हिंदुत्व और अति-राष्ट्रवाद के मुद्दों के सहारे बीजेपी करती है अन्य मुद्दों का सामना

बीजेपी करती है अन्य मुद्दों का सामना

Update: 2022-03-09 15:08 GMT
संजय झा.
भारतीय चुनावों के लिए एग्जिट पोल (Exit Poll) किसी इंग्लिश प्रीमियर फुटबॉल लीग (Premier Football League) में प्री-मैच मनोरंजन की तरह हैं. जिसमें डेटा विश्लेषण, खिलाड़ी के फिटनेस की स्थिति, संभावित रणनीति, दो टीमों के बीच पिछले प्रदर्शन का ट्रैक रिकॉर्ड और हाल के परिणाम खेल विश्लेषकों, टीवी शो एंकर और सेवानिवृत्त दिग्गजों के बीच बहस का मुख्य मुद्दा होता है. एक बार खेल शुरू होने के बाद, सब कुछ उलट-पुलट हो सकता है. एक असामान्य चूक, एक मजबूत पलटवार, एक पेनाल्टी स्ट्रोक और यहां तक ​​​​कि खराब रेफरी भी फ़ुटबाल मैदान पर बड़ा परिवर्तन ला सकता है.
बेशक, किसी फुटबाल मैच में विजेता और हारने वाले (टूर्नामेंट के नॉकआउट चरणों में) दोनों होते हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मैच ड्रॉ भी हो सकता है. राजनीति में, हालांकि, केवल एक ही विजेता होता है और वही सब कुछ ले जाता है. वहीं किसी चुनाव में ड्रॉ की निकटतम सम्भावना तब होती है जब कोई विधानसभा त्रिशंकु हो.
एग्जिट पोल निश्चित रूप से एक ट्रेंड को दर्शा रहे हैं
7 मार्च 2022 को जब पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड) के एग्जिट पोल को सभी मुख्यधारा के मीडिया चैनलों द्वारा किसी शाहरुख खान या सलमान खान की फिल्म रिलीज की तरह बड़े तामझाम के साथ पेश किया गया, तब टीवी स्क्रीन पर आ रही सभी प्रतिक्रियाएं पूर्वानुमानित और रटी-रटाई थीं. मैं भी ट्वीट करने का लोभ नहीं छोड़ सका. मेरा ट्वीट था कि संभावित विनर्स कहेंगे कि, "हम आप के ओपिनियन पोल का सम्मान करते हैं लेकिन आप जो संख्या बता रहे हैं वो हमारी उम्मीद से कम हैं और हम इससे भी बड़े अंतर से जीत दर्ज करेंगे." वहीं संभावित लूज़र्स का कहना होगा कि, "हम आपके पोल का सम्मान करते हैं लेकिन हमें लगता है कि जमीनी हकीकत कुछ और है. हम 100 प्रतिशत जीत रहे हैं." ठीक ऐसी ही हुआ भी. अब आइए हम कुछ बारीक विवरणों पर नजर डालते हैं.
सबसे पहले पंजाब पर बात करते हैं. व्यावहारिक रूप से सभी जनमत सर्वेक्षणकर्ताओं (हर चुनाव में नई संस्थाएं सामने आती हैं और हम उनकी शोध पद्धति के बारे में बमुश्किल जानते हैं) ने आम आदमी पार्टी को विधानसभा में 117 में से 100 सीटों का प्रचंड बहुमत दे दिया. ज़रूर, एग्जिट पोल गलत हो सकते हैं, लेकिन हाल के सर्वेक्षणों को लेकर दो अभिव्यक्तियां हैं; वे पहले की तुलना में गणितीय रूप से अधिक सटीक होते जा रहे हैं.
दूसरा ये कि वे निश्चित रूप से एक ट्रेंड को दर्शा रहे हैं. इसलिए एक रूढ़िवादी व्यक्ति भी यहां अब तक दिल्ली केंद्रित पार्टी रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर ही दांव लगाएगा. यह कांग्रेस के कारण खाली हो रहे विपक्ष की खाली जगह को भर सकता है. इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश सहित कई आगामी राज्यों के चुनावों में आम आदमी पार्टी के कांग्रेस के धुर विरोधी होने की संभावना है.
कांग्रेस ने दिल्ली की पराजय से बहुत कम सीखा है
जाहिर है, कांग्रेस ने दिल्ली की पराजय से बहुत कम सीखा है, जहां आम आदमी पार्टी ने शीला दीक्षित, जिनके पास 15 साल का शानदार कार्यकाल था, के रूप में कांग्रेस के सबसे दुर्जेय क्षेत्रीय क्षत्रपों में से एक को ध्वस्त कर दिया था. आज दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस के पास शून्य सीट है. सच कहूं तो, कांग्रेस ने राजनीतिक अहंकार, मूर्खतापूर्ण व्यवहार और आंतरिक युद्धों (नवजोत सिंह सिद्धू बनाम चरणजीत सिंह चन्नी बनाम कैप्टन अमरिंदर सिंह) के कारण खुद को ही नुकसान पंहुचाया है. उन्होंने आम आदमी पार्टी को पंजाब सोने की थाली में परोस कर दे दी है. यह आत्महत्या का एक उत्कृष्ट मामला प्रतीत होता है.
