18 जिलों में फूलनदेवी की मूर्ति लगाने का ऐलान कर मुकेश सहनी यूपी में अपनी पार्टी को खड़ा कर पाएंगे?
देश की राजनीति में हर जाति ने एक देवता बना लिया है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संयम श्रीवास्तव| भार देश की राजनीति में हर जाति ने एक देवता बना लिया है. उस जाति के लोगों का वोट पाने का सबसे आसान तरीका हो गया है उस जाति के किसी महापुरुष की मूर्ति लगाई जाए. मूर्ति लगी तो गुड, नहीं लग सकी तो वेरी गुड. क्योंकि सरकार को घेरने का मौका और अपनी जाति के उत्पीड़न को साबित करने का मौका मिल जाता है. इस क्रम में अब अपने समय की कुख्यात डकैत और पूर्व एमपी स्वर्गीय फूलन देवी (Phoolan Devi) का नाम भी आ गया है. बिहार में प्रचार-प्रसार के बल पर अपनी राजनीति चमकाने वाले वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) ने ऐलान किया है कि यूपी के 18 जिलों में फूलनदेवी की मूर्ति लगवाने का ऐलान कुछ दिनों पहले किया था. अब खबर है कि मुकेश सहनी की पार्टी ने आरोप लगाया है रविवार को बनारस में उनकी पार्टी के पोस्टर बैनर पुलिस ने फाडे़ हैं. कार्यकर्ताओं को जुटने से रोका गया है. मतलब है कि राजनीति तो चमकेगी ही मूर्ति लगे या न लगे. मकसद दो पूरा हो ही गया.
गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) के महज कुछ ही महीने और बाकी हैं. तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को साधने के लिए हर तरह का प्रयास कर रही हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले लोगों को पता है कि यहां की पूरी सियासत जातिगत समीकरणों पर आधारित होती है. यहां जाति का वर्चस्व इतना ज्यादा है कि उनके आधार पर कई बड़े राजनीतिक दल भी बन गए हैं. 'विकासशील इंसान पार्टी' यानि वीआईपी बिहार में निषाद समुदाय का नेतृत्व करती है. लेकिन अब उत्तर प्रदेश में भी अपनी जड़ें जमाने का सपना लिए यूपी में पधार चुके हैं.
वीआईपी पार्टी की योजना
25 जुलाई यानि आज दस्यु सुंदरी यानि फूलन देवी की पुण्यतिथि होती है, आज के दिन यूपी में कई बड़े अखबारों में फुल पेज के विज्ञापन देकर वीआईपी पार्टी अपने आगमन की घोषणा कर चुकी है. वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने पहले घोषणा कर रखी है कि वह उत्तर प्रदेश के 18 जिलों में फूलन देवी की प्रतिमाएं स्थापित करेंगे. मुकेश सहनी की पार्टी बिहार में एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं. दरअसल वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी बिहार के बाद अब उत्तर प्रदेश के 7 फ़ीसदी मल्लाह समुदाय के वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं. हालांकि उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी पहले से है जो इस समुदाय का नेतृत्व करती है, जिसके प्रमुख हैं संजय निषाद और वह खुद भी उत्तर प्रदेश में एनडीए का हिस्सा हैं. ऐसे में मुकेश सहनी का उत्तर प्रदेश की सियासत में कदम रखना कहीं ना कहीं बीजेपी और निषाद पार्टी दोनों के लिए खतरा साबित हो सकता है. हालांकि ऐसी पार्टियों को बड़ी पार्टियां अपना मतलब साधने के लिए खुद जमीन पर उतारती हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि मुकेश सहनी किसके साथ होते हैं.
