विश्व महिला समानता दिवस 2021: 101 साल का इतिहास और भारतीय महिला सशक्तिकरण के नए आयाम

भारत में जो एक स्त्री का दर्जा है, वो विश्व में कही भी देखने को ना मिला है न ही मिलेगा। ऋग्वेद की अनेक सूक्तों की दर्शनकत्र्री स्त्रियां थी

Update: 2021-08-26 07:17 GMT

विस्तार

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया
अर्थात् माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस दुनिया में कोई जीवदाता नहीं।
भारत में जो एक स्त्री का दर्जा है, वो विश्व में कही भी देखने को ना मिला है न ही मिलेगा। ऋग्वेद की अनेक सूक्तों की दर्शनकत्र्री स्त्रियां थी। ब्रह्मवादिनी 'घोषा' रचित ऋग्वेद के दशम मण्डल के सूक्तों ( 39वां एवं 40वां ) को कौन नजरअंदाज कर सकता है। स्पष्ट है कि स्त्रियां शिक्षिता होती थीं।
लोपामुद्रा, सूर्या, विश्वावारा, अपाला ऋषिकाओं को कौन भूल सकता है। इनके द्वारा रचित सूक्त स्मरणीय एवं पठनीय बने हुए हैं। 'वृहस्पति' की पत्नी 'जूहू',विवस्वान की पुत्री यमी, ऋषिका श्रद्धा,सर्पराज्ञी केवल मंत्रों की रचयित्री ही नही अपितु कवयित्री भी थीं।
दरअसल, प्राचीन काल से ही 'सङ्गच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्' को मानते हुए स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति के पथ पर अग्रसर होती हुई, अपने सशक्तिकरण का मजबूत स्तम्भ प्रस्तुत कर, जगत् के सामने उपस्थित होती रहीं।
विश्व में आई असमानता को दूर करने के उपलक्ष्य में ही विश्व महिला समानाता दिवस यानी की वुमन इक्वीलिटी-डे, प्रतिवर्ष 26 अगस्त को मनाया जाता है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की। अमेरिका में '26 अगस्त', 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला।
इसके पहले वहां महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा। 2020 में महिला समानता दिवस की 100 वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। इस वर्ष महिला समानता दिवस 101वीं वर्षगांठ है जिसकी थीम है, 'Commemorates the struggles of women to be heard, as fierce advocates who gained the statutory right to vote.' है।
महिला समानता दिवस का उद्देश्य
इस दिवस को मनाने का खास उद्देश्य यह है कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है। इसके साथ ही भेदभाव, दुष्कर्म, एसिड अटैक्स, भूर्ण हत्या जैसे कई मुद्दों पर जागरूकता फैलाना है। वैसे आज के समय में महिलाएं हर क्षेत्र में अपना नाम रौशन कर रही हैं।
भारत में महिलाओं की वोटिंग की क्या स्थिति है?
भारत में महिलाओं की वोटिंग का इतिहास अमेरिका जितना ही है। ब्रिटिश शासन के समय 1921 में मद्रास स्टेट ने सबसे पहले महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिया था। 1950 में पूरे देश में महिलाएं वोट करने लगीं।
भारत के संविधान में महिलाओं के वोटिंग अधिकार का उल्लेख संविधान के आर्टिकल 326 में है। 1962 के चुनावों में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 46.63% था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में यह बढ़कर 67.2% हो गया।
ध्यान देने वाली बात यह है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भारत में कुल वोटिंग 67.4% हुई और महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत महज 0.2% कम था। बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल, उत्तराखंड और गोवा जैसे राज्यों में महिलाओं ने वोटिंग में पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया था।
न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की। - फोटो : Pixabay
भारत एवं महिला सशक्तिकरण के नए आयाम
भारत हमेशा से ही महिलाओं यदि कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो उनकी सामाजिक सुरक्षा, स्वावलंबन, स्वायतता के साथ ही साथ उनके शैक्षिक, आर्थिक एवं राजनितिक सशक्तिकरण के लिए संवेदनशील रहा है। भारत में बने विभिन्न कानून इसी बात को प्रदर्शित भी करते हैं। स्त्री अधिकारों और सुरक्षा से जुड़े भारत के वो पांच प्रमुख कानून, जिसके बारे में हर स्त्री को जानना चाहिए, ताकि वह अपने अधिकारों और सुरक्षा के प्रति सजग और जागरूक हो सके.
पॉश – द सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ विमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रीड्रेसल बेनिफिट एक्ट, 2013)
पॉश कार्यस्थल पर किसी भी प्रकार की यौन हिंसा और प्रताड़ना से स्त्रियों को कानूनी सुरक्षा देने के लिए बनाया गया कानून है। 3 सितंबर, 2012 को यह लोकसभा से और 26 फरवरी, 2013 को राज्यसभा से पारित हुआ। 9 दिसंबर, 2013 से यह कानून प्रभाव में आया।
इस कानून के तरह कोई भी सरकारी या गैरसरकारी दफ्तर, जहां दस से ज्यादा कर्मचारी हैं और जहां महिलाएं काम करती हैं, वहां पॉश कमेटी बनाना अनिवार्य कर दिया गया। यह कानून विशाखा गाइडलाइंस से आगे का कदम है, जो उस गाइडलाइंस के निर्देशों को एक कानून का रूप देकर उसके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है.
प्रोटेक्शन ऑफ विमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस (2005)
26 अक्टूबर, 2006 को यह कानून भारत में लागू हुआ, जिसका उद्देश्य हर प्रकार की घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा करना था। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से लेकर यूएन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बार-बार हमें आगाह कर रहे थे कि भारत में 70 फीसदी महिलाएं घरों के अंदर घरेलू हिंसा की शिकार हैं और सिर्फ 10 फीसदी महिलाएं उस हिंसा की शिकायत करती हैं। भारत में कोई ऐसा कानून भी नहीं था, जो घरों के भीतर महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सके, इसलिए 2006 में ये कानून आया।
हिंदू सक्सेशन एक्ट या हिंदू उत्तराधिकार कानून (2005)
यह आजाद भारत के इतिहास में महिलाओं के लिए लाया गया सबसे ऐतिहासिक और सबसे जरूरी कानून है। हिंदू सक्सेशन एक्ट या हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 तो पहले भी था, लेकिन उसमें लड़के और लड़की के लिए भेदभावपूर्ण नियम थे। उस कानून में लड़कियों का पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था। पिता की सारी संपत्ति लड़कों को मिलती थी। 2005 में इस कानून में संशोधन किया गया और 9 सितंबर, 2005 में यह लागू हुआ।
मैटर्निटी बेनिफिट (एमेंडमेंट) बिल या मातृत्व लाभ (संशोधन) बिल 11 अगस्त, 2016 को राज्य सभा और 9 मार्च, 2017 को लोकसभा में पास हुआ - फोटो : Pixabay
डाउरी प्रॉहिबिशन एक्ट (1961)
यह महिलाओं के हक में बनाया गया सबसे विवादास्पद कानून भी है। डाउरी प्रॉहिबिशन एक्ट या दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में लागू हुआ। इस कानून के मुताबिक भारत में दहेज लेना या देना, दोनों ही कानूनन अपराध घोषित कर दिया गया। इसके लिए पांच वर्ष की कैद और 15,000 रु. तक का जुर्माना हो सकता था।
मैटर्निटी बेनिफिट (एमेंडमेंट) एक्ट, 2017
मैटर्निटी बेनिफिट (एमेंडमेंट) बिल या मातृत्व लाभ (संशोधन) बिल 11 अगस्त, 2016 को राज्य सभा और 9 मार्च, 2017 को लोकसभा में पास हुआ। 27 मार्च, 2017 को यह कानून बना।
यह कानून हर कामकाजी महिला के लिए छह महीने के मातृत्व अवकाश को सुनिश्चित करता है। यह उसके नौकरी के अधिकार और मातृत्व अवकाश के दौरान पूरी सैलरी को सुनिश्चित करता है।
यह कानून हर उस सरकारी और गैरसरकारी कंपनी पर लागू होता है, जहां 10 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं, हालांकि मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट 1961 में ही लागू हुआ था, लेकिन तब अवकाश सिर्फ तीन महीने का हुआ करता था। 2017 में इसे बढ़ाकर छह महीने कर दिया गया।
न्यायिक निर्णय और महिलाएं
शाह बानो बेगम बनाम मोहम्मद अहमद खान मामले को 'शाह बानो केस' नाम से भी जाना जाता है। यह केस कई मायनों में आज़ाद भारत के न्यायिक और राजनीतिक इतिहास में अहम रहा है। शाह बानो ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत अपने पति मोहम्मद अहमद खान से भरण पोषण भत्ता दिए जाने की मांग की।
न्यायालय ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में संशोधन किया। इस फैसले ने तलाक के मामले में सभी मुस्लिम महिलाओं को राहत दी क्योंकि नए कानून में उनके लिए पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की व्यवस्था कर दी गई थी। ऐसा ही निर्णय शमीमा फरूक्की बनाम शहीद खान के निर्णय में भी लिया गया।
विशाखा बनाम राजस्थान राज्य, के फैसले से पहले 1997 तक कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा जैसा कोई दिशा-निर्देश नहीं था। अप्रैल 2013 में कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम यानि रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 का गठन किया। विशाखा केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इन निर्देशों ने ही आज कार्यस्थल पर महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने और समानता का अधिकार दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।
सेक्रेटरी, मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स बनाम बबिता पुनिया (2020) में महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन दिया गया. भुवनेश्वरी बनाम पुराणिक के वाद में विवाहित महिला को भी प्रतिपूरक नियुक्ति का अधिकार दिया गया. वही जोशेफ शाइन बनाम भारत संघ के मामले में जारता को एक अपराध के रूप को ख़त्म किया गया। दनाम्मा @ सुमन सुरपुर बनाम अमर के मामले में बेटियों को भी बेटे के बराबर सम्पति में हक दिया गया। इतना ही नहीं रोक्संन शर्मा बनाम अरुण शर्मा के वाद में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे की संरक्षता माता को देने की बात की गई।
डी.वेलुसमी बनाम डी. पत्चैंमल के मामले में तो लिव इन रिलेशनशिप को न्यायालय ने डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के अंतर्गत ले आए। CEHAT बनाम भारत संघ में कन्या भ्रूण हत्या के विषय पर गंभीरता पर विचार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गाइड लाइन जारी की। ट्रिपल तलाक को ख़त्म करने में शायर बानो बनाम भारत संघ के वाद ने महत्पूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था।
विश्व जहां तालिबान की त्रासदी देख रहा है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर चुप है, वही भारत में अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यालय ने नेशनल डिफेन्स अकादमी में लड़कियों के जाने का मार्ग खोल दिया है। एक बात तो अब स्पष्ट हो गई है कि भारत हमेशा से विश्व में श्रेष्ठ था है और रहेगा, अपनी संस्कृति, सभ्यता और सम्मान के दम पर।
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डॉ. अंजलि दीक्षित।


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