अपने 13 वर्षीय बेटे विकास* को इंटरनेट पर पॉर्न साइट देखते हुए पकड़ने के बाद से ही अनंदिता अग्रवाल* काफ़ी परेशान रहती हैं. हालांकि उन्हें देखते ही विकास झेंप गया था और उन्होंने भी उससे इस बारे में कुछ नहीं कहा था, पर वो गुमसुम-सा रहने लगा है. अनंदिता भी समझती हैं कि विकास अपराधबोध से ग्रस्त होने के कारण ऐसा बर्ताव कर रहा है, पर उनकी समझ में भी यह नहीं आ रहा है कि वे इस विषय पर उसके साथ बात करें तो कैसे?
जहां अनंदिता इसलिए परेशान हैं कि उनका बच्चा चोरी छिपे पॉर्न साइट्स देखता है, मैथिली दास* अपनी चार वर्षीया बेटी रक्षंदा* के सवालों के आगे असहाय हो जाती हैं. ‘दिन में चंदा मामा कहां जाते हैं?’, ‘आसमान नीला क्यों है?’ जैसे सवालों की बजाय अब वो ‘मैं कैसे पैदा हुई?’ जैसे सवाल पूछने लगी है.
अनंदिता और मैथिली की तरह लगभग सभी मांओं तथा बच्चों की नज़र में दुनिया के सबसे बड़े ज्ञानी उनके पिताओं को ऐसे आवाक् कर देनेवाले सवालों का सामना करना पड़ता है. हमारे विशेषज्ञ बता रहे हैं कि किस तरह आप दुनिया के इन सबसे कठिन सवालों का जवाब दे सकती हैं. वह भी इस तरह की बच्चे की जिज्ञासा का भी समाधान हो जाए और आपको इस बात की ग्लानि न हो कि आपने बच्चे के मासूम सवालों को टाल दिया है.
बेशक़, ये बात करने की चीज़ है!
देखा गया है कि बच्चों द्वारा इस तरह के सवाल पूछे जाने को अभिभावक अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं या उनके सवालों के जवाब की ज़िम्मेदारी दूसरे अभिभावक पर डाल देते हैं. अभिभावकों को लगता है कि क्या इस बारे में बात करना ठीक रहेगा? मुंबई की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ मोहिनी पॉल इसे बेहद सामान्य ढंग से लेने की सलाह देते हुए कहती हैं,‘‘सबसे पहले आप इस बात को दिमाग़ से निकाल दें कि इस बारे में बात करना ठीक नहीं रहेगा. बिल्कुल यह बात करने की चीज़ है. हां, बच्चों द्वारा इस प्रकार के सवाल पूछे जाना थोड़ा अजीब लग सकता है, पर लगभग हर माता-पिता को ऐसे सवालों का सामना करना ही पड़ता है. चूंकि बच्चों में चीज़ों के बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा होती है, इसलिए ऐसे सवाल स्वाभाविक हैं. ऐसे में यह आपका फ़र्ज़ बनता है कि उनकी जिज्ञासाओं का समाधान सही ढंग से करने की कोशिश करें, बजाय उन्हें डांट-डपट कर ऐसा करने से मना करने के.’’
यदि आप उनके सवालों के प्रति उदासीनता दिखाएंगे या उन्हें डांट-डपट कर चुप कराने की कोशिश करेंगे तो उन्हें लग सकता है कि उन्होंने कुछ ग़लत पूछ लिया है. वे आगे कभी इस विषय पर आप से या किसी भी बड़े से बात नहीं करेंगे. लाइफ़ सोल्यूशन्स नाउ, मुंबई के संस्थापक व चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट डॉ सुधीर गेसोता अनंदिता को अपनी झिझक से बाहर निकलकर अपने बेटे से बात करने की सलाह देते हैं. वे कहते हैं,‘‘संवाद टूटना किसी भी रिश्ते के लिए अच्छा नहीं होता, मां और बच्चे के कोमल रिश्ते के लिए तो बिल्कुल भी नहीं. आप इसे किसी बहुत बड़ी या अनोखी समस्या की तरह न लेते हुए बेहद सामान्य ढंग से लें. टीवी और इंटरनेट की उपलब्धता के चलते बच्चों का ऐसी चीज़ों से रूबरू हो जाना आम बात है. आप उन्हें इन चीज़ों से कहां तक बचा सकती हैं? और यह भी ध्यान रखें कि ये जीवन की एक सच्चाई भी है. ऐसे में सबसे अच्छा तरीक़ा है कि झिझक को मिटा कर उनसे इन मुद्दों पर बात करें और उन्हें सही व ग़लत की समझ दें.’’
वहीं मैथिली के मामले में डॉ पॉल कहती हैं,‘‘मैथिली को चाहिए कि वे अपनी बेटी को बताएं कि ‘वो मम्मी-पापा द्वारा बनाई गई है, बजाय इसके कि उसे किसी परी ने दिया है... जैसी बातें बनाने के.’ पर हां, अभी उससे इस बारे में विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है.’’