पूरी रणनीति के हिसाब से चुने हैं जिले
मुकेश सहनी ने बहुत सोच समझकर पूरी जांची परखी रणनीति के हिसाब से ही इन अट्ठारह जिलों को चुना है जहां मल्लाह समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है और यही उन्होंने फूलन देवी की प्रतिमाएं स्थापित करने की बात कही है. इन जिलों में प्रयागराज, फिरोजाबाद, बलिया, संत कबीर नगर, बांदा, अयोध्या, सुल्तानपुर, गोरखपुर, महाराजगंज, औरैया, लखनऊ, उन्नाव, मेरठ, मिर्जापुर, संत रविदास नगर, मुजफ्फरनगर, बनारस और जौनपुर शामिल है. उत्तर प्रदेश के इन जिलों में निषाद वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है. यह समुदाय उत्तर प्रदेश के तकरीबन 20 लोकसभा सीटों और 60 विधानसभा सीटों पर प्रभावी साबित होता है.
उत्तर प्रदेश के अति पिछड़ा वोट बैंक पर मुकेश सहनी की कितनी पकड़ है
उत्तर प्रदेश के निषाद वोट बैंक पर मुकेश सहनी, संजय निषाद जैसे नेताओं के रहते सेंध लगा पाएंगे ऐसा जमीन पर होता कम ही दिखाई दे रहा है. मुकेश सहनी बिहार की राजनीति करते हैं, हो सकता है उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों पर उन्हें थोड़ा बहुत वोट जरूर मिल जाए. लेकिन इतना वोट मिल जाए कि वह किसी सीट पर अपने कैंडिडेट को जीत दिला सकें इसकी उम्मीद कम ही देखी जा रही है. दरअसल संजय निषाद जैसे नेता दशकों से उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय की राजनीति करते आ रहे हैं और उनके मुद्दों को मुखरता से उठाते हैं. मुकेश सहनी भले ही आज फूलन देवी की मूर्ति स्थापित कर उत्तर प्रदेश के मल्लाहों से खुद को जोड़ने का काम कर रहे हों, लेकिन वह इसमें कामयाब होंगे इस पर संशय बरकरार है.
प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं मुकेश सहनी
मुकेश सहनी बिहार में जेडीयू सरकार का हिस्सा हैं, हालांकि बीच में कुछ अनबन की भी खबरें आई थीं. मुकेश सहनी नीतीश सरकार में खुश नहीं है. अब उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव से पहले सक्रिय होकर मुकेश सहनी भारतीय जनता पार्टी की मुसीबत बढ़ा रहे हैं. दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में इस समुदाय का ज्यादातर वोट बीजेपी को मिला था. लेकिन अब अगर मुकेश सहनी सक्रिय रूप से उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय की राजनीति करते हैं तो इससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
हालांकि जानकार मानते हैं कि मुकेश सहनी यह सब कुछ इसलिए कर रहे हैं ताकि वह बीजेपी पर प्रेशर बना सकें और बीजेपी उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी में एनडीए का हिस्सा बना ले और कुछ सीटें उनकी झोली में डाल दे. बीजेपी को और मुकेश सहनी दोनों को पता है कि अकेले मुकेश सहनी किसी भी विधानसभा सीट पर जीतने में सक्षम होंगे इसकी उम्मीद कम है. बिहार में जहां वे करीब 10 सालों से राजनीति कर रहे हैं वहां भी कुछ खास नहीं कर सके हैं. हालांकि वह वोट कटवा के रूप में जरूर नजर आ सकते हैं, जिसका सीधा नुकसान भारतीय जनता पार्टी को होगा. इसलिए अब देखना दिलचस्प होगा की बीजेपी मुकेश सहनी के इस प्रेशर पॉलिटिक्स से कितना दबाव में आती है और क्या करती है.
संजय निषाद के विकल्प के रूप में भी आ सकते हैं मुकेश सहनी
संजय निषाद इस वक्त भले ही उत्तर प्रदेश में एनडीए का हिस्सा हैं. हालांकि वह समय-समय पर बीजेपी को अपना तेवर दिखाते रहते हैं. अभी कुछ दिन पहले ही जब केंद्र में मंत्रिमंडल विस्तार हुआ था तो उनके तेवर सबके सामने दिखे थे. दरअसल संजय निषाद चाहते थे कि उनके बेटे प्रवीण निषाद को भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिले. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. लेकिन अब खबर आ रही है कि संजय निषाद को योगी मंत्रिमंडल विस्तार में जगह मिल सकती है. क्योंकि बीजेपी इन छोटे दलों को चुनाव से पहले नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती है.
