विश्लेषण: मनुष्य का स्वभाव है भुलक्कड़ होना

Update: 2022-09-11 18:15 GMT
सचमुच इतिहास का दुहराव ही इसलिए होता है कि हम उससे सबक नहीं लेते। सटीक और सामने का उदाहरण कोरोना पैन्डेमिक ही है। हम एक भयावने दौर से गुजरे हैं या बल्कि यह कहिये कि अभी गुजर ही रहे हैं लेकिन हमने फिर मिले सबक को तेजी से भूलना शुरु कर दिये हैं।
कोरोना ने हमें जीवन जीने के कई मंत्र सुझाये हालांकि एक वरदान के तौर पर नहीं बल्कि एक अभिशाप के रुप में मगर जो कुछ सीखने लायक था, वह हमने बस भय डर के कारण कुछ समय के लिए ही अपनाया और फिर पुराने ढर्रे पर वापस आ गये।
कोरोना ने हमें सिखाया कि इस धरा पर मनुष्य के रुप में अमीर गरीब सब एक समान हैं। फिजूलखर्ची और अनावश्यक धन संग्रह व्यर्थ है। जीवन की चूहा दौड़ किसी अर्थ की नहीं है। एक गुणवत्ता भरे जीवन में लोगों के प्रति समभाव, प्रेम और नैतिकता का आग्रह जरुरी है। पता नहीं कब मौत आ जाये। जीवन बहुत ही क्षणभंगुर है।
अभी ओमिक्र ान का दौर चल ही रहा है मगर लोगों के चेहरे से मास्क गायब है। अभी मैं कल एक सार्वजनिक समारोह में गया था। काफी अनुरोध भरा आग्रह था। न तो मेजबान और न ही मेहमानों को कोविड प्रोटोकोल का जरा भी भान था। दो हजार की भीड़ में एकमात्र मैने मास्क लगाया था। देखता फिरा कोई और सहधर्मी मिल जाय मगर नहीं। एक अकेला मैं मास्क में असहज महसूस कर रहा था कि लोग बाग यही मुझ पर अप्रगट हंस ही रहे होंगे।
यह दुनिया ऐसी ही है परले दर्जे की बेपरवाह और गैर जिम्मेदार। मुठी भर वैज्ञानिक चिकित्सक भले ही सर पटक मारें इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। यह भीड़ तंत्र है। सब अपने पहले के आचरण और जीवन शैली पर उतर आये हैं। कोरोना गया भाड़ में। अभी ओमिक्र ान में कोई घातक उत्परिवर्तन सहसा फिर हो जाय तो फिर से हाय तोबा मच जायेगी।
मगर अभी तो शादी ब्याह, मुंडन मंडन में फिर से वही प्रदर्शन और आडंबर का दौर शुरु हो गया। शालीनता सौम्यता और विनम्रता की दिखावे से दूर जीवनशैली को फिर से टाटा बाय बाय कह दिया गया है। भीड़तंत्र फिर से काबिज है।
माना कि मनुष्य धरा की एक सर्वजेता प्रजाति है मगर इसने अपनी भूलों और अदूरदर्शिता का इतिहास भी दुहराया है, बार बार दुहराया है और भोगा भी है। सबक नहीं लिया। 1918 के भयावह वैश्विक महामारी का सबक भी भूल गया। जिसे 2०19 में फिर से वैसी ही भयावहता से दुहराया गया मगर हम इतनी जल्दी फिर से इसे भूल रहे हैं। हम एक बेसब्र और बेपरवाह कौम हैं।
काश कोरोना ने हमें जीवनशैली के जो अच्छे मंत्र सिखाये, उसे याद रखते और एक जिम्मेदार नागरिक, दूरदर्शी प्रजाति के रुप में इस धरा पर अपने पदचिन्ह छोड़ते।

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