ऐसे करें शुरुआत
जो अभिभावक इस बारे में बात करना भी चाहते हैं वे इस ऊहापोह में रहते हैं कि बच्चों के ऐसे सवालों के जवाब देने की आदर्श उम्र क्या होनी चाहिए? इस पर डॉ पॉल कहती हैं,‘‘उनके सवालों के जवाब देनी की आदर्श उम्र का कोई मानक तय नहीं किया जा सकता. मेरा मानना है कि जब से बच्चे सवाल पूछना शुरू करें, तभी से इसकी शुरुआत की जा सकती है. आमतौर पर 3-4 वर्ष की उम्र में बच्चे अपने जननांगों के बारे में पूछने लगते हैं. ऐसे में आप उन्हें बताएं कि यह उनके शरीर का एक अंग है. इस उम्र में ही उनके लिए इतना ही काफ़ी है.’’ उनका कहना है कि हमें बच्चों को ज़्यादा से ज़्यादा प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करना चाहिए.
इस विषय पर मुंबई की विद्या संस्कार नामक संस्था के चाइल्ड काउंसलर शेखर कुंटे का कहना है,‘‘तीन-चार वर्ष की उम्र के बच्चों को जिस तरह नाक, मुंह, आंख, हाथ, कान... आदि अंगों के नाम बताते हैं, उसी तरह ही जननांगों के भी सही नाम बताएं. इन अंगों को अनदेखा करके आप उनके अवचेतन मस्तिष्क को यह संदेश देते हैं कि इनके बारे में ज़रूर कुछ न कुछ गड़बड़ है, इसलिए इनके बारे में मम्मी-पापा नहीं बता रहे हैं.’’
शेखर की बातों को आगे बढ़ाते हुए डॉ गिसोता कहते हैं,‘‘अंगों के नाम के बारे में जानकारी देने के साथ ही आपको उन्हें प्राइवेट पार्ट्स की भी समझ देनी चाहिए. उनसे कहें कि उनके प्राइवेट पार्ट्स को सिर्फ़ वे ही छू या देख सकते हैं. कोई अन्य व्यक्ति यदि ऐसा करने की कोशिश करे तो उसका प्रतिकार करें और तुरंत आकर माता-पिता या परिवार के किसी बड़े को बताएं. यदि स्कूल में कोई उनके प्राइवेट पार्ट्स को छूने की कोशिश करे तो टीचर से बताएं. आजकल जिस तरह छोटे बच्चों के साथ दुराचार की घटनाएं ख़बरों में आती रहती हैं, हर अभिभावक को अपने बच्चों को ‘अच्छा स्पर्श, बुरा स्पर्श’ यानी ‘गुड टच, बैड टच’ के बारे में ज़रूर बताना चाहिए. और एक बात, मैंने देखा है कि ज़्यादातर अभिभावक लड़कियों को ही सुरक्षित रखने के बारे में सोचते हैं, पर उन्हें अपनी धारणा में बदलाव लाना होगा. लड़कों को भी जागरूक बनाना चाहिए.’’
इस प्रक्रिया को जारी रखें
ऐसा नहीं है कि बच्चों की जिज्ञासा अंगों के नाम जानकर ही शांत हो जाएगी. उम्र बढ़ने के साथ शरीर में आनेवाले बदलावों के अनुसार उनके सवाल भी बदलते रहते हैं. इसलिए उनके सवालों और आपके समाधानों का दौर एक सतत चलते रहनेवाली प्रक्रिया की तरह होना चाहिए. इस बारे में बताते हुए डॉ पॉल कहती हैं,‘‘जैसे-जैसे आपका बच्चा बड़ा होता है वह यह जानना चाहता है कि उसके अंग विपरीत लिंगी बच्चों से अलग क्यों हैं? आमतौर पर पांच वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों में यह जानने की इच्छा होती है. अत: इस उम्र में उन्हें लड़के-लड़की के बीच फ़र्क़ बताएं.’’
अक्सर दस वर्ष की उम्र के बाद बच्चे अपने शरीर में आ रहे बदलावों और लुक्स के प्रति काफ़ी संवेदनशील हो जाते हैं. कई बच्चे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन बदलावों के बारे में अपने माता-पिता से जानने की कोशिश करते हैं. वहीं दूसरी ओर ऐसे भी मामले होते हैं, जहां बच्चे इस बारे में बात करने से झिझकते हैं. ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी ओर से पहल करें. इसकी ज़रूरत पर डॉ गेसोता प्रकाश डालते हैं,‘‘बच्चों को उनके शरीर में आनेवाले हार्मोनल बदलावों के बारे में बताना बेहद आवश्यक है. ख़ासकर मांओं को चाहिए कि 12 वर्ष की उम्र से पहले ही अपनी बेटियों को पीरियड्स के बारे में ज़रूर बताएं. कई मांएं पीरियड्स के बारे में कोड वर्ड (कूट शब्द) में बातें करती हैं. इसे शर्म या अभिशाप की तरह प्रस्तुत करती हैं. उन्हें अपने इस नज़रिए को बदलना होगा. बच्चियों को बताएं कि यह महिला शरीर की एक स्वाभाविक क्रिया है. ऐसी सीख से बच्ची इसे लेकर कभी शर्मिंदगी या ग्लानि का अनुभव नहीं करेगी. इतना ही नहीं मेरा तो मानना है कि लड़कों को भी इस बारे में पता होना चाहिए. किशोरावस्था के शुरुआत में लड़के भी अपने गुप्तांगों में होनेवाली उत्तेजना को महसूस करते हैं. उत्तेजक सपने देखना या गुप्तांगों में उत्तेजना कोई अप्राकृतिक बात नहीं है. यदि वे आपसे इस बारे में पूछें तो उनके प्रश्नों का समाधान करें. एक अच्छा तरीक़ा यह भी हो सकता है कि उनके पूछने से पहले ही इस बारे में उन्हें जानकारी दे दें.’’