भविष्य की फिक्र
कहावत है कि एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। परामर्शदाता के अनुसार दवा मरीज के लिए वरदान है, पर दवा की लत जानलेवा हो सकती है। आज संपूर्ण विश्व नवाचारों के आविष्कार में खोया हुआ है
Written by जनसत्ता: कहावत है कि एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। परामर्शदाता के अनुसार दवा मरीज के लिए वरदान है, पर दवा की लत जानलेवा हो सकती है। आज संपूर्ण विश्व नवाचारों के आविष्कार में खोया हुआ है और उसी का परिणाम है कि लोगों के पास घड़ी दो घड़ी अपनों के बीच गुफ्तगू करने का भी समय नहीं है। आनलाइन इंटरनेट युग में लोग विकास की डींगे हांकते जरूर हैं, पर इसने बच्चों के बचपन को लील लिया है। लोगों के बीच संचार क्रांति की उपाधि से विभूषित मोबाइल, लैपटाप, टैबलेट एवं अन्य इलेक्ट्रानिक्स सामानों की लत बच्चों के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं।
आए दिन बच्चों में मोबाइल और आनलाइन खेल की लत की खबरों का चर्चा में रहना और अप्रत्याशित घटनाओं का होना माता-पिता की चिंता का कारण बनता जा रहा है। बच्चों के बीच मोबाइल का नशा अफीम और अन्य मादक पदार्थों की तरह होता जा रहा है। अस्पतालों में बच्चों और युवाओं के चिड़चिड़ापन और बिना मोबाइल के खाना न खाना जैसे मामलों ने समाज को एक नई उलझन में डाल दिया है। आखिर विकास के चकाचौंध में आने वाली पीढ़ियों को कैसे बेहतर इंसान बनाया जाए। कहीं ऐसी समस्या के बीज औपनिवेशिक मानसिकता में तो नहीं? क्या इसके लिए भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से भारतीयों के विमुक्त होने की मानसिकता जिम्मेदार नहीं? क्या ऐसी स्थिति एकाकी परिवार की सोच तो नहीं?
ऐसे विचारणीय प्रश्न है जिस पर चिंतन किए जाने की आवश्यकता है। कोई भी देश अपनी संस्कृति को दरकिनार कर प्रगतिशील नहीं हो सकता और न ही खुशहाल जीवन एवं स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकता है। इसलिए शिखर पर पहुंचने की तमन्ना को साकार करना है तो पश्चिमी चश्मे से नहीं, बल्कि भारतीय नजरिए से विकास की गाथा लिखनी होगी, अन्यथा भविष्य अवसाद और क्रूरतम नस्ल की विचारधारा वाला होगा।