क्या चुनावों तक वास्तव में अकेली पड़ जाएगी ममता

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तीन महीने से भी कम का समय बाकी है। भाजपा और टीएमसी में तकरार चरम पर है।

Update: 2021-02-15 02:10 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तीन महीने से भी कम का समय बाकी है। भाजपा और टीएमसी में तकरार चरम पर है। तृणमूल कांग्रेस पर मंडराता संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। केंद्रीय स्तर पर तृणमूल का चेहरा माने जाने वाले दिनेश त्रिवेदी ने राज्यसभा में ही अपने इस्तीफे का एलान कर सभी को चौंका दिया है। इस्तीफे का एलान करते हुए त्रिवेदी ने जो कहा है वह भी काबिले गौर हैं। उन्होंने साफ कहा है कि मुझसे अब देखा नहीं जा रहा, मुझे घुटन महसूस हो रही है। आज मैं देश के लिए, बंगाल के लिए अपना इस्तीफा दे रहा हूं।

पश्चिम बंगाल में अब तक हमने मध्य पीढ़ी के नेताओं को ही तृणमूल छोड़कर जाते देखा है, लेकिन पार्टी का एक दिग्गज और अपेक्षाकृत ज्यादा शालीन नेता अगर कह रहा है कि उसे घुटन महसूस हो रही है, तो यह तृणमूल के लिए खतरे की घंटी है। दिनेश त्रिवेदी से पूर्व भी काफी नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामा था लेकिन तब इस बात का संकेत यह नजर नहीं आ रहा था कि बंगाल में तृणमूल का आगामी चुनाव में सफाया हो जाएगा लेकिन दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफे के बाद इतना तय है कि पश्चिम बंगाल से ममता सरकार की विदाई का संकेत मिल गया है। बीजेपी और टीएमसी के कार्यकर्ता कई बार आपस में लड़ चुके हैं।
लेकिन बिहार में सत्ता में वापसी के बाद भाजपा के हौसले इतने बुलंद हैं कि उसने पश्चिम बंगाल में 200 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य तय कर लिया है। देखा जाए तो इस बात में कोई दो राय नहीं कि 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने बंगाल में काफी बेहतरीन प्रदर्शन किया है। उसको 40.64 प्रतिशत वोट मिले और उसने 18 सीटें जीत लीं। इस हिसाब से ममता की टीएमसी को कुल 42 सीटों में से उससे सिर्फ 4 सीटें ज्यादा यानि 22 सीटें मिलीं और महज 3 प्रतिशत ज्यादा यानि 43.69 प्रतिशत वोट मिले थे। यदि 2014 के भाजपा के प्रदर्शन से इसकी तुलना करेंगे तो यही समझ में आएगा कि अगले चुनाव के लिए उसका मैदान साफ है। क्योंकि, तब उसे केवल 17.02 प्रतिशत वोट और दार्जीलिंग और आसनसोल की दो सीटें ही मिली थीं।
2021 के चुनाव में तृणमूल के पास नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध जैसा मुद्दा है। करीब 27 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में उसके पास धु्रवीकरण के लिए यह सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता है। बिहार चुनाव जीतने के बाद भाजपा का मनोबल ऊंचा है। अब उसके सामने पश्चिम बंगाल में तृणमूल का किला ढहाने की चुनौती है। उसके बड़े नेताओं ने बंगाल में डेरा जमा लिया है। वहीं टीएमसी भी भाजपा पर वार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। ममता बनर्जी अब तक यही मानती आ रही हैं कि उनकी पार्टी के 'दागदार' नेताओं के लिए भाजपा वॉशिंग मशीन है। क्या वह दिनेश त्रिवेदी को भी दागदार मानेंगी? अब यह देखने वाली बात है कि तृणमूल अपने वरिष्ठ नेता पर कैसे हमलावर होगी।
दिनेश त्रिवेदी के आरोप कहीं गहरे हैं कि पार्टी को ऐसे लोग चला रहे हैं, जो राजनीति का क ख ग नहीं जानते। अब यह विश्लेषण का विषय है कि दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफे से पश्चिम बंगाल की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? उनके भारतीय जनता पार्टी में आने से समीकरण कितने बदलेंगे? क्या यह भाजपा की एक बड़ी राजनीतिक कामयाबी है? भाजपा तो पहले ही बोल चुकी है कि चुनाव आने तक ममता बनर्जी अकेली पड़ जाएंगी, क्या वाकई बंगाल के समीकरण उसी दिशा में बढ़ रहे हैं?


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