तेजस्वी की जल्दबाजी कहीं लालू यादव के लिए घातक साबित ना हो जाए?
तेजस्वी की जल्दबाजी
खबर बेहद दुखद है. लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को शायद बिहार (Bihar) का हवा और पानी रास नहीं आया. उनकी तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब है जिसके कारण उन्हें पिछले बुधवार को दिल्ली वापस लाया गया और शीघ्र ही उन्हें सिंगापुर के एक नामी अस्पताल में ले जाने की तैयारी चल रही है. ताकि वहां उनके बेहद ख़राब किडनी का ट्रांसप्लांट ऑपरेशन यथाशीघ्र हो सके. लालू के परिवार ने फिलहाल सिंगापुर के अस्पताल से संपर्क किया है और वहां से हरी झंडी मिलने के बाद लालू का परिवार झारखण्ड हाई कोर्ट में उनके विदेश यात्रा के लिए आवेदन कर सकता है.
लालू यादव फ़िलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं. उनकी ख़राब तबियत के कारण इस साल जनवरी में उन्हें एयर एम्बुलेंस से दिल्ली लाया गया था और दिल्ली में ही एम्स के डॉक्टरों की निगरानी में उनका इलाज चल रहा था. डायबिटीज के कारण उनकी किडनी ख़राब हो गई है और ठीक से काम नहीं कर पा रही है जिस कारण अब किडनी ट्रांसप्लांट करना ही एकलौता विकल्प बच गया है. लालू यादव चारा घोटाले के लिए जेल की सजा काट रहे थे और जमानत पर हैं. किसी भी सजायाफ्ता मुजरिम को विदेश जाने के लिए कोर्ट की स्वीकृति कानूनी रूप से अनिवार्य है.
कई बीमारियों से ग्रसित हैं लालू यादव
इस साल की शुरुआत में जब लालू यादव को रांची से दिल्ली लाया गया था तो रांची के रिम्स (राजेंद्र इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज) जहां उनका इलाज चल रहा था, ने कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसके अनुसार लालू यादव 16 बीमारियों से ग्रसित हैं. रिपोर्ट में बताया गया था कि लालू यादव डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, प्रोस्टेट का बढ़ना, यूरिक एसिड का बढ़ना, किडनी की बीमारी, किडनी में स्टोन, थैलीसीमिया (रक्त से संबंधित बीमारी), ब्रेन से सम्बंधित बीमारी, दाहिने कंधे की हड्डी में दिक्कत, पैर की हड्डी की समस्या, आंख में दिक्कत, POST AVR (हृदय से सम्बंधित), आदि बीमारियों से ग्रस्त हैं.
क्या लालू यादव को इस हालत में पटना लाना उचित था?
ऐसे किसी बीमार व्यक्ति को दिल्ली से पटना ले जाना और सिर्फ इस लिए कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) विधानसभा उपचुनाव में दो सीटें जीत सके एक बड़ा सवाल पैदा करता है. क्या उनकी यह हालत थी कि उपचुनाव में उनकी रैली का आयोजन हो सके? अगर उपचुनाव के नतीजे से सरकार गिरने की संभावना ना हो तो आम तौर पर उपचुनावों का ज्यादा महत्व नहीं होता है. सभी को पता था कि अगर बिहार में सत्तापक्ष दोनों सीट हार भी जाये तो सरकार फिर भी सुरक्षित रहेगी. लालू यादव की लम्बी अनुपस्थिति में आरजेडी की बागडोर लालू यादव के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव के हाथों में थी. तेजस्वी अभी युवा और अनुभवहीन हैं. पिता लालू यादव और मां राबड़ी देवी दोनों मुख्यमंत्री रह चुके हैं और तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने की जल्दी पड़ी है. पिछले साल के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के नेतृत्व वाला महागठबंधन 12 सीटों से बहुमत से चूक गया. चुनाव नजदीकी था पर बहुमत नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को मिला. और उस समय से ही तेजस्वी एनडीए को तोड़ कर सरकार बनाने की विफल कोशिश में जुटे हुए हैं.
तेजस्वी यादव ने सपना देख लिया है कि अगर उपचुनाव में आरजेडी दोनों सीट जीत जाये तो एनडीए टूट जायेगी और वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे. इस कारण तेजस्वी ने कांग्रेस पार्टी से गठबंधन तोड़ डाला और कांग्रेस के साथ सीट साझा करने की जगह दोनों सीटों पर आरजेडी के उम्मीदवारों को उतारने का फैसला किया. कांग्रेस ने भी दोनों सीटों पर अपना उम्मीदवार उतार दिया. उपचुनाव, चुनाव कम और तेजस्वी के लिए ईगो की लड़ाई बन गयी. कांग्रेस से किसी भी सीट की जीतने की उम्मीद नहीं थी, पर कांग्रस वोटकटुवा का काम करने में सक्षम थी. चुनाव फंस गया और तेजस्वी ने अपने बीमार पिता को बिहार लाने का फैसला किया.
किडनी ट्रांसप्लांट के लिए लालू यादव को सिंगापुर ले जाया जाएगा
अपने बेटे के लिए लालू यादव ने भरपूर कोशिश की, पटना पहुंचते ही ऐलान कर दिया कि वह बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विसर्जन करने आये हैं और उपचुनाव का परिणाम आने के बाद राज्य में आरजेडी की सरकार बनेगी. कुशेश्वरस्थान और तारापुर में लालू यादव की चुनावी सभा का आयोजन किया गया. लोग भारी संख्या में लालू को देखने और सुनने आये और किसी को शक नहीं रहा कि उनकी तबियत ख़राब है, उनकी स्मरण शक्ति भी कमजोर हो गयी है. उपचुनाव हुआ और नीतीश कुमार की जनता दल-यूनाइटेड दोनों सीटों पर कामयाब रही. तेजस्वी का सपना भंग हो गया और तालू यादव की तबियत और बिगड़ने लगी.
माना जा रहा है कि शारीरिक तौर पर लालू यादव अभी इस स्थिति में नहीं थे कि चुनावी सभा में शरीक हो सकें और लोगों से पटना में मिलें. भारी तादाद में लोग लालू से मिलने आते रहे और स्वास्थ्य की अनदेखी हुई. उनकी तबियत इतनी बिगड़ गयी कि आनन फानन में उन्हें दिल्ली लाना पड़ा और अब सिंगापुर ले जाने की तैयारी चल रही है.
किडनी ट्रांसप्लांट से किसी की आयु थोड़े समय के लिए ही बढ़ पाती है, हमेशा के लिए नहीं. अपने आप में यह इलाज नहीं है, बस कुछ समय के लिए राहत है. सिंगापुर के उसी नामी अस्पताल में समाजवादी पार्टी नेता अमर सिंह का भी किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था पर मुश्कील से एक-दो साल गुजरने के बाद अमर सिंह गुजर गए. लालू यादव की राजनीती से सहमत होना जरूरी नहीं है. बिहार के चुनावों में अब जब भी उनका नाम आता है तो लोगों को जंगल राज की याद ताज़ा हो जाती है, जिसका आरजेडी को नुकसान ही होता है.
लालू यादव के बिहार जाने और राजनीति में सक्रीय होने से उपचुनाव में आरजेडी को कोई फायदा तो नहीं मिला, उल्टे उनकी तबियत बिगड़ गयी. सवाल यही है कि क्या उन्हें बिहार ले जाना उचित था? कहीं ऐसा ना हो जाए कि तेजस्वी यादव की जल्दबाजी लालू यादव के लिए जानलेवा साबित हो जाए!