मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा

मुझे अपनी गौरी उतनी ही प्रिय है, जितना एक सरकारी ड्राइवर को सरकारी गाड़ी।

Update: 2021-09-07 06:32 GMT

दिव्याहिमाचल।

मुझे अपनी गौरी उतनी ही प्रिय है, जितना एक सरकारी ड्राइवर को सरकारी गाड़ी। बस $फ$र्क इतना है कि मेरी गौरी चारा खाने के बाद दूध ज़्यादा देती है जबकि सरकारी गाड़ी ज़्यादा तेल खाने के बाद भी माइलेज कम देती है। आपको बताता चलूं कि मैं प्यार से अपनी भैंसिया को गौरी कह कर बुलाता हूं, क्योंकि मुझे पूर्ण विश्वास है जिस तरह बच्चों के नाम भगवान के नाम पर रखने से पापी से पापी आदमी भी मरते व$क्त अगर बच्चों का एक बार भी नाम ले ले तो विष्णु लोक में उसकी डायरेक्ट एंट्री निश्चित है, उसी तरह मैं भी मुतमैयन हूं कि मरने पर मुझे बिना किसी आधार कार्ड के शिव लोक में सीधे एंट्री मिल जाएगी। किसी दबंग नेता या खड़ूस अ$फसर की सि$फारिश के बगैर। वैसे गौरी को गोरा बनाने के लिए मैंने हर क्रीम आजमाई, गोराई के सभी विज्ञापन दिखलाए। पर मुई ने किसी नेता या गिरहकट के चरित्र की तरह अपना रंग न छोड़ा। सूरदास की काली कमरिया ही बनी रही। कई बार सोचता हूं अगर वह गिरगिट की तरह अपना रंग बदलने में माहिर होती तो कम से कम मुझे प्रसन्न करने के लिए ही सही, थोड़ी देर के लिए ही सही, अपना रंग तो बदल लेती। एक दिन जब मैं बाबा राम देव की 'स्वर्णकांतिÓ क्रीम से गौरी की मालिश कर रहा था तो हाजी $कौल अचानक आ धमके। छूटते ही बोले, "अमां यार! काहे व$क्त बरबाद कर रहे हो? कहीं रात भी दिन में बदलती है।

अपनी गौरी पर हुए इस हमले के लिए मैं $कतई तैयार न था। छूटते ही बोला, "जब किसी सरकारी संस्थान का नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखने से वहां तमाम गड़बड़झाले $खत्म हो जाते हैं तो दूधाधारी बाबा की स्वर्णकंाति लगाने से मेरी गौरी, गोरी क्यों नहीं हो सकती? फिर अभी तो घोर कलियुग भी नहीं आया। दूध और केलों में अब तक कीड़े नहीं पड़े। वह छूटते ही बोले, "हां, कीड़े तो जन प्रतिनिधियों की ज़बान में भी नहीं पड़ते। स$फेद पहन कर भी काला ही उगलते हैं। "इससे तो मेरी गौरी अच्छी। काली होने के बावजूद स$फेद तो उगलती है। दूध के अलावा जुगाली भी स$फेद करती है। नेताओं की तो जुगाली भी उनकी ज़बान की तरह काली ही होती है।, मैं बोला। वह हंसे, "उधर ज़मीन से जुड़े बिहारी बचपन में और नेता बनने के बाद भैंस की सवारी करने के बावजूद अरबों का चारा गटक गए। एकाएक उनको जाने क्या सूझी। जितनी शीघ्रता से संसद में अधिनियम पास नहीं होते, उससे अधिक शीघ्रता से पास में रखा डंडा भैंसिया को दे मारा। अपनी गौरी पर हुए ज़बानी हमले से मैं किसी अंधभक्त की तरह आहत तो ज़रूर था, पर अभी तालिबानी नहीं बना था। लेकिन उसे डंडा पड़ते ही अब मैं भी मु$काबले पर उतर आया।

यकायक मेरे मुंह से शम्मी कपूर अभिनीत भैंस वाला गाना फूट पड़ा, "मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा, क्यों मारा, क्यों मारा, क्यों मारा, वह सरकारी चारा नहीं खाती, मेरा चारा खाती है, सड़कों पर गौमाता जैसी नहीं फिरती आवारा, आवारा, मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा, क्यों मारा, वह ठुमकती है, ठुमकती है पर आंदोलन में नहीं नचती नेता की तरह, नेता की तरह, वह दूजे के खेतों में घुसती है, घुसती है, पर नहीं करती $कब्ज़ा, $कब्ज़ा, वह सीधी-सादी बेचारी, बीन किसी की नहीं सुनती, नहीं सुनती, $खूब बजाती एकतारा, एकतारा, दुनिया को दिखलाती है, दिखलाती है, भैंस अ$क्ल से बड़ी सदा, बड़ी सदा, मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा, क्यों मारा, हां क्यों मारा। मुझे गाता देख मेरी संगीत विशारद गौरी ने भी मेरे सुर में अपने सुर मिलाना शुरू कर दिए। मौ$के पर बाबा हरवल्लभ संगीत सम्मेलन सजता देख हाजी $कौल पतली गली से निकल लिए।

पी. ए. सिद्धार्थ, लेखक ऋषिकेश से हैं



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