मुस्लिम नेताओं को ही क्यों है शादी के लिए लड़कियों की उम्र बढ़ाने पर ऐतराज़
केंद्र सरकार (Central Government) ने शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया है
यूसुफ़ अंसारी केंद्र सरकार (Central Government) ने शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया है. केंद्रीय मंत्रीमंडल ने इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि केंद्र सरकार के इस क़दम पर बहस छिड़ गई है. लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि मुस्लिम नेता मोदी सरकार के इस फ़ैसले का ज़्यादा विरोध कर रहे हैं. कई नेताओं ने बेहद आपत्तिजनक और बेतुके बयान भी दे दिए हैं. उनके बयानों से महिलाओं के प्रति उनकी सोच को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदुल मुसलमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने मोदी सरकार के इस प्रस्ताव के खिलाफ तीखे तेवर दिखाते हुए मोर्चा खोला है. शुक्रवार को उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट करके मोदी सरकार पर हमला बोला. ओवैसी ने सवाल उठाया है कि देश का संविधान जब 18 साल की उम्र में लड़कियों को सरकार चुनने का अधिकार देता है तो फिर जीवन साथी चुनने के अधिकार के लिए लड़कियों की उम्र 21 साल क्यों की जा रही है. उन्होंने लड़का और लड़की दोनों के लिए शादी की उम्र 18 साल करने की मांग की. ओवैसी ने इस फैसले को लेकर मोदी सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा क़नून के बावजूद देश में बाल विवाह बड़े पैमाने पर हो रहे हैं. लेकिन ऐसा करने वालों के ख़िलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाती.
संवैधानिक अधिकारों का हवाला
ओवैसी ने संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा, 'मोदी सरकार ने महिलाओं के लिए शादी की उम्र बढ़ाकर 21 करने का फैसला किया है. यह पितृसत्तात्मक सोच है जिसकी हम सरकार से उम्मीद करते आए हैं. 18 साल के पुरुष और महिला कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, व्यवसाय शुरू कर सकते हैं, प्रधान मंत्री चुन सकते हैं और सांसदों और विधायकों का चुनाव कर सकते हैं. लेकिन शादी नहीं कर सकते?' उन्होंने इसे बेहद हास्यास्पद बताया कि 18 साल की उम्र में लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं, लेकिन जीवन साथी नहीं चुन सकते. उन्होंने लड़का और लड़की दोनों को कानूनी तौर पर 18 साल की उम्र में शादी करने की अनुमति देने की वकालत की, क्योंकि अन्य मामलों में इसी उम्र में कानून उन्हें वयस्क मानता है.
एसपी सांसद बर्क़ के बिगड़े बोल
ओवैसी ने ख़ैर तो सधे हुए शब्दों में प्रतिक्रिया दी है. लेकिन कई नेताओं ने बेहद आपत्ति जनक बाते कही हैं. सबसे ऊपर नाम है एसपी सांसद शफीकुर्रहामान बर्क़ (Shafiqur Rahman Barq) का. बर्क़ ने शर्मो लिहाज की सारी सीमाएं लांघते हुए कहा कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने से उनकी आवारगी बढ़ेगी. हालांकि बाद में उन्होंने मीडिया पर अपने बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया. लेकिन अपनी बात पर अड़े रहे. बर्क़ ने यह कह कर विवाद थामने की कोशिश की कि देश का महौल खराब है. ग़रीबी की वजह से लोग जल्द ही अपनी लड़कियों की शादी की ज़िम्मेदारी पूरा करना चाहते हैं, लिहाज़ा इसे बढ़ाया नहीं जाना चाहिए. बर्क़ के बोल पहले भी कई बार बिगड़ चुके हैं. बिगड़े बोलों से वो पहले भी कई बार अपनी और अपनी पार्टी की फजीहत करा चुके हैं.
एसपी सांसद एस टी हसन की भी फिसली ज़ुबान
समाजवादी पार्टी के एक और सांसद एसटी हसन ने भी इस मुद्दे पर बेहद आपत्तिजनक बाते कही हैं. एसटी हसन ने कहा है कि लड़कियों की शादी की उम्र 21 नहीं 16-17 कर दी जानी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि अगर शादी में देर होगी तो वह पोर्नोग्राफी वाले वीडियो देखेंगी. गंदी फिल्में देखेंगी और यह आवारगी ही है. इसमें कोई फर्क नहीं है. हसन ने ये भी कहा की शादी जल्दी होगी तो वो बच्चे जल्दी पैदा कर पाएंगी, क्योंकि फर्टिलिटी की उम्र 15 से 30 साल होती है. उन्होंने कहा कि ऐसे में शादी की उम्र में देरी नहीं होनी चाहिए. एसटी हसन ने सवाल करते हुए आगे कहा कि अगर लड़की 18 साल की उम्र में वोट दे सकती है तो शादी क्यों नहीं कर सकती है.
बर्क़ और हसन पर नक़वी क पलटवार
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने एसपी सांसदों शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ और एसटी हसन को उनके बयानों के लिए आड़े हाथों लिया है. नक़वी ने अपनी ही बेटियों के बारे में ऐसे बेतुके बयान देने वालों को तालिबानी विचारधारा का क़रार दिया है. नक़वी ने कहा कि ऐसे घटिया बयान देने वाले हिंदुस्तानी विचाराधारा के हो नहीं सकते. नकवी ने कहा कि भारतीय महिलाओं को संविधान से जो समानता का अधिकार मिला है, उसपर किसी भी तरह के तालिबानी सोच को हावी होने नहीं दिया जाएगा. नक़वी बोले, 'लड़कियों की शादी की उम्र अगर 21 वर्ष कर दी जाए तो वे दुष्ट हो जाएंगी. ये कहना बिलकुल ही बेतुका है. इस तरह के बयान मुझे चौंकाते हैं. मैं उनसे यह जानना चाहता हूं कि आख़िर लड़कियां दुष्ट क्यों हो जाएंगी? क्या आप उनपर भरोसा नहीं करते हैं?'
मुस्लिम नेताओं को ही क्यों है आपत्ति
शादी के लिए लड़कियों की उम्र बढ़ाने का फैसला सबके लिए है. ये समान रूप से सबपर लागू होगा. तो फिर मुस्लिम नेता ही इसका विरोध क्यों कर रहे हैं. बर्क़ और हसन ने यह भी कहा है कि वो संसद में इस विधेयक का विरोध करेंगे. यहां यह सवाल उठता है कि क्या एसपी नेतृत्व भी इसके ख़िलाफ़ है. इस बारे में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपनी पार्टी की स्थिति साफ़ करनी चहिए. अगर वो इसके खिलाफ़ हैं तो पार्टी बाक़ायदा बायान जारी करे. अगर वो सरकार के इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं तो पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ बयान देने वाले अपनी पार्टी के सांसदों को इसके ख़िलाफ़ बयान देने से रोकें. सभ्य समज में महिलाओं के प्रति नेताओं की ऐसी घटिया सोच और बयानबाज़ी के ज़रिए उसके भौंडे प्रदर्शन को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए.
क्या मुस्लिम समाज में कम उम्र में होती है लड़कियों की शादी?
बर्क़ और हसन के अलावा झारखंड के मंत्री ने भी ठीक ऐसा ही एक बयान देकर लड़कियों की उम्र बढ़ाने के केंद्र सरकार के फैसेले का विरोध किया है. इन मुस्लिम नेताओं के बयानों से ऐसा लगता है मानो मुस्लिम समाज में कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है और केंद्र सरकार ने इसे रोकने के लिए ही उम्र बढ़ाने का फैसला किया है. हालांकि ये बात तथ्यात्मक रूप से ग़लत है. पढ़े लिखे लड़के और लड़कियों की शादी आमतौर पर 25 से 30 साल की उम्र में होती है. वहीं गांव देहात में ज़रूर शादियां कम उम्र में होती हैं. इसके लिए शिक्षा की कमी के अलावा सामाजिक हालात और आर्थिक स्थिति भी ज़िम्मेदार होती है. ऐसा समाज के सभी वर्गों में होता है. इससे सिर्फ़ मुस्लिम समाज प्रभावित होगा, ऐसा नहीं माना जाना चाहिए.
क्या कहते हैं समाजशास्त्री
समाजशास्त्रियों का मानना है कि शादी की उम्र कम होने से, कम उम्र में लड़कियां मां बनती हैं. इससे मां और बच्चे की सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता है. कम उम्र में शादी होने से मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर बढ़ जाती है. कम उम्र में शादी होने से लड़कियों की शिक्षा और जीवन स्तर पर बुरा असर पड़ता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 2.3 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही कर दी जाती है. गांवों की स्थिति शहरों के मुकाबले ज्यादा ख़राब है. गांवों की 2.6 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है. शहरों में ये आंकड़ा 1.6 प्रतिशत हैं. पश्चिम बंगाल का रिकॉर्ड सबसे खराब है. वहां पर 3.7 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले और 33.2 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 से 20 की उम्र में होती है.
बाल विवाह के लगातार बढ़ते आंकड़े
देश में बाल विवाह यानि 18 वर्ष से कम उम्र में शादी के मामले 50 प्रतिशत तक बढ़े हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2020 में बाल विवाह के 785 मामले दर्ज किए गए थे. ये आंकड़ा वर्ष 2019 के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक था. साल 2019 में बाल विवाह की 523 शिकायतें आई थीं. बाल विवाह के सबसे ज्यादा मामले कर्नाटक में दर्ज किए गए, पिछले 5 साल का रिकॉर्ड देखें तो 2015 से 2020 तक बाल विवाह की शिकायतों में बढ़ोतरी हुई है. 2015 में बाल विवाह के 293, 2016 में 326, 2017 में 395, 2018 में 501, 2019 में 523 और 2020 में 785 केस दर्ज हुए हैं. ये आंकड़े लोगों की जागरुकता के संकेत तो देते हैं, लेकिन साथ ही चिंताजनक बात ये है कि बाल विवाह की ये कुप्रथा बंद नहीं हुई.
43 साल बाद हो रहा है शादी की उम्र में बदलाव
देश में शादी की उम्र में ये बदलाव 43 साल बाद किया जा रहा है. इससे पहले 1978 में ये बदलाव किया गया था. तब 1929 के शारदा एक्ट में संशोधन किया गया और शादी की उम्र 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी. प्रधानमंत्री मोदी ने 2020 में स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने का ऐलान किया था. इस पर जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था. 10 सदस्यों वाली इस टास्क फोर्स ने जाने-माने स्कॉलर्स, कानूनी विशेषज्ञों, और नागरिक संगठनों से सलाह ली थी. देश की महिला प्रतिनिधियों से भी बातचीत की गई. इसने दिसंबर 2020 में अपनी रिपोर्ट नीति आयोग को दे दी थी. उसी की सिफारिश पर अब केंद्र सरकार ने यह फैसला किया है. इतने गहन विचार विमर्श बाद किए गए फैसले पर सतही बयानबज़ी से नेताओं को बाज़ आना चाहिए. महिलाओं को असम्मानित करने वाले बयान तो बिल्कुल ही नहीं आने चाहिए.