अफगानिस्तान मसले पर भारत क्यों बुला रहा है NSA की बैठक? चीन और पाकिस्तान के बिना कितना सफल होगा ये?

अफगानिस्तान में इस वक्त तालिबान का शासन है

Update: 2021-11-09 13:46 GMT

संयम श्रीवास्तव अफगानिस्तान में इस वक्त तालिबान का शासन है. तालिबान के शासन से पहले अफगानिस्तान की हुकूमत और भारत की हुकूमत के साथ रिश्ते बहुत अच्छे थे. भारत ने अफगानिस्तान में लगभग 3 अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है. लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद से वहां की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं है. यही वजह है कि भारत ने अफगानिस्तान की आंतरिक स्थिति को ठीक करने और अफगानिस्तान के लोगों में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए एक एनएसए बैठक बुलाने का फैसला किया है.

इस बैठक में अफगानिस्तान के तमाम पड़ोसी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों को एक साथ बिठाकर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ चर्चा होगी. लेकिन अफगानिस्तान और भारत दोनों से जमीनी सीमा साझा करने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान ने इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है. जानकार मानते हैं कि चीन भी शायद ही इस बैठक में हिस्सा ले. सवाल उठता है कि जिस अफगानिस्तान के आंतरिक मामले को चीन और पाकिस्तान ने मिलकर बिगाड़ा है, उसे उनके बिना कैसे सुलझाया जाएगा.
मध्य एशिया में भारत का प्रभाव बढ़ेगा
माना जा रहा है कि मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की इस बैठक की वजह से मध्य एशिया में भारत का प्रभाव बढ़ेगा. भारत बैठक की मेजबानी 10 नवंबर को करेगा. इसमें तजाकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाखस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ-साथ रूस और ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी शामिल होंगे. लेकिन पाकिस्तान और चीन ने इस बैठक में शामिल ना होने का फैसला करके यह दिखा दिया है कि वह भारत की बढ़ती लोकप्रियता से खुश नहीं हैं.
उन्हें पता है कि अगर भारत की यह बैठक सफल हो जाती है, तो मध्य एशिया में चीन जिस तरह से अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है कहीं ना कहीं भारत उसे ओवरटेक कर लेगा. और पाकिस्तान को यह डर है कि अगर इस बैठक से अफगानिस्तान का हल निकल जाता है तो अफगानिस्तान की जनता के बीच भारत की लोकप्रियता और ज्यादा बढ़ जाएगी जो भविष्य में उसके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है.
क्या भारत के इस कदम से अफगानिस्तान में स्थिरता आएगी?
अफगानिस्तान में स्थिरता तब तक नहीं आ सकती जब तक कि उसके पड़ोसी देश ऐसा ना चाहें. क्योंकि अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है. भारत अफगानिस्तान का भले ही निकटवर्ती पड़ोसी देश ना हो, लेकिन भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते दशकों से बेहतर रहे हैं. यही वजह है कि भारत अब आगे बढ़कर अफगानिस्तान के अंदर स्थिरता लाना चाहता है और इसके लिए वह अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के साथ बातचीत कर रहा है. इन तमाम पड़ोसी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की 10 नवंबर की बैठक में अगर कोई निर्णायक कदम उठा लिया गया तो इससे पूरे विश्व में भारत की छवि मजबूत होगी और अफगानिस्तान के अंदर भी शांति बहाल होगी.
हालांकि भारत ने अभी तक तालिबान के शासन को आधिकारिक रूप से मंजूरी नहीं दी है. भारत में अभी भी तालिबान एक गैर कानूनी संगठन है. लेकिन जिस तरह की परिस्थितियां अमेरिका के जाने के बाद अफगानिस्तान में बनी, उसे देखकर भारत शायद अफगानिस्तान और तालिबान से जुड़ी अपनी नीतियों में कुछ बदलाव करे और ऐसे निर्णय ले जिससे दोनों देशों के बीच फिर से रिश्ते बेहतर हो सकें.
किन मुद्दों पर हो रही है बैठक
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की नई दिल्ली में होने वाली इस बैठक में अफगानिस्तान में तालिबान के शासन की वजह से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा आर्किटेक्चर और अफगानिस्तान की सीमा के अंदर और बाहर फैले आतंकवाद, कट्टरता, उग्रवाद और नशीली दवाओं के तस्करी से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत चर्चा होगी. इसके साथ ही इस बैठक में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में छोड़े गए हथियारों के तालिबान द्वारा संभावित उपयोग पर भी चर्चा होगी. इस बैठक में ईरान के रियर एडमिरल अली शामखानी, रूस के एनएसए निकोलाई पी पात्रुशेव, कजाकिस्तान के करीम मासिमोव, किर्गिस्तान के मराट मुकानोविच इमांकुलोव, ताजिकिस्तान के नसरुलो रहमतजोन महमूदजोदा, तुर्कमेनिस्तान के चारीमिरत काकलयेवविच अमावोव और उज्बेकिस्तान के मखमुदोव शामिल होंगे.
पाकिस्तान नहीं चाहता अफगानिस्तान में शांति आए
पाकिस्तान का फायदा हमेशा से तभी है जब अफगानिस्तान में अशांति रहे और वहां खून खराबा होता रहे. पाकिस्तान को पता है कि अगर अफगानिस्तान में शांति बहाल हो गई और वहां की सरकार एक स्थिर सरकार के तौर पर चलने लगी तो उसकी भारत के खिलाफ अफगानिस्तान से आतंकी गतिविधियां चलाने का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा. इसलिए पाकिस्तान कभी भी अफगानिस्तान को शांत नहीं देख सकता. दरअसल ऐसा पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने इस तरह की बैठक में हिस्सा न लेने का फैसला किया है. साल 2018-19 में ईरान ने भी इसी तरह की एक बैठक की मेजबानी की थी, लेकिन पाकिस्तान ने उसमें भी शामिल होने से इंकार कर दिया था.
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