सिर्फ पैसा बनाना ही आपका इकलौता लक्ष्य रहेगा, तो फिर ब्रांड छवि को हमेशा के लिए खराब करने के लिए तैयार रहें
पुलिस ने पहले शख्स को तो जाने दिया लेकिन बाकी पांचों का चालान कर दिया
एन. रघुरामन का कॉलम:
पहले, एक बाइकर ने रेड सिग्नल तोड़ा। उसे देखकर चार और बाइक सवार और एक कार वाले ने पीछे-पीछे वही सिग्नल तोड़ा। पुलिस ने पहले शख्स को तो जाने दिया लेकिन बाकी पांचों का चालान कर दिया। पांचों लोग भड़क गए, पर इसलिए नहीं कि उन्हें पकड़ा, बल्कि इसलिए कि पहले वाले को जाने दिया गया। थोड़ी बहस के बाद इंस्पेक्टर ने बताया कि पहला आदमी उनका मार्केटिंग वाला था।
उनके जाने के बाद वह फिर वापस आएगा और फिर से सिग्नल जंप करके और पांच या ज्यादा लोगों को फंसाएगा। यह सुनकर उन पांचों के मुंह खुले के खुले रह गए, इस्पेक्टर ने कहा कि 'कृपया समझें, किसी कॉर्पोरेट की तरह हमें भी अपने मार्च एंडिंग के टारगेट पूरे करने हैं।' अगर आपको ये कोई वाट्सएप जोक लग रहा है तो मैं 29 मार्च को घटी सच्ची घटना बताता हूं।
मेरे एक परिचित भोपाल से इंदौर जा रहे थे और आष्टा से पहले 'अमलाहा' टोल पार करते हुए उन्हें ओवर स्पीडिंग के लिए रोक लिया गया, जबकि टोल देने के लिए वैसे भी वह वाहन धीमा कर रहे थे। उन्होंने गति को लेकर थोड़ा तर्क-वितर्क किया और जब पुलिस ने नहीं सुना तो उन्होंने अपने राजनैतिक संपर्क में से किसी को फोन करके इंस्पेक्टर को फोन थमा दिया।
पुलिसवाले ने फोन पर दूसरी ओर मौजूद व्यक्ति को शांति से जवाब दिया कि मार्च एंडिंग के टारटेग पूरा करने के लिए भोपाल से आई पुलिस इंटरसेप्टर गाड़ी ने टोल से करीब 500 मीटर दूर इनकी गाड़ी को िचन्हित किया था। उसने कहा कि अगर इन्हें बिना जुर्माने के जाने दिया तो मुझे जेब से जुर्माना भरना पड़ेगा क्योंकि इंटरसेप्टर वाहन में गति नियमों का उल्लंघन करने वाले सभी नंबर दर्ज होते हैं और इकट्ठे किए पैसे हिसाब से मेल खाना चाहिए। पुलिस सौदेबाजी, घूसखोरी, धमकाने के सारे पैतरों पर अड़ी रही।
और सभी ने जाने से पहले जुर्माना भरा। टोल से कुछ दूरी पर अक्सर एक इंटरसेप्टर वाहन खड़ा होता है क्योंकि हाईवे पर तेज गति से आती गाड़ी को रोकना मुश्किल होता है। और उन्हें पता होता है कि गति से आ रहा वाहन टोल पर रुकेगा, जहां दूसरी टीम जुर्माना वसूल सकती है। इसलिए अधिकारी दो जगहों पर खड़े होते हैं- एक स्पीड मापने के लिए टोल से दूर और दूसरे अधिकारी इंटरसेप्टर वाहन से जानकारी मिलने के बाद जुर्माना वसूलने के लिए टोल से एकदम पहले खड़े होते हैं। अब इससे उलट दूसरी परिस्थिति लें।
दुनिया में ऐसी भी जगहें हैं, जो बेहद गर्म हैं, जहां होटल बिजनेस सूर्यास्त के बाद शुरू होता है। अमेरिका में रचनात्मक सोच वाले एक होटल मालिक निराश थे कि दिन में कमाई नहीं होती। उनके मन में एक आइडिया आया और उन्होंने बाहर बोर्ड लगाया जिस पर लिखा था, 'हसबैंड डे केयर सेंटर' और आगे लिखा था, 'खुद के लिए वक्त चाहिए? शॉपिंग पर जाना चाहती हैं? अपने पति हमारे पास छोड़ जाएं।
जैसा वो चाहते हैं, हम वैसा ही खाना उनके लिए पकाएंगे और उनकी अच्छी तरह देखभाल करेंगे। आपको सिर्फ खाने-पीने के पैसे देने होंगे।' इस मामले में भी मालिक ने पैसा कमाया लेकिन यह एक ऐसी सर्विस का परिणाम था जो उसने उन खरीदारों को प्रदान की, जिन्होंने कभी वहां खरीदारी नहीं की। इसलिए मुनाफा बनाना बुरा नहीं माना जाता।
पर याद रखें कि मुनाफा लगातार होने वाली गतिविधियों के फलस्वरूप होना चाहिए, जिसमें कुछ चीजों का नियमित पालन हो, लगातार सेवाएं मिलें या सामान का आदान-प्रदान हो। सिर्फ पैसा जुटाना किसी संस्था का इकलौता बिजनेस नहीं होना चाहिए। यहीं जाकर संस्था की ब्रांड इमेज प्रभावित होती है।
फंडा यह है कि सिर्फ पैसा बनाना ही आपका इकलौता लक्ष्य रहेगा, तो फिर ब्रांड छवि को हमेशा के लिए खराब करने के लिए तैयार रहें।