चिंता बढ़ाने वाली बात

ताजा अध्ययनों का निष्कर्ष है कि कोरोना वैक्सीनों का असर कुछ महीनों तक ही रहता है

Update: 2021-08-23 17:11 GMT

vaccine protects against corona एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि फाइजर-बायोएनटेक कंपनी के वैक्सीन का असर कहीं अधिक तेजी से कमजोर पड़ता है। वैसे इसमें कहा यह गया है कि फाइजर और एस्ट्राजेनिका दोनों कंपनियों के वैक्सीन कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट से बचाव में कम प्रभावी साबित हुए हैँ।

ताजा अध्ययनों का निष्कर्ष है कि कोरोना वैक्सीनों का असर कुछ महीनों तक ही रहता है। जाहिर है, ये चिंता बढ़ाने वाली बात है। वैक्सीन के सीमित असर की बात साफ होने का ही परिणाम है कि अमेरिका सरकार ने अपने देश में बूस्टर डोज की नीति अपना ली है। यानी वहां तीसरा डोज भी फिलहाल कुछ सीमित वर्ग के लोगों को लगाया जाएगा। इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई विशेषज्ञ संस्थाओं ने आपत्ति की है। उन्होंने बूस्टर डोज लगाने के फैसले को अनैतिक कहा है। बात जायज है। जब बाकी दुनिया में अभी एक या दो डोज भी पूरी आबादी को नहीं लगाए जा सके हैं, तब अमेरिका में तीसरा डोज लगाने का फैसला किया गया है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पूरी दुनिया में पूरा टीकाकरण नहीं हुआ, तो बूस्टर डोज के जरिए भी अमेरिकियों को संक्रमण से नहीं बचाया जा सकेगा। वजह यह है कि उस हालत में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट सामने आते रहेंगे और वे दुनिया भर में फैलते रहेंगे। फिलहाल, ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि फाइजर-बायोएनटेक कंपनी के वैक्सीन का असर ऑक्सफॉर्ड- एस्ट्राजेनिका कंपनी के वैक्सीन की तुलना में अधिक तेजी से कमजोर पड़ता है।
वैसे इसमें कहा यह गया है कि फाइजर और एस्ट्राजेनिका दोनों कंपनियों के वैक्सीन कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट से बचाव में कम प्रभावी साबित हुए हैँ। इस रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआत में दिखा था कि फाइजर का वैक्सीन अधिक प्रभावी है। लेकिन अब सामने आया है कि एस्ट्राजेनिका के वैक्सीन का दोनों डोज लगने के बाद यह अधिक समय तक प्रभावी रहता है। उधर अमेरिका में रोग नियंत्रण और निवारण एजेंसी- सीडीसी ने तीन नई अध्ययन रिपोर्टों को पिछले हफ्ते एक साथ जारी किया। ये अध्ययन वैक्सीन के प्रभाव को लेकर किए गए। इनमें एक अध्ययन से सामने आया कि फाइजर और मॉडेरना कंपनियों के वैक्सीन से पहले 75 प्रतिशत तक बचाव हो रहा था। लेकिन डेल्टा वैरिएंट फैलने के बाद ये बचाव 53 फीसदी रह गया है। एक अन्य अध्ययन में देखा गया कि वैक्सीन से मई में लोगों का 92 प्रतिशत तक बचाव हो रहा था। लेकिन जुलाई में यह आंकड़ा 80 फीसदी ही रह गया। तो बात चिंता बढ़ाने वाली है। भारत जैसे देश के लिए तो ये और भी चिंता की बात है, जहां टीकाकरण बेहद धीमी गति से चल रहा है।
क्रेडिट बाय नया इंडिया 
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