शरणार्थियों से बेरुखी क्यों?

म्यांमार के शरणार्थियों के मामले में भारत सरकार ने क्यों निर्मम रुख अपना रखा है,

Update: 2021-04-12 01:55 GMT

NI एडिटोरियल: म्यांमार के शरणार्थियों के मामले में भारत सरकार ने क्यों निर्मम रुख अपना रखा है, इसे समझना मुश्किल है। रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में सरकार के ऐसे रुख पर समझा गया था कि चूंकि रोहिंग्या मुसलमान हैं, इसलिए ये मौजूदा भाजपा सरकार की हिंदुत्व की नीति से मेल नहीं खाते। सरकार किसी रूप में मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति नरम रुख अपनाते नहीं दिखना चाहती। लेकिन अब आ रहे शरणार्थी बौद्ध हैं, जिन्हें बेरहमी से म्यांमार लौटाने पर सरकार तुली हुई है। क्या वह म्यांमार के सैनिक शासकों को नाराज नहीं करना चाहती, ताकि वे पूरी तरह चीन की गोद में ना चले जाएं? या उसे लगता है कि आज लोकतंत्र और मानव अधिकार के नाम पर जो दबाव उन सैनिक शासकों पर पड़ा है, वह कभी घूम फिर कर भारत सरकार पर भी आ सकता है?

इन तथ्यों पर गौर करें। पिछले दिनों म्यांमार के कई निर्वाचित जन प्रतिनिधि भाग कर भारत आ गए। पूर्व नेशनल लीड फॉर डेमोक्रेसी सरकार (जिसका तख्ता पलटा गया) से जुड़ी संस्था सीआरपीएच के मुताबिक उन जन प्रतिनिधियों को डर था कि कई और जन-प्रतिनिधियों की तरह सेना उन्हें भी हिरासत में ले लेगी। उधर भारत के पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि की है और कहा है कि फरवरी के बाद से इन जन प्रतिनिधियों समेत करीब 1800 लोग म्यांमार की सीमा पार कर भारत आ चुके हैं। इनमें से अधिकांश ने पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम में शरण ली हुई है। ये जन प्रतिनिधि राष्ट्रीय और प्रांतीय विधायिकाओं के सदस्य हैं। वे सभी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी के सदस्य हैं, जिन्होंने नवंबर 2020 के चुनावों में जीत दर्ज की थी। इसी चुनाव के नतीजों को विवादित बताते हुए सेना ने नई संसद की बैठक से कुछ ही घंटे पहले तख्ता पलट दिया था। खबरों के मुताबिक इस समय म्यांमार में सांसद और दूसरे जन प्रतिनिधि बड़े खतरे में हैं। उनकी तलाशी ली जा रही है। सैनिक उनका पीछा भी कर रहे हैं। असिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पोलिटिकल प्रिजनर्स नामक एक सिविल सोसायटी समूह के मुताबिक तख्तापलट के बाद से सेना ने हजारों लोगों को हिरासत में रखा हुआ है। उनमें 150 से ज्यादा हटाई हुई सरकार के सदस्य और सांसद हैं। तख्तापलट के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें करीब 600 लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन भारत ने इस पर सिर्फ विरोध की औपचारिकता ही निभाई है।



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