काबुल) इसका उत्पत्ति क्षेत्र है. फिलहाल पूरी दुनिया में चना उगाने में भारत प्रथम स्थान पर है. इसके बाद तुर्की, रूस, म्यामांर, पाकिस्तान, इथोपिया आदि देश हैं. ये बाकी देश हर साल चने की पैदावार में आगे पीछे होते रहते हैं.
ब्लड शुगर व पाचन सिस्टम के लिए गुणकारी
फूड एक्सपर्ट व होमशेफ सिम्मी बब्बर के अनुसार चने को इसलिए जानदार और शानदार माना जाता है क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, वसा, आयरन, कॉपर, जिंक, मैग्नियम, फास्फोरस के अलावा राइबोफ्लेविन (विटामिन बी2) और नियासिन (विटामिन बी3) में पाए जाते हैं. इसी के चलते यह हड्डियों को मजबूत रखता है, मांसपेशियों को स्वस्थ बनाए रखता है और विशेष रसायनों के चलते दिमाग के नर्वस सिस्टम को लगातार ताजगी देता है.
चने का सेवन ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखता है. असल में चने में स्टार्च (एक प्रकार का ग्लाइसेमिक) होता है जो ब्लड शुगर और इंसुलिन को बहुत तेजी से ऊपर जाने से रोकता है. इसमें घुलनशील फाइबर होता है, जो पाचन सिस्टम को फिट रखता है, साथ ही बेड कोलेस्ट्रॉल को कम रखने में मदद करता है, जिससे दिल नहीं गड़बड़ाता. माना जाता है कि चने में पाए जाने वाले लाइकोपीन व अन्य तत्व कैंसर के जोखिम को कम करते हैं.
अधिक सेवन से गैस व किडनी में स्टोन की समस्या
उनका कहना है कि चने को प्रयोग करने से पहले इसका देर तक पानी में भिगोना जरूरी है, ताकि इसमें पाए जाने वाले अनावश्यक तत्व बाहर हो जाएं. चूंकि इसमें बहुत अधिक पोषक तत्व होते हैं, इसलिए इसके कुछ साइड इफेक्ट भी हैं. लेकिन आप तंदरुस्त और फिट हैं तो चिंता की बात नहीं. डिब्बाबंद चने के सेवन से बचें तो अच्छा रहेगा. कुछ लोगों को चने से एलर्जी हो सकती है. इसलिए सावधान रहें. चूंकि चने में कुछ ऐसे तत्व भी होते हैं जो सामान्य व्यक्ति के लिए पचाना मुश्किल है, इससे गैस बनती है और अन्य परेशानियां आती हैं. इसलिए पाचन सिस्टम से परेशान लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए. इसमें पाए जाने वाला प्यूरिन नाम रसायन यूरिक एसिड को पैदा करता है, जिससे गठिया का अंदेशा बन सकता है. इसका अधिक सेवन किडनी में स्टोन का कारक भी बन सकता है.