क्या तेलंगाना के किसानों को नए चक्रव्यूह में फंसाएगी धान की बंपर पैदावार और खरीद की 'कामयाबी'

तेलंगाना के किसानों

Update: 2021-11-30 05:24 GMT
ओम प्रकाश।

धान की बंपर पैदावार को अपनी सफलता बताने वाली तेलंगाना सरकार के लिए इसकी खेती ही परेशानी का सबब बन गई है. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर धान की खरीद करने वाली केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम ने रबी सीजन के दौरान उत्पादित धान के स्टॉक को खरीदने से साफ इनकार कर दिया है. इसके बाद राज्य सरकार ने रबी सीजन में धान की खेती करने पर पाबंदी का एलान कर दिया है. अब वहां यह एक राजनीतिक सवाल बन चुका है. दरअसल, तेलंगाना में धान की बढ़ती खेती और खरीद ने दूसरी फसलों को पीछे छोड़ दिया है. केंद्र ने एक ही सीजन का धान (Paddy) लेने का फैसला किया है. ऐसे में अब किसानों को बिना कोई प्रोत्साहन दिए धान की खेती के लिए मना करना राज्य सरकार के लिए मुसीबत बन गया है.
तेलंगाना (Telangana) के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने सितंबर के दूसरे सप्ताह में अपने एक बयान में कहा था कि धान की खेती किसानों के लिए आत्मघाती होगी, क्योंकि एफसीआई ने रबी सीजन के दौरान पैदा होने वाले धान को खरीदने से इनकार कर दिया है. यह तो रही वर्तमान समस्या. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर राज्य सरकार और किसानों को फसल विविधीकरण (Crop Diversification) की बात समझ नहीं आई तो 15 से 20 साल बाद खेती में मुश्किलें बढ़ जाएंगी. लगातार एक ही फसल की खेती पर निर्भरता से सरकारी खरीद पर दबाव ज्यादा होगा, फसलों की उत्पादकता कम होगी और पानी का संकट खड़ा होगा. धान रखने की जगह नहीं मिलेगी.
खरीफ-रबी दोनों सीजन में धान
तेलंगाना के ज्यादातर किसान धान की खेती करने लगे हैं. इस पर एमएसपी मिलती है और सरकारी खरीद की गारंटी भी. जब फसल से कमाई और खरीद दोनों सुनिश्चित हो तो भला कोई दूसरी फसल की ओर क्यों भागेगा? लेकिन यही कामयाबी एक दिन ऐसा चक्रव्यूह बनाएगी कि किसान चाह कर भी इससे बाहर नहीं निकल पाएंगे. जैसा कि पंजाब में हो रहा है. वहां तो फिर भी गेहूं और धान दो प्रमुख फसलें हैं, तेलंगाना इससे एक कदम आगे है जहां खरीफ और रबी दोनों की प्रमुख फसल धान हो गई है. अब खेती में विविधता लाने की सलाह दी जा रही है. जिसे 'क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन' भी कहा जाता है.
छह साल में छह गुना खरीद बढ़ गई
तेलंगाना में धान की खरीद कितनी तेजी से बढ़ी है इसका उदाहरण देखिए. साल 2015-16 में यहां 23.57 लाख मिट्रिक टन धान की खरीद हुई थी, जो 2020-21 में छह गुना बढ़कर 141.11 लाख मिट्रिक टन हो गई. खरीद के साथ ही अंधाधुंध उत्पादन हो रहा है. इससे दूसरी फसलें हाशिए पर चली गईं.
धान की खेती को क्यों मिला बढ़ावा
पंजाब के बाद सबसे अधिक धान की खरीद यहीं से हो रही है. धान की बंपर पैदावार के पीछे बड़ी वजह यहां की नीतियां हैं. तेलंगाना देश का एकमात्र राज्य है जो अपने किसानों को खेती के लिए 24 घंटे मुफ्त बिजली की आपूर्ति कर रहा है. इस वजह से किसान पर्याप्त सिंचाई करने में सक्षम हुए हैं. पानी निकालने पर कोई रुकावट नहीं है. जिससे धान की खेती को बढ़ावा मिला है.
जबकि, ग्राउंड वॉटर इयर बुक 2020-21 के अनुसार, तेलंगाना के 584 खंडों में से 70 में पानी का काफी दोहन हो चुका है. जबकि 67 नाज़ुक स्थिति में हैं. केवल 278 खंड ही पानी के लिहाज से सुरक्षित कैटेगरी में हैं.
कितना बढ़ा रकबा
मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने 2020 में कहा था कि रिकॉर्ड स्तर पर धान की खेती होने के कारण तेलंगाना देश का चावल का कटोरा बन रहा है. साल 2014-15 में यहां धान का रकबा केवल 12.23 लाख एकड़ ही था जो 2021 में रिकॉर्ड 63 लाख एकड़ हो गया. पांच छह साल में ही इतनी वृद्धि.
कितना उत्पादन
खरीफ सीजन 2021 में तेलंगाना में 1.48 करोड़ मीट्रिक टन धान उत्पादन का अनुमान लगाया गया है. जबकि तेलंगाना को स्थानीय खपत के लिए एक साल में 83.5 लाख मीट्रिक टन धान की ही जरूरत होती है. एक तरह से तेलंगाना अब भारत के नए धान के कटोरे के रूप में उभरने के मार्ग पर है, लेकिन साथ ही साथ नया संकट भी है.
हम चावल नहीं पानी एक्सपोर्ट कर रहे हैं
विशेषज्ञों का कहना है कि धान की ज्यादा खेती और उसमें अंधाधुंध उवर्रकों के इस्तेमाल से धीरे-धीरे फसलों की पैदावर कम होने लगेगी. मिट्टी की गुणवत्ता खराब होगी. ऐसे में कुछ साल बाद धान की खेती किसानों के लिए बहुत मुनाफे का सौदा नहीं रह जाएगी. खाद्य और कृषि संगठन में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रहे प्रो. रामचेत चौधरी हमारा ध्यान दूसरी समस्या की ओर खींच रहे हैं. उनका कहना है कि हम चावल नहीं बल्कि पानी एक्सपोर्ट (Export) कर रहे हैं. क्योंकि एक किलो चावल 3000 लीटर पानी से पैदा होता है.
वही धान उगाने की जरूरत है जो एमएसपी से महंगा हो.
किसानों को देना होगा प्रोत्साहन
सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस, हैदराबाद में एग्रीकल्चर निदेशक देवी प्रसाद जुववाड़ी ने टीवी-9 डिजिटल से बातचीत में कहा, "धान की फसल कभी तेलंगाना की सफलता थी, लेकिन अब यही वक्त के साथ मुसीबत बन गई है. सरकार ने अल्टरनेटिव फसलों पर काम नहीं किया. जबकि सभी फसलों का बैलेंस बनाने की जरूरत थी. तेलंगाना में पहले आधा दर्जन महत्वपूर्ण फसलें थीं. ज्वार और मक्का खूब होता था. लेकिन अब सिर्फ धान रह गया है. जो लांग टर्म के लिए ठीक नहीं है. अगर खेती और किसानों को बचाना है तो धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को प्रोत्साहन देकर फसल विविधीकरण की ओर ले जाना होगा."
तेलंगाना में धान की खरीद
मार्केटिंग सीजन लाख मिट्रिक टन
2020-21 141.11
2019-20 111.26
2018-19 77.46
2017-18 54.00
2016-17 53.67
2015-16 23.57
Source: FCI
खरीद और खपत का बैलेंस बनाना होगा
रूरल एंड अग्रेरियन इंडिया नेटवर्क (RAIN) के अध्यक्ष प्रो. सुधीर सुथार कहते हैं कि इंसेंटिव, खरीद और खपत का बैलेंस बनाना होगा, वरना किसी एक ही फसल की जरूरत से अधिक खेती सरकार, समाज और किसान तीनों के लिए खतरे से कम नहीं है. आज पंजाब के अनुभव से देखें तो हमें यह समझना होगा कि जो हमारा एग्रीकल्चरल सिस्टम है वो कितना इकोनॉमिकली सस्टेनेबल है.
किसी एक ही फसल की ज्यादा पैदावार के बाद खरीद बड़ा मुद्दा होता है. एक बार जितनी खरीद हो गई, किसान को उम्मीद बंध जाती है कि आगे इससे अधिक ही होगी. इसके बाद स्टोरेज और परचेज दोनों की समस्या आती है. मोनोक्रॉपिंग की वजह से रेट डाउन होता है.
कभी सरकारों की नीतियों ने इंसेंटिव इतना ज्यादा दिया कि उत्पादन बढ़ गया, लेकिन उस हिसाब से स्टोरेज कैपिसिटी नहीं बनाई. यह भी नहीं देखा गया कि वो फसल बिकेगी कहां? दूरदर्शी सोच के अभाव में अब दिक्कत आ रही है. सरकार के पास धान रखने की जगह और उसकी खपत का बाजार नहीं है तो ऊपर से उस पर सरकारी खरीद का दबाव है.
दूसरी समस्या पर्यावरण से जुड़ी हुई है. क्योंकि इसमें पानी की खपत ज्यादा होती है. किसी एक खास फसल को प्रमोट करने के साथ इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसकी खरीद कितनी हो सकती है और उस खरीद की खपत कहां पर होगी. इसका संतुलन बनाए बिना बात नहीं बनेगी. इस समस्या से निपटने के लिए मल्टीक्रॉप्स सिस्टम डेवलप करना होगा.
आगे का रास्ता
कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि जहां पर पर्याप्त पानी उपलब्ध है वहां पर धान की फसल होनी ही चाहिए, लेकिन जहां पर पानी की कमी है वहां इसकी फसल को हतोत्साहित करने की जरूरत है. क्योंकि पानी ही नहीं रहेगा तो भविष्य की पीढ़ियां खेती कैसे करेंगी? वही धान पैदा करने की जरूरत है जो महंगा हो. हरियाणा में जल संकट को देखते हुए इसकी खेती को हतोत्साहित किया जा रहा है. इसी के तर्ज पर अन्य राज्यों को भी रोडमैप बनाना होगा.
हरियाणा में धान की खेती छोड़ने पर किसानों को प्रति एकड़ 7000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. साथ ही दूसरी फसल का मुफ्त बीज एवं उसकी खरीद की गारंटी दी जा रही है. इस पहल से एक लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन धान मुक्त हो चुकी है.
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