महिलाओं को सिल्क की साडिय़ाँ जितना आकर्षित करती हैं उससे कहीं अधिक ज्वैलरी महिलाओं की पसन्द होती है। एक महिला को जितना साड़ी और गहनों से लगाव होता है उतना शायद ही और किसी वस्तु से हो, क्योंकि यह गहने ही हैं जो महिलाओं की सुन्दरता को चांद जैसा बना देते हैं। भारतीय सभ्यता में प्राचीन काल से ही गहनों के प्रति एक खास रुझान रहा है तथा तरह-तरह की ज्वैलरी समाज में प्रचलित रही है।
क्या है साडिय़ों को चार चाँद लगाने वाली एंटीक ज्वैलरी
एंटीक गहने वह होते हैं जो 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं और जो मानव विकास के साथ चलते आए हैं, वे एंटीक ज्वैलरी कहलाती हैं। आधुनिक समय में भी एंटीक ज्वैलरी का चलन बहुत हो गया है और इसकी वजह है उनकी अत्याधुनिक कारीगरी और उच्च गुणवता वाले रत्नों के साथ-साथ उनका रस्टी लुक बहुत पसन्द किया जाता है। ये गहने सिल्क साडिय़ों को और भी भव्यता प्रदान करते हैं।
पच्चिकम की कलाकारी है खास
गुजरात के कच्छ से उत्पन्न, इस कला रूप का नाम गुजराती शब्द पच्चीगर से लिया गया है जिसका अर्थ है सुनार। पच्चिकम के गहने नरम झिलमिलाती धातुओं का उपयोग करके बनाए जाते हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्लेटिनम और अब चाँदी का उपयोग होता है।
राजस्थान की प्राचीन ज्वैलरी कला का गौरव है थेवा कला
16वीं शताब्दी में, गहने बनाने की थेला कला अभी भी राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में बहुत लोकप्रिय है। फेस्टिव वाइब्रेंट बीड्स मोतियों के साथ 23के सोने की चमक के साथ इस डिजाइन को सबसे पहले प्रतापगढ़ के सुनार नाथूलाल सोनेवाला ने बनाया था। इसके तुरन्त बाद, महाराजा सुमंत सिंह की नजर इस पर पड़ी, जिनके शासनकाल में यह आर्ट फॉर्म बहुत फला-फूला और आज भी खूब प्रचलित है। सिल्क साडिय़ों के साथ थेवा ज्वैलरी एक ग्रेट काम्बिनेशन है।