जब सड़क पर नमाज़ पढ़नी है तो मस्जिद क्यों बने हैं?
गुरुग्राम में बीच सड़क पर नमाज को लेकर विवाद
अभिषेक कुमार नीलमणि।
नमाज पढ़नी है, मस्जिद में जाइये. हनुमान चालीसा पढ़नी है, मंदिर में जाइये. लेकिन मंदिर-मस्जिद ना जाकर आप सड़क पर बैठ जाएंगे, तो इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है. सड़क चलने के लिए होती है. सड़क गाड़ियों के सरपट दौड़ने के लिए होती है. आम लोगों के टैक्स के पैसे से हाइवे और एक्सप्रेसवे बनाए ही इसलिए जाते हैं, कि उन्हें सुविधाओं का लाभ मिले.
मान लीजिए, आपके घर के किसी हार्ट पेशेंट को अचानक से अस्पताल जाना पड़े. लेकिन जैसे ही आप सड़क पर आएं और देखें कि रास्ता रोककर पचास लोग नमाज पढ़ रहे हैं. बीस मिनट के बाद ही रास्ता खुलेगा. अब आपका रिएक्शन क्या होगा? क्या आप सड़क पर बैठे लोगों को दम भर अपशब्द नहीं कहेंगे. और अगर भगवान ना करे, कुछ अपशकुन हो जाए तो फिर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी. ये भी आप जानते हैं.
गुरुग्राम में बीच सड़क पर नमाज को लेकर विवाद
अब बात खबर की करते हैं. गुरुग्राम के सेक्टर-47 में बीच सड़क पर बैठकर चंद लोग नमाज पढ़ रहे थे. स्थानीय लोगों ने विरोध जताया. बहन-बेटियों से अभद्रता की शिकायत की. तत्काल नमाजियों को हटाने की अपील की गई. मगर पुलिस के आला अधिकारी सुनते रहे, कार्रवाई कुछ नहीं हुई. किसी नमाजी को बीच सड़क से नहीं हटाया गया. लोगों ने आपत्ति जताते हुए पूछा कि अगर मैं यहां बीच सड़क पर बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करूंगा तो क्या यही पुलिस मुझे जेल में नहीं डाल देगी. गुरुग्राम पुलिस को विवाद सुलझाना था. कार्रवाई तो नहीं की पर कोशिश पूरी की. मगर मामला उल्टा हो गया. खुद गुरुग्राम पुलिस ही फंस गई. और वो भी एक ट्वीट के चक्कर में. क्योंकि इसी ट्वीट को गुरुग्राम पुलिस ने डिलीट भी कर दिया.
गुरुग्राम पुलिस ने ये ट्वीट डिलीट कर दिया है.
गुरुग्राम पुलिस ने बताया कि "सार्वजनिक स्थानों पर 'नमाज' के स्थान हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा आपसी समझ के बाद तय किए गए हैं और यह जगह उनमें से एक है. सांप्रदायिक सद्भाव और शांति बनाए रखना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है और हम इसे सुनिश्चित करेंगे". हालांकि ट्वीट को लेकर विवाद बढ़ता गया. अवैध अतिक्रमण को अपने गलत तर्कों से सही बताने वाली गुरुग्राम पुलिस ने अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया. किसी भी राज्य की पुलिस को ये अधिकार कैसे हो सकता है, कि सार्वजनिक संपत्ति के अवैध अतिक्रमण को कुतर्कों के आधार पर सही बताया जाए?
देवबंदी उलेमा ने माना, बीच सड़क पर नमाज नापाक
खैर बात नमाज की करते हैं. देवबंदी उलेमाओं की मानें तो 'हुजूर' के सामने एक शिकायत आई. शिकायत ये कि कुछ मुजाहिदीन रास्ते पर पड़ाव डाले हुए हैं, मतलब डेरा डाले हुए हैं. जिसके कारण रास्ते से गुजर रहे लोगों को दिक्कत हो रही है. तो अल्लाह के रसूल ने उसे गलत बताया. साफ शब्दों में कहा कि उन लोगों को जिहाद का सवाब नहीं मिलेगा. हुजूर ने भी कहा, मस्जिद इसीलिए बनाई गई हैं ताकि वहां नमाज पढ़ी जाए. उलेमाओं का दो टूक कहना है कि रास्ता रोकना गलत है. जो चीज जिस काम के लिए बनाई गई है, उसी के लिए उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए. सामाजिक चीज है, तो सामाजिक काम होना चाहिए. किसी को तकलीफ देकर जानबूझकर इबादत करना मुनासिब नहीं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी सड़क पर इबादत को गलत बताता है.
सड़क पर नमाज पढ़ते लोग.
इस्लाम में लोगों का सड़कों पर बैठना गलत है. लोगों को तिजारत वगैरह की जायज जरूरतों की वजह से वहां बैठने की इजाजत दी भी गई तो कुछ शर्तों के साथ कि वे रास्ते पर चलने वालों का हक न मारें. उनके लिए परेशानी खड़ी न करें. अब जहां सवाल यह होना था कि क्या सरकारी सड़क पर कब्जा करना एक गैर-इस्लामी या हराम नहीं है? जवाब में लोग दूसरे धर्म उत्सवों पर सवाल खड़े करते हैं. कांवड़ के लिए रास्ता रोकने पर जवाब मांगते हैं. पूछते हैं कि जागरण या बारात में नाचना, कूदना, शोर मचाना कैसे सही होगा. सड़क पर नाचना गाना भी सही नहीं है. इसे जायज नहीं ठहराया जा सकता है. पर क्या कांवड़ हर हफ्ते निकाली जाती है?
इस्लाम में पांच वक्त की नमाज की मान्यता
इस्लाम में पांच वक्त की नमाज जायज है. मान्यताओं के मुताबिक खास है. नमाज अल्लाह को राजी करने और उनसे माफी मांगने का जरिया है. माना जाता है कि नमाज अदा करते वक्त इंसान अल्लाह के सबसे करीब होता है. हर मुसलमान के लिए दिन में पांच बार नमाज वाजिब है. बचपन से उन्हें इसकी शिक्षा भी दी जाती है. फज्र यानि तड़के, जुहर यानि दोपहर, अस्र मतलब सूरज ढलने से पहले, मगरिब मतलब सूरज छिपने के बाद और ईशा यानि रात. इन्हीं पांच वक्त में नमाज पढ़ी जाती है. इसके अलावा भी नमाज पढ़ी जाती हैं जिसे नफील नमाज कहते हैं. लेकिन पढ़ने पर बेहद सवाब मिलता है. नमाज अदायगी किसी भी पाक साफ जगह पर पढ़ी जा सकती है, लेकिन इस्लाम में पुरुषों के लिए नमाज पढ़ना विशेष महत्व रखता है. हदीस के मुताबिक, पैगंबर मोहम्मद ने कहा है कि अकेले में नमाज अदा करने की तुलना में मस्जिद में नमाज अदा करना सत्ताइस गुना बेहतरीन है.
अब ऐसे में सवाल है कि किन मजबूरी में नमाजियों को सड़क पर आना पड़ता है. क्या उन्हें मस्जिद में जगह कम पड़ती है जिसके कारण वो सड़क पर नमाज पढ़ते हैं. और अगर वाकई ऐसी वजह है, तो क्यों नहीं पार्क, स्कूल के मैदान, पार्किंग की छत या फिर तमाम उन जगहों को अलॉट कर दिया जाए, जहां ना किसी को कोई तकलीफ हो और ना ही नमाजियों को कोई परेशानी. मगर सड़क को रोकना तो किसी भी कीमत पर उचित नहीं है.