कौन बनेगा राष्ट्रपति, वोटिंग में एनडीए पर भारी पड़ेगा विपक्ष

अभी राज्यसभा चुनाव की गहमागहमी समाप्त भी नहीं हुई थी कि गुरुवार को चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनावों की तारीखें घोषित कर दीं।

Update: 2022-06-11 03:35 GMT

नवभारतटाइम्स: अभी राज्यसभा चुनाव की गहमागहमी समाप्त भी नहीं हुई थी कि गुरुवार को चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनावों की तारीखें घोषित कर दीं। शुक्रवार को राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग वगैरह की खबरें तो कई राज्यों से आईं, लेकिन इनका राष्ट्रपति चुनावों को लेकर बनी दिलचस्पी पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला। एक तो बीजेपी की अगुआई वाला एनडीए खेमा पहले से ही मजबूत स्थिति में है। दूसरी बात यह कि इस बार का राष्ट्रपति चुनाव जिन वजहों से महत्वपूर्ण और दिलचस्प माना जा रहा है उनमें जीत हार का सवाल शामिल ही नहीं है। दिलचस्पी मुख्यत: चुनाव की प्रक्रिया में है।

उदाहरण के लिए, पहला सवाल यही है कि बीजेपी और एनडीए अपना प्रत्याशी किसे बनाते हैं। तकनीकी तौर पर मौजूदा राष्ट्रपति कोविंद को ही एक और कार्यकाल देने की संभावना अभी बनी हुई है, लेकिन पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद किसी भी राष्ट्रपति को दूसरा कार्यकाल नहीं मिला है। इस बार भी अगर ऐसी कोई योजना होती तो सत्तारूढ़ खेमे की तरफ से किसी न किसी रूप में संकेत आ चुका होता। अब तक की चुप्पी का मतलब यही माना जा रहा है कि कम से कम इस विकल्प को लेकर सत्तारूढ़ पक्ष मन बना चुका है। जहां तक अन्य विकल्पों की बात है तो मौजूदा बीजेपी नेतृत्व चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाना जाता रहा है। इसलिए किसी तरह का कयास लगाना जितना मुश्किल है, उतना ही दिलचस्प यह सवाल हो गया है कि आखिर बीजेपी नेतृत्व किसे चुनेगा और उसके जरिए मतदाताओं के किस हिस्से को प्रभावित करना चाहेगा। मगर सत्तारूढ़ खेमे से भी ज्यादा दिलचस्पी विपक्षी खेमे की गतिविधियों को लेकर है। कांग्रेस भले खुद को मुख्य विपक्षी दल मानती और कहती आ रही हो, प्रत्याशी चयन में उसकी कितनी चलती है, इस पर सबकी नजर रहेगी।

इसी में इस बात का भी संकेत छुपा होगा कि 2024 के चुनावी समर की तैयारियों के दौरान तमाम विपक्षी दलों के बीच कांग्रेस को कैसी हैसियत मिलने वाली है। जहां तक मौजूदा राष्ट्रपति की बात है तो यह मानना होगा कि उनका कार्यकाल उन्हें कोई ऐतिहासिक पल दिए बगैर समाप्त हो रहा है। राष्ट्रपति के कार्यकाल को दिलचस्प बनाने वाले कारक प्राय: दो ही होते हैं। एक, सरकार के बहुमत को मिलने वाली चुनौती और दो, राष्ट्रपति तथा सरकार की वैचारिक व दलीय पृष्ठभूमि का अंतर। कोविंद के कार्यकाल को न तो ये कारक मिले और न ही वह ज्ञानी जैल सिंह और एपीजे अब्दुल कलाम की तरह खुद को अपवाद साबित कर सके। मगर अगले राष्ट्रपति के कार्यकाल में ही 2024 के लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। सो, चुनाव के संभावित नतीजों से उपजी स्थितियों के संदर्भ में भी यह देखा जाएगा कि राष्ट्रपति भवन में इस बार किसे प्रवेश मिलता है।


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