हालांकि कई उदार-धर्मनिरपेक्ष पंडितों ने सतर्कता के साथ इस बात की संभावना जतायी थी कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में उलटफेर कर भाजपा को हरा देगी. हालांकि एक भी एग्जिट पोल ने सपा को बढ़त नहीं दिखायी है और सब ने योगी आदित्यनाथ की पूर्ण बहुमत की सरकार की वापसी की संभावना जतायी है.
सपा ने एक द्विध्रुवीय लडाई में वापसी की है, लेकिन अति-राष्ट्रवाद के साथ बीजेपी के हिंदुत्व के मैच-विनिंग फॉर्मूले ने उच्च मुद्रास्फीति, तेल की बढ़ती कीमतों, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, भयानक कोविड महामारी, लखीमपुर खीरी, हाथरस में किसानों की हत्या और उन्नाव बलात्कार जैसे मुद्दों को दबा दिया. ऐसा लगता है कि बुलडोजर बाबा ने इस लड़ाई में शायद अपने कानून और व्यवस्था की कहानी और बुनियादी ढांचे के विकास के कारण असंतुष्ट मतदाताओं को भी अपने पाले में कर लिया है.
विपक्ष बीजेपी की दुर्जेय चुनावी मशीन से जूझ रहा है
मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने इस चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया है और यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि दलित वोट (राज्य की आबादी का 21 प्रतिशत), विशेष रूप से गैर-जाटव, भाजपा में स्थानांतरित हो गया है. प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक ऊर्जावान अभियान (209 रैलियां) तो चलाया, लेकिन वह स्पष्ट रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के पुनर्जीवन का लक्ष्य बना रही हैं. शायद उनका लक्ष्य कुछ सीटों के साथ 10 फीसदी वोट शेयर हासिल करना है. यह समझने में कोई भूल ना करें कि विपक्ष बीजेपी की दुर्जेय चुनावी मशीन से जूझ रहा है.
काले बादलों के बीच गोवा कांग्रेस के लिए वरदान साबित हो सकता है. बीजेपी ने 2017 में गोवा में अनैतिक साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति की क्रूर प्रदर्शनी में सबसे बड़ी पार्टी को ही तोड़ दिया (मणिपुर में भी जहां कांग्रेस बहुमत के करीब थी). अगले पांच वर्षों में, कांग्रेस 17 विधायकों की संख्या से एक हतोत्साहित करने वाली संख्या 4 पर आ गयी. गोवा चुनाव में भाजपा के रूप में एक शक्तिशाली सत्ता, धीरे-धीरे अपनी ताकत बढ़ाती आम आदमी पार्टी और अपनी मातृ पार्टी को तबाह कर 'नई' कांग्रेस बनाने पर आमादा तृणमूल कांग्रेस के रहने के बावजूद कांग्रेस पार्टी के 17 सीटों पर जीतने की संभावना है (सभी पोल सर्वे के औसत के हिसाब से), जो कि पार्टी की अंदरूनी ताकत की ही मिसाल है.
15 लाख लोगों का छोटा सा राज्य ममता बनर्जी-प्रशांत किशोर के कांग्रेस को गद्दी से हटाने के प्रयोग को झुठला कर 10 जनपथ को एक बड़ी राहत दे सकता है. जब जरूरत पड़ती है तब कांग्रेस एक सख्त जान बन जाती है. यह वही इच्छाशक्ति है जिसकी पिछले वर्षों में कमी रही है. जहां तक ​​कभी इधर, कभी उधर जाने वाले राज्य उत्तराखंड और उसके साथ मणिपुर की बात करें तो वहां तस्वीर कुछ धुंधली है. कुछ भी हो सकता है. और वहां के लिए कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. हर जगह 10 मार्च 2022 को ही धुंध छंटेगी.
(लेखक कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं.)
Tags:    

Similar News

-->