मुख्यमंत्री ने अपनी बात करते हुए साफ किया कि , 'मेरे राजनीतिक सलाहकार के रूप में प्रशांत किशोर की भूमिका सीमित है, वह केवल सलाह देने के लिए हैं. वह किसी भी तरह पार्टी की निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं' कैप्टन अमरिंदर यहीं नहीं रुके उन्होंने कैंडिडेट चयन की पूरी प्रक्रिया को ही समझा दिया. उनके इस बयानबाजी का केवल एक मतलब था कि विधायकों और पार्टी में
टिकट के आकांक्षी ये बात अच्छी तरह से समझ लें कि पार्टी के टिकट बंटवारे में पार्टी की जो प्रक्रिया हो उसी का पालन किया जाएगा न कि प्रशांत किशोर जैसे किसी व्यक्ति की भूमिका होगी.
1- पार्टी में कई पावर में सेंटर, इसलिए प्रशांत किशोर के खिलाफ असंतोष तो बढ़ना ही है
दरअसल पंजाब कांग्रेस में कई गुट हैं. सभी गुट को साधना पार्टी हाईकमान के वश में भी नहीं है. पंजाब कांग्रेस और अमरिंदर सिंह के बारे में जो जानते हैं उन्हें पता है कि कैप्टन किसी की नहीं सुनते . फिलहाल प्रशांत किशोर की नियुक्ति के बारे में भी कहा जाता है कि ये संगठन के लेवल पर किसी को नहीं पता था. पार्टी में पहले से प्रदेश लेवल पर 3 पावर सेंटर थे अब प्रशांत किशोर के आने के बाद कहा जाने लगा था एक और सेंटर बन गया. इस तरह प्रशांत किशोर के लिए फैसलों का विरोध तो होना ही था. पंजाब कांग्रेस के प्रभारी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, नवजोत सिंह सिद्ध और राज्यसभा सांसद और पूर्व पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा के अलग-अलग गुट पहले से ही कैप्टन से भिड़ते रहते हैं.
2- 30 विधायकों के टिकट कटने की आशंका के चलते किशोर के खिलाफ शुरू हुई लॉबिंग
प्रशांत किशोर अलग तरीके से काम करते हैं, यही वजह है कि परम्परागत तरीके से राजनीति करने वाले नेता खास तौर से बुजुर्ग और बड़े नेता इससे काफी परेशान रहते हैं. उनकी परेशानी का सबब केवल यही नहीं है, दरअसल राज्य में एंटी-इनकंबेंसी को कम करने के लिए प्रशांत किशोर लगभग मौजूदा 30 विधायकों का टिकट काटने वाले हैं और कुछ विधायकों का स्थानातंरण हो सकता है. प्रशांत किशोर के इसी रवैये और काम करने के तरीके की वजह से हर जगह उनसे पार्टी के नेता परेशान रहते हैं. राजनीतिक गलियारों में खबर है कि कुछ बड़े नेताओं के भी टिकट कट सकते हैं जो मौजूदा कैप्टन सरकार में मंत्री हैं इसमें बलबीर सिद्धू और श्याम सुंदर अरोड़ा का नाम सबसे ऊपर है. हालांकि कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अमरिंदर सिंह इतने बड़े नेताओं को नाराज करने का रिस्क नहीं उठा सकते इसलिए कोई बीच का रास्ता भी निकाला जा सकता है. खैर कुछ भी हो, लेकिन पार्टी के मौजूदा विधायक इस चिंता से परेशान हैं कि 2022 विधानसभा चुनाव में उनका टिकट कटेगा या बचेगा.
3-अमरिंदर के पोते निर्वाण से प्रशांत किशोर की नजदीकी
प्रशांत किशोर की पुरानी आदत है, वह जिस भी राजनीतिक पार्टी के साथ काम करते हैं वहां कोई ना कोई एक केंद्र बिंदु ढूंढ ही लेते हैं जिसके साथ उनकी अच्छी बनती है. बंगाल में उनके केंद्र बिंदु अभिषेक बनर्जी थे वहीं बिहार में नितीश कुमार. लेकिन इन केंद्र बिंदुओं की वजह से वहां के अन्य नेताओं की आफत हो जाती है क्योंकि फिर फैसले सिर्फ प्रशांत किशोर और उनका केंद्र बिंदु ही करता है. इस वजह से वहां के नेताओं को लगता है कि पार्टी में उनका कोई वजूद ही नहीं है. बंगाल में यही वजह थी की शुभेंदु अधिकारी समेत दर्जनों नेताओं ने टीएमसी छोड़ दी. अब पंजाब में भी हमें कुछ ऐसा ही देखने को मिल सकता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि प्रशांत किशोर की अमरिंदर सिंह के पोते निर्वाण से कुछ ज्यादा ही बनती है. आपको बता दें निर्वाण अमरिंदर परिवार के सबसे चहेते लोगों में से एक हैं. जाहिर सी बात है दादा अमरिंदर सिंह भी पोते निर्वाण की ही सुनेंगे.
