बसंत बयार में चुपके से दिल्ली आया ट्यूलिप क्या बाज़ार भी बना लेगा
दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत, लोकप्रिय और महंगे फूलों में शुमार ट्यूलिप ने भारत की राजधानी दिल्ली के चुनिंदा कोने इस कदर सज़ा दिए हैं कि
संजय वोहरा।
दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत, लोकप्रिय और महंगे फूलों में शुमार ट्यूलिप (Tulip) ने भारत की राजधानी दिल्ली (Delhi) के चुनिंदा कोने इस कदर सज़ा दिए हैं कि जिसे पता चलता है वो उसी तरफ खिंचा चला आता है. सर्द मौसम की विदाई के साथ बसंत की बयार यहां ट्यूलिप की शक्ल में, प्रकृति और पुष्प प्रेमियों (Flower Lovers) के लिए रंग बिरंगा खुशनुमा अहसास लेकर आई है. दिल्ली में ये पहली बार हुआ है जब सड़क चलते भी इन फूलों को करीब से निहारने का मौका लोगों को मिला है.
यूरोपीय देशों की आबो हवा में खूब पैदा होने वाला ट्यूलिप यूं तो कश्मीर और हिमालयी क्षेत्र में भी होता है और दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के विशाल मुगल गार्डन में भी इसके लिए ख़ास जगह मुकर्रर है और एकाध सरकारी बगीचे में भी ये दिखाई देते हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब इसे शहर में सार्वजनिक स्थानों पर लगाया गया है. नई दिल्ली नगर पालिका के बागवानी विभाग की ये खूबसूरत पहल आने वाले दौर में ट्यूलिप की लोकप्रियता बढ़ाने में निश्चित तौर पर मदद करेगी और हो सकता है कि कुछ शहर भी ऐसा करने से प्रेरित हों. बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, हर उम्र के लोगों का दिल्ली में ट्यूलिप की रौनक से सजे उन कौनों की तरफ खिंचा चला आना इस बात की तरफ साफ़ इशारा करता है कि यहां इस खूबसूरत कुदरती नियामत को चाहने वालों की खासी तादाद है. दिल्ली में कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क (कोरोना प्रोटोकॉल के कारण अभी बंद है ) और एनडीएमसी मुख्यालय समेत नई दिल्ली में कुछ और जगह भी इसके पौधे लगाए गए हैं.
एशिया में ट्यूलिप का सबसे बड़ा बगीचा कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में है
लिली प्रजाति के लाल, पीले, गुलाबी, सफेद और केसरी रंगों वाले ट्यूलिप फूलों को देखने के लिए दिल्ली के उस वीआईपी इलाके चाणक्यपुरी में भी लोग पहुंच रहे हैं जो विभिन्न देशों के दूतावासों से भरा पड़ा है. यहां पर शांतिपथ पर ब्रिटिश उच्च आयोग (British High Commission) के पास गोल चक्कर में बना पार्क इन दिनों दिल्ली में ट्यूलिप देखने के लिए ख़ास जगह बन गया है. यहां विभिन्न आकार की क्यारियों में लगे असंख्य ट्यूलिप कलियां खिलकर फूल बन चुकी हैं. अफगानिस्तान और तुर्की के राष्ट्रीय फूल ट्यूलिप का शानदार गार्डन कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में है जो एशिया में ट्यूलिप का सबसे बड़ा बगीचा है.
रंग बिरंगे ट्यूलिप.
भारतीय फिल्मों में महानायक का दर्जा हासिल कर चुके अमिताभ बच्चन और स्टार अभिनेत्री रेखा पर ट्यूलिप गार्डन में फिल्माए गये 'सिलसिला' फिल्म के लोकप्रिय गीत 'देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए….' ने आम लोगों में अस्सी के दशक में इस फूल के प्रति भी काफी दिलचस्पी पैदा की थी. इस गाने की शूटिंग नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम के पास ट्यूलिप के सबसे खूबसूरत केयुकेन्होफ़ गार्डन (Keukenhof Garden) में हुई थी जो दुनिया भर में फूलों का सबसे बड़ा बाग़ है.
ट्यूलिप फूल की खासियत
दिलचस्प इतिहास के अलावा अपनी बनावट के कारण भी ट्यूलिप आकर्षित करता है. 4 इंच से लेकर 2 फुट तक के ऊंचाई वाले हरे तने (डंठल ) पर उगने वाला ये फूल बड़े आकार के फूलों में शुमार है. इसके तने पर पत्ते भी बहुत कम होते है. आमतौर पर 5 से 10 पत्ते. ट्यूलिप की अलग अलग किस्में भी हैं और इसके फूल बेशुमार रंग के भी हैं, लेकिन सभी के रंग चमक दार और भड़कीले कहे जा सकते हैं.
सफेद ट्यूलिप.
यूं सफेद ट्यूलिप भी कम खूबसूरत नहीं है. बस ये ज़रूर है कि जड़ से टूटने के बाद ट्यूलिप ज्यादा दिन तक नहीं रह सकता. ट्यूलिप फूल की पत्तियां भी गुलाब की तरह बिखर जाती हैं. ट्यूलिप फूल खिलने पर सुन्दर दिखाई देता है, उससे पहले कली के तौर पर भी उसकी इतनी ही सुन्दरता होती है.
सोने से भी महंगा था ट्यूलिप
नीदरलैंड ने 2020 में ही ट्यूलिप के बल्ब के निर्यात से 220 मिलियन यूरो कमाए थे. इतिहास गवाह है कि इस फूल ने नीदरलैंड में कई लोगों की किस्मत बदल डाली और रातों रात अमीर बना दिया था. सोलहवीं शताब्दी में एक वक्त ऐसा भी था जब ट्यूलिप नीदरलैंड से निर्यात किये जाने वाले सामान की फेहरिस्त में चौथे नंबर पर था. आलम ये था कि इसके बल्ब को करंसी के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाने लगा था. डच में 1634-1637 के दौर में इसके बल्ब की कीमत सोने से भी ज्यादा थी और आलम ये कि इस फूल के प्रति रुझान और असर को देखते हुए इस दौर को 'ट्यूलिप मेनिया' नाम ही दे दिया गया. इस दौर ने नीदरलैंड की पूरी अर्थव्यवस्था को चौपट कर डाला था. फिर भी ये यहां लोगों के जहन में राज करता रहा.
ट्यूलिप का सफर
ट्यूलिप मूल रूप से मध्य एशिया में जंगली फूल के तौर पर तकरीबन एक हज़ार साल पहले पाया गया और वहीं के किसानों ने पहले पहल ट्यूलिप की खेती शुरू की थी. इसके फूल को ये नाम फारसी के दलबंद (Dulband) और तुर्की शब्द टलबंद (Tulband) से मिला जिसका मतलब है पगड़ी यानि टर्बन (Turban).
तने पर खिलने वाला ट्यूलिप फूल दरअसल पगड़ी के आकार का है जैसे किसी ने इसे सिर पर पहन रखा हो. ट्यूलिप तुर्की का राष्ट्रीय फूल ज़रूर है, लेकिन नीदरलैंड ने उसे ज्यादा अपनाया और इसकी किस्में विकसित करने पर काम किया. अलग अलग आकार , रंग और उन रंगों में भी बेशुमार शेड्स के साथ ट्यूलिप विकसित किये गए.
दिल्ली में आने का मतलब
कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की इच्छा के मुताबिक़ ये पहल की गई है. वैसे प्लान ये था कि दिल्ली में ट्यूलिप 'वेलेंटाइन वीक' में अपने पूरे खुमार में आ जाएं, लेकिन सर्दी थोड़ी लंबी खिंच जाने से मौसम में आए बदलाव के कारण ट्यूलिप के खिलने में देरी हो गई. चुनिंदा जगह पर ही दिल्ली में ट्यूलिप लगाये गये हैं.
दिल्ली में ट्यूलिप का दीदार करते लोग.
लेकिन जिस तरह आम लोग इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं और इन फूलों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं, वो वाकई बागवानी करने वालों के लिए भी उत्साहवर्धक है. विभिन्न स्थानीय निकाय तो इससे प्रेरित होंगे ही इससे ट्यूलिप को अपनी अलग जगह या बाज़ार विकसित करने में भी मदद मिलेगी. हालांकि कई अन्य फूलों के मुकाबले इसका खिलना सीमित समय के लिए ही होता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)