बात यूपी में मुकेश सहनी की करें तो उनके निषाद समुदाय की सक्रिय राजनीति से जितनी परेशानी बीजेपी को नहीं है उससे ज्यादा संजय निषाद को है. क्योंकि मुकेश सहनी का मजबूत होना संजय निषाद की कमज़ोरी को बयां करेगा और संजय निषाद ऐसा कभी नहीं चाहेंगे. ऐसे में अगर मुकेश सहनी यूपी के निषाद समुदाय में अपनी पैठ बनाने में कामयाब हो जाते हैं तो बीजेपी के लिए संजय निषाद की जगह एक और विकल्प मिल जाएगा और फिर बीजेपी संजय निषाद के इतने दबाव में नहीं रहेगी जितना इस वक्त है.
फूलन देवी डकैत से मसीहा तक
मल्लाह समुदाय (निषाद समुदाय का एक अंग) से आने वाली फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को यूपी के जालौन के घूरा का पुरवा में हुआ था. 10 साल की उम्र में फूलन देवी की शादी उनसे 40-50 साल बड़े आदमी से कर दी गई. हालांकि बाद में वह घर छोड़ कर वापस मायके आईं तो उनके भाई ने उन्हें फिर से ससुराल भेज दिया लेकिन तब तक उनके पति ने दूसरी शादी कर ली थी और उन्हें घर छोड़ना पड़ा. बाद में उनका उठना बैठना डकैतों के साथ होने लगा. हालांकि आज तक यह कभी क्लीयर नहीं हुआ की वह अपनी मर्जी से डकैतों के साथ गईं थीं या फिर उन्हें डकैत उठा कर ले गए थे. अपनी आत्मकथा में फूलन देवी लिखती हैं कि 'शायद किस्मत को यही मंजूर था.' बाद में बाबू गुज्जर जो गैंग का मुखिया था और डकैत सदस्य विक्रम मल्लाह के बीच फूलन को लेकर जंग हो गई और विक्रम ने बाबू गुज्जर की हत्या कर दी और खुद गैंग का सरदार बन गया.
इसके बाद होती है एक ऐसी घटना जिसमे फूलन देवी को फूलन देवी बनाया. दरअसल बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज ठाकुरों के एक गैंग श्री राम ठाकुर और लाला ठाकुर ने विक्रम मल्लाह के गैंग पर हमला कर उसे मार दिया और फूलन देवी को अपने गांव कानपुर देहात के बहमई उठा ले गए. जहां उनके साथ 3 हफ्ते तक दुर्व्यवहार किया गया. फूलन देवी फिर यहां से छूट कर निकलीं और 1981 में फिर वापस इसी गांव में अपनी गैंग के साथ अपना बदला लेने आईं. फूलन ने वहां 2 लोगों को पहचान लिया जिन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया था.
हालांकि बाकी के लोग नज़र नहीं आए. लेकिन फूलन देवी बदले की आग में इतनी ज्यादा तपी हुई थीं कि उन्होंने बेहमई गांव के 22 ठाकुरों को खड़ा कर उन्हें गोली मार दी. इसके बाद 1983 में उन्होंने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. उन्होंने ग्वालियर की जेल में 11 साल बिताए और 1994 में रिहा हो गईं. इसके बाद 1996 में मुलायम सिंह की सरकार ने निषाद समुदाय को खुश करने के लिए उनके खिलाफ हुए सभी मुकदमों को वापस ले लिया और उन्हें मिर्जापुर से सांसदी का टिकट दे दिया, जहां से वह जीत भी गईं. हालांकि बाद में 25 जुलाई 2001 को उनके दिल्ली स्थित घर के बाहर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.