4-प्रशांत किशोर का कॉर्पोरेट स्टाइल
प्रशांत किशोर के काम करने का तरीका थोड़ा अलग और नया है जिसकी वजह से ज्यादातर स्थानीय और उन नेताओं को परेशानी होती है जो डायरेक्ट उनके टच में नहीं रहते हैं. लेकिन प्रशांत किशोर ने अपने तरीके से हिंदुस्तान की राजनीति को बदल कर यह साबित भी किया है कि आज की राजनीति उनके हिसाब वाले रणनीति से ही चलती है. प्रशांत किशोर पर आरोप है कि विधायकों की सीआईडी रिपोर्ट निकलवा रहे हैं. कहा जा रहा है कि जिसकी सीआईडी रिपोर्ट खराब है उसका टिकट कट जाएगा. प्रशांत किशोर ने 2014 के लोकसभा चुनाव, जिसमें वे नरेंद्र मोदी के रणनीतिकार थे. उस चुनाव में प्रशांत किशोर ने आईटी सेल को जन्म दिया. जिसने मोदी को ब्रांड मोदी बना दिया और बीजेपी भारी बहुमत से जीती. आज उसी का प्रयोग हर राजनीतिक पार्टी कर रही है. प्रशांत किशोर डेटा पर काम करने वाले व्यक्ति हैं वह यह देखते हैं कि किसका डेटा क्या कह रहा है और वह उसी हिसाब से काम करते हैं. प्रशांत किशोर के साथ पुराने नेताओं की यही समस्या है.
5-बिहार और बंगाल में भी प्रशांत किशोर के साथ ऐसा हुआ था
प्रशांत किशोर इस वक्त बंगाल में ममता बनर्जी के साथ काम कर रहे हैं और उनके लिए बीजेपी के खिलाफ चुनावी रणनीति बना रहै हैं. लेकिन बंगाल में जैसे ही प्रशांत किशोर की एंट्री हुई उससे टीएमसी के कई बड़े नेता नाराज हो गए और यहां तक कहने लगे कि अब प्रशांत किशोर हमें राजनीति सिखाएंगे. लेकिन प्रशांत किशोर को ममता बनर्जी की खुली छूट थी और उनके साथ ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी भी थे जिस वजह से उन्होंने बंगाल में खुल कर अपने हिसाब से फैसले लिए. टीएमसी के लिए उसका खमियाजा यह हुआ कि उसके बड़े-बड़े नेताओं ने पार्टी से बगावत कर ली और बीजेपी में शामिल हो गए. शुभेंदु अधिकारी उसमें मुख्य हैं, जो व्यक्ति कभी टीएमसी में ममता के बाद दूसरा सबसे बड़ा नेता था और जिसे ममता का साया कहा जाता था आज वही नंदीग्राम से ममता के खालिफ खड़ा है. बिहार में भी प्रशांत किशोर को यही झेलना पड़ा था. जब वह बिहार में नीतीश कुमार के साथ काम करने गए तो नीतीश ने उन्हें राज्य में मंत्री का दर्जा दिया इसके साथ जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया. लेकिन इस बात से जनता दल यूनाइटेड के कुछ बड़े नेता नाराज थे, उन्हें लगा कि कल के आए व्यक्ति को जो सम्मान मिल रहा है वह उन्हें कभी नहीं मिला. जिसकी वजह से अंदर ही अंदर जेडीयू में नाराजगी बढ़ती चली गई. प्रशांत किशोर का इतिहास रहा है कि वह जिस भी पार्टी में गए हैं वहां के मुखिया और दो चार लोगों के अलावा उनसे पूरी पार्टी नाराज रहती है.