प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी ने दशकों से चले आ रहे ट्रिकल डाउन थ्योरी में आए रिसावों को रोक कर अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाया। यदि ऐसा पहले हो गया होता तो इतनी चौड़ी सामाजिक-आर्थिक खाई निर्मित नहीं हुई होती।
दरअसल अमेरिका-यूरोप की अर्थव्यवस्था में जब रीगनो-थैचरामिक्स का दौर आया तो ट्रिकल डाउन थ्योरी गढ़ी गई। इसमें इस मान्यता को सुस्थापित किया गया कि यदि अमीरों को और अमीर बना दिया जाए तो फिर अमीरी रिस-रिस कर बाटम आफ पिरामिड यानी गरीबों तक स्वयं ही पहुंच जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, बल्कि अमीर और अमीर होते गए तथा गरीब और गरीब। इसे आगे बढ़ाने के लिए तीन आयाम और गढ़े गए- उदारवाद, निजीकरण और वैश्वीकरण। विकास का यह माडल सभी की खुशहाली का असली माडल नहीं, बल्कि बाजारों की रौनक और अमीरों की बढ़ती आय के साथ तरल अर्थव्यवस्था के बढ़ते हुए आयतन यानी ग्रोथ का माडल था। इसमें कोई संशय नहीं कि ग्रोथ बढ़ी, लेकिन विकास की वह भावना नेपथ्य में चली गई जिसमें क्वालिटेटिव इंडेक्स की अहम भूमिका थी। इसने इतनी गहरी सामाजिक खाइयों का निर्माण कर दिया कि दुनिया के विकसित देश नए किस्म के विभाजनों की ओर चल पड़े जिसके प्रभाव वहां अभी तक दिख रहे हैं और शायद आगे तक दिखेंगे। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार जैम ट्रिनिटी (जनधन, आधार, मोबाइल) के माध्यम रिसाव वाले रास्तों को बंद किया और सरकार की योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थी तक पहुंचा।
कृषि उत्पादन : पिछले पांच वर्षों में कृषि उत्पादन बढ़ाने की दिशा में व्यापक कार्य हुआ। धान, गेहूं, दलहन और तिलहन के उत्पादन को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। किसान को उसके उत्पादन का उचित मूल्य मिले, इसके लिए सरकार ने बिचौलिया वर्ग को खारिज कर किसानों से एमएसपी पर सीधे खरीद की, जो पिछली सरकार के मुकाबले ढाई गुना से अधिक है। किसानों की कृषि पर लागतें (इनपुट कास्ट) कम हों, इसके लिए जरूरी है कि बीज, खाद, पानी और बिजली पर व्यय कम हो। नीम कोटेड यूरिया ने इस दिशा में निर्णायक भूमिका निभाई। यहां कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य अहम हैं जिन्हें प्राय: लागत मूल्यों का निर्धारण करते समय छोड़ दिया जाता है। पहला है बाढ़। उत्तर प्रदेश में पिछली सरकारों के दौरान प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी जिससे ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर धन और संसाधनों की हानि होती थी। इससे ग्रामीण क्षेत्र में विकास का चक्र (साइकिल आफ डेवलपमेंट) टूट जाता था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस दिशा में निर्णायक कदम उठाए और बाढ़ रोकने का स्थायी प्रबंध किया। नदियों की ड्रेजिंग कराकर नदी की धारा को चैनलाइज किया, जिससे बाढ़ की आशंका कम हो गई। दूसरा- कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर अप्रैल में जारी होने वाले बजट को जनवरी में ही जारी कराया, ताकि अप्रैल-मई तक बाढ़ रोकने की व्यवस्था पुख्ता हो जाए। उत्तर प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि बाढ़ संबंधी कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण किया गया, जो स्थायी बाढ़ प्रबंधन का प्रमाण है। इससे ग्रामीण आर्थिक विकास का चक्र टूटने से बच गया। दशकों बाद पहली बार अंतिम छोर तक सिल्ट हटाई गई जिससे पानी की खेतों तक पहुंच सुनिश्चित हुई। दशकों से लंबित करीब डेढ़ दर्जन सिंचाई परियोजनाओं को पूरा कर 22 लाख हेक्टेयर से भी अधिक सिंचन क्षमता का सृजन किया गया। अकेले सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना से करीब 10 जनपदों में 14 लाख हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता सृजित हुई जिससे 30 लाख किसान लाभान्वित हुए।
इस प्रकार सेे किसानों को जो नि:शुल्क सिंचाई सुविधा मिली उससे उत्पादन लागत (इनपुट कास्ट) में कितनी कमी आई इसका अर्थशास्त्र उनके पन्नों से भी गायब है जो अपने आपको 'नीचे से अर्थशास्त्रÓ (इकोनमिक्स फ्राम बिलो) का अगुआ और पैरोकार बताते हैं। कृषि सिंचाई के लिए बिजली आधे मूल्यों पर दी गई। 'एक जनपद एक उत्पादÓ कार्यक्रम ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परंपरागत उत्पादों और बाजार के संयोजन से नई स्फूर्ति दी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था में ऐसे अनेक सुधार किए गए जिन्होंने राज्य की जनता की भलाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।