कौन सच्चा, कौन झूठा
भारतीय क्रिकेट टीम का साउथ अफ्रीका दौरा शुरू होने से ठीक पहले कप्तान विराट कोहली और बीसीसीआई प्रेजिडेंट सौरव गांगुली के बीच उभरा विवाद बीसीसीआई की कार्य प्रणाली पर कई तरह के सवाल खड़े करता है।
भारतीय क्रिकेट टीम का साउथ अफ्रीका दौरा शुरू होने से ठीक पहले कप्तान विराट कोहली और बीसीसीआई प्रेजिडेंट सौरव गांगुली के बीच उभरा विवाद बीसीसीआई की कार्य प्रणाली पर कई तरह के सवाल खड़े करता है। मामला मूलत: विराट कोहली के टी-20 फॉरमैट की कप्तानी छोड़ने और वनडे इंटरनैशनल फॉरमैट की कप्तानी छीने जाने से जुड़ा है। कहने की जरूरत नहीं कि कोई भी खिलाड़ी किसी खास फॉरमैट या किसी खास भूमिका को लेकर यह फैसला कर सकता है कि वह उसके लिए उपलब्ध रहना चाहता है या नहीं।
ठीक ऐसे ही बीसीसीआई के सिलेक्टर्स यह फैसला कर सकते हैं कि किसी खास भूमिका के लिए उपलब्ध प्रत्याशियों में से किसे चुना जाए और किसे नहीं। लेकिन जब बात दुनिया की बेस्ट मानी जाने वाली क्रिकेट टीम और उसके सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले खिलाड़ी या कप्तान की हो तो उम्मीद की जाती है कि न केवल ये फैसले जहां तक संभव हो, आपसी बातचीत और तालमेल के साथ लिए जाएंगे बल्कि उन पर अमल भी इस तरह से होगा कि कोई भी पक्ष अनावश्यक रूप से उपेक्षित या अपमानित नहीं महसूस करेगा। अफसोस की बात है कि बीसीसीआई इस मामले में यह न्यूनतम अपेक्षा भी पूरी नहीं कर पाया।
हालांकि बीसीसीआई अध्यक्ष गांगुली का दावा है कि जब कोहली ने टी-20 फॉरमैट की कप्तानी छोड़ने का फैसला किया तो उन्होंने खुद कोहली को समझाया था कि वे ऐसा न करें। इसके बावजूद कोहली अड़े रहे। मजबूरन बोर्ड को उन्हें वनडे फॉरमैट की कप्तानी से भी अलग करना पड़ा क्योंकि दोनों मुकाबले वाइट बॉल फॉरमैट के हैं और एक फॉरमैट के दो कप्तान रखना ठीक नहीं होता। लेकिन इसके एकदम उलट कोहली कह रहे हैं कि टी-20 फॉरमैट की कप्तानी छोड़ने के उनके फैसले पर पुनर्विचार का सुझाव किसी ने नहीं दिया, बल्कि उसे एक अच्छे फैसले के रूप में लिया गया था। उनका यह भी कहना है कि वनडे फॉरमैट की कप्तानी से अलग करने का फैसला उन्हें अंतिम पलों में बताया गया।
यह जानने का फिलहाल कोई तरीका नहीं कि दोनों में से किसका दावा सही है और किसका गलत, लेकिन इन दो परस्परविरोधी दावों का सामने आना ही यह बताता है कि बीसीसीआई तालमेल बनाकर चलने में सफल नहीं हो पाया। गांगुली के रूप में बीसीसीआई को ऐसा प्रेजिडेंट मिला है जो खुद न केवल एक बेहतरीन क्रिकेटर रहा है बल्कि देश के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में भी गिना जाता है। यही नहीं अतीत में गांगुली खुद भी अपमानजनक व्यवहार का शिकार हो चुके हैं। इसलिए उनसे यह उम्मीद स्वाभाविक है कि कम से कम उनके कार्यकाल में खिलाड़ियों से सम्मानजनक व्यवहार होगा और बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता आएगी। मौजूदा प्रकरण ने साफ कर दिया है कि इन दोनों ही मोर्चों पर अपना रेकॉर्ड दुरुस्त करने के लिए बोर्ड और उसके प्रेजिडेंट को खासी मशक्कत करनी होगी।