मानवता के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक ध्वनि प्रदूषण पर जल और वायु प्रदूषण जितना ध्यान क्यों नहीं दिया जाता

ध्वनि प्रदूषण पर जल और वायु प्रदूषण

Update: 2022-04-22 08:16 GMT
एम हसन | 
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जुलाई 2005 में रात 10 बजे से सुबह 6 बजे (आपातस्थिति के मामलों को छोड़कर) के बीच सार्वजनिक स्थलों पर लाउडस्पीकर और म्यूजिक सिस्टम के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था. अदालत ने यह फैसला ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) से लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले गंभीर प्रभावों का हवाला देते हुए सुनाया था. हालांकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने धार्मिक स्थानों को निर्देश दिया है कि वे लाउडस्पीकर के माध्यम से हाई डेसिबल शोर पैदा करने से बचें. लेकिन जरूरत ये है कि इस तरह की अन्य गतिविधियों को रोकने के लिए भी निर्देश दिए जाएं. क्योंकि लोगों के स्वास्थ्य के लिए वे भी उतनी ही खतरनाक साबित हो रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट के अलावा यूपी, कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा, उत्तराखंड और मुंबई जैसे विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों ने भी धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों की आवाज को नियंत्रित करने के आदेश जारी किए हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2016 में कहा था कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल मौलिक अधिकार नहीं है, और कोई भी धर्म या संप्रदाय यह दावा नहीं कर सकता कि संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा उन्हें लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली के अधिकार की गारंटी दी गई है. पूरा देश ध्वनि प्रदूषण की गंभीरता से जूझ रहा है ऐसे में देश के सभी राज्यों को यूपी के उदाहरण से सीख लेकर उसे अपने राज्यों में भी लागू करना चाहिए.
पर्यावरण संकट ने सांप्रदायिक रूप अख्तियार कर लिया है
दुर्भाग्य से राजनीतिक कारणों की वजह से हाल ही में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के नेता राज ठाकरे और अलीगढ़ के बीजेपी विधायक द्वारा केवल मस्जिदों में लाउडस्पीकर का मुद्दा उठाने के चलते पर्यावरण संकट ने सांप्रदायिक रूप अख्तियार कर लिया. शोर चाहे कहीं से भी उत्पन्न हो, पूरे देश में ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 की खुलेआम अवहेलना हुई है. जिसने बार-बार अदालतों को मामले में हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया है.
वास्तव में ध्वनि प्रदूषण पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना कि जल और वायु प्रदूषण पर. जबकि इसका स्वास्थ्य पर बहुत खराब प्रभाव पड़ रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी एक स्टडी में इस बात के संकेत दिए हैं कि ध्वनि प्रदूषण की वजह से 12 से 35 साल की उम्र के लगभग 1.1 बिलियन युवाओं की सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
जबकि इस बात के सबूत हैं कि रात के दौरान ध्वनि प्रदूषण से नींद खराब होती है. WHO के मुताबिक नींद की कमी थकान, दुर्घटना और शारीरिक क्षमता में कमी का कारण बनती है. इससे कई तरह की शारीरिक परेशानियां और ब्लड प्रेशर बढ़ने की समस्या भी होती हैं. अब समय आ गया है कि इस मुद्दे से जुड़े सांप्रदायिक रंग को खत्म किया जाए और इसके मानवीय और स्वास्थ्य संंबंधी नजरिए को समझा जाए. यूपी ने इस दिशा में सही रास्ता दिखाया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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