पीले चावल, हल्दी और घर-घर निमंत्रण, UP चुनाव में क्या 'पका' रहा है संघ?
यूपी और एमपी का बॉर्डर, दोनों राज्यों की सरहद पर एक ऐसा पर्वत जिसका एक हिस्सा यूपी में है
पंकज त्रिपाठी यूपी और एमपी का बॉर्डर, दोनों राज्यों की सरहद पर एक ऐसा पर्वत जिसका एक हिस्सा यूपी में है और दूसरा एमपी में. चुनाव यूपी में है, लेकिन हलचल पर्वत के दोनों छोर पर है. क्योंकि, यूपी के बॉर्डर और एमपी में स्थित तुलसी पीठ सेवा न्यास की ओर से एक ऐसा सांस्कृतिक अनुष्ठान हो रहा है, जिसमें सियासी हल्दी का रंग भी है और राजनीतिक चावल का उबाल भी. एमपी का सतना ज़िला यूपी के बॉर्डर पर स्थित है.
सतना से यूपी का चित्रकूट भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दायरों से बहुत गहरा जुड़ा है. भगवान श्रीराम के जिस स्वरूप (कामतानाथ स्वामी) के लिए चित्रकूट ज़िला मशहूर है, वहां सतना की तुलसी पीठ सेवा न्यास ने जो कार्यक्रम रखा है, उसे यूपी चुनाव के समंदर में संतों, सियासी हुक्मरानों और सांस्कृतिक संदेश देने वाले कलाकारों का सबसे बड़ा राजनीतिक मंथन माना जा रहा है.
जहां राम ने सौंपे खड़ाऊं वहां बनी रणनीति
2 अगस्त 1987 को स्थापित तुलसी पीठ न्यास का ये अब तक का सबसे ऐतिहासिक कार्यक्रम बताया जा रहा है. इसके संस्थापक जगद्गुरु रामभद्राचार्य हैं और जो कार्यक्रम हो रहा है, उसमें 150 से ज़्यादा संत चित्रकूट की धरती पर इस समागम का हिस्सा बनेंगे. सबसे पहले आपको बताते हैं कि तुलसी पीठ का महत्व क्या है? एमपी के हिस्से में चित्रकूट धाम का जो हिस्सा पड़ता है, वहां तुलसी पीठ की स्थापना के ख़ास मायने हैं. रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपने भाई भरत को अपने खड़ाऊं दिए थे, ताकि अयोध्या का राजपाठ चल सके. रामचरितमानस के रचयिता संत तुलसीदास के नाम पर तुलसी पीठ को स्थापित किया गया.
हिंदू एकता महाकुम्भ में 5 लाख की भीड़?
अब एमपी में स्थित तुलसी पीठ से थोड़ा हटकर यूपी के हिस्से में पड़ने वाले चित्रकूट का रुख़ कीजिए. यहां गांव-गांव में एक महामिशन चल रहा है. तुलसी पीठ के निमंत्रण पत्र के मुताबिक हिंदू एकता महाकुंभ (15 दिसंबर 2021) आयोजित किया जा रहा है. इस कार्यक्रम की भव्यता से ज़्यादा इसके संदेशों पर ग़ौर करना ज़रूरी है. चुनावी दौर में हो रहे इस आयोजन को यूपी चुनाव 2022 की दिशा तय करने वाला राजनीतिक महाकुम्भ बनाने की तैयारी है, लेकिन रंग पूरी तरह सियासी नहीं होगा, इसका ख़्याल रखा गया है.
चावल बांटते तुलसी पीठ के लोग और पोस्टर लिए गांववाले.
चित्रकूट में होने वाले हिंदू एकता महाकुम्भ में नारा दिया गया है, "गांव-गांव बंट रहा है" और "चाहे पंथ अनेक हों, हम सब हिंदू एक हों". ये दोनों नारे ये बताने के लिए काफ़ी हैं कि हिंदू एकता का ये संकल्प यूपी की राजनीतिक लड़ाई को एक नया मोड़ देने की तैयारी है. तुलसी पीठ के कार्यकर्ताओं ने अपने झोले में पीले चावल और निमंत्रण की प्रति रखी है, जो हर गांव, कस्बे और तहसील स्तर पर जाकर घर-घर बांट रहे हैं. बताया जा रहा है कि अब तक डेढ़ हज़ार से ज़्यादा गांवों में 12 हज़ार से ज़्यादा लोगों को हाथों हाथ निमंत्रण दिया जा चुका है. तुलसी पीठ के कार्यकर्ताओं में सिर्फ़ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी शामिल हैं. बड़े-बड़े पोस्टर, छोटे-छोटे स्टीकर और प्रचार पत्र बांटे जा रहे हैं.
भागवत, योगी और बड़े कलाकर लगाएंगे 'महाकुम्भ'
संघ प्रमुख मोहन भागवत कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं. उनकी तस्वीर लगाकर पोस्टर और स्टीकर बनाए गए हैं, जो गांव-गांव इस संकल्प के साथ बांटे जा रहे हैं, कि जिन्हें भी निमंत्रण मिला है, वो हिंदू एकता के नाम पर कार्यक्रम में ज़रूर शामिल हों. देश की चर्चित हस्तियों में शुमार स्वामी रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद सरस्वती समेत 150 संतों का समागम होगा. तुलसी पीठ के संस्थापक पद्मविभूषण जगद्गुरू रामभद्राचार्य के आह्वान पर हिंदू एकता महाकुम्भ का आयोजन एक ख़ास सामाजिक रणनीति के तहत किया जा रहा है.
मोहन भागवत की तस्वीर वाला पोस्टर.
देश के सभी पंथों और संप्रदायों के बड़े संतों को बुलाया गया है, ताकि संतों के ज़रिए उनके पंथ और संप्रदाय को साथ लाया जा सके. 15 दिसंबर सुबह 10 बजे से चित्रकूट के नया बस स्टैंड में बेड़ी पुलिया में आयोजित इस कार्यक्रम में हिंदू समाज को एक साथ लाने की कोशिश हो रही है. संकल्प ये है कि सभी वर्ग, पंथ, समाज और संप्रदाय में बंटे हिंदू एकसाथ आएं. संदेश ये है कि हिंदू एक दिखें. राजनीतिक मायने ये हैं कि किसी भी क़ीमत पर हिंदू वोट बंटने ना पाए और मक़सद ये है कि 2022 में एक बार फिर यूपी में बीजेपी की सरकार दोहराई जाए.
पीले चावल और हल्दी वाला निमंत्रण भी एक रणनीति!
चित्रकूट में संत, संघ और यूपी सरकार का जो समागम है, उसके लिए निमंत्रण की जो तकनीक है, वो दरअसल एक ख़ास रणनीति है. हिंदओं में बहुत पहले से ये परंपरा रही है कि किसी भी मांगलिक कार्य के लिए आमंत्रण देना होता था, तो पीले चावल या हल्दी की गांठ दी जाती थी. पीले चावल और हल्दी के टुकड़े को निमंत्रण का सबसे पारंपरिक तरीका माना गया है. ऐसा भी कहा जाता है कि जिस घर में पीले चावल या हल्दी का टुकड़ा पहुंच जाता है, वहां से उस परिवार का निमंत्रण में आना पकका माना जाता है. इस आयोजन में भले ही तुलसी पीठ की भूमिका सबसे आगे नज़र आ रही है, लेकिन पोस्टर बता रहे हैं कि संघ, संत और सरकार जब एक मंच पर होंगे, तो ये सिर्फ़ हिंदू एकता का संदेश नहीं होगा, बल्कि राजनीतिक एकता के सागर से निकले हिंदुओं के सबसे बड़े वोटबैंक की धारा को बीजेपी की ओर मोड़ने की रणनीति भी होगी.