जब जब जो जो होना है…
सीखने की प्रक्रिया के दो आयाम हैं। एक कहता है कि कड़ी मेहनत करो और कुछ पा लो, दूसरा कहता है कि सायास कुछ मत करो, जो जैसा हो रहा है उसे वैसा होने दो। सायास कुछ न करने के गणित को समझने के लिए पहले सायास करना जरूरी है।
स्वरांगी साने: सीखने की प्रक्रिया के दो आयाम हैं। एक कहता है कि कड़ी मेहनत करो और कुछ पा लो, दूसरा कहता है कि सायास कुछ मत करो, जो जैसा हो रहा है उसे वैसा होने दो। सायास कुछ न करने के गणित को समझने के लिए पहले सायास करना जरूरी है। यह ठीक वैसा ही है जैसे निर्विकार को समझने के लिए पहले किसी आकार पर ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। किसी दृष्टिहीन को दृष्टि नहीं मिल जाती तब तक उसकी छड़ी ही उसका सहारा होती है, वैसे ही सायास और अनायास की प्रक्रिया है। दृष्टि मिल जाने पर आपको सायास किन्हीं वस्तुओं को टटोलना नहीं पड़ता, वे आपकी आंखों के सामने अनायास आ जाती हैं, आपको सामने रखी वस्तु दिख जाती है।
अगर एक बार आपको अनायास करने की आदत लग जाती है, तो चीजें अधिक आसान हो जाती हैं, क्योंकि तब आप किसी दूसरी वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, स्थान आदि को अपने से ऊंचा दर्जा नहीं देते। सब समान हैं और सबके लिए समान हैं तो आपके लिए भी वह संभव हो जाता है, जो किसी और के लिए संभव हो सकता है। मार्शल आर्ट में हमेशा कहा जाता है कि शरीर को ढीला छोड़ो, तब ऊर्जा का प्रवाह आसानी से हो सकता है।
शरीर हो या अन्य कोई चीज, जब आप उसे ढीला छोड़ देते हैं कि जैसा होना है, होने दो तो जल, विद्युत, वायु के प्रवाह की तरह वह प्रवाह आसानी से होने लगता है। प्रवाह कभी एक समान नहीं रहता, वह आपको सचेत करता रहता है कि तब ऐसा था और अब ऐसा है। प्रवाह को रोकने की कोशिश करने पर विस्फोट होने की आशंका अधिक होती है, इसलिए उसे बहते रहने देना है, सायास न रोकना है, न बंद करना है, न उसके आड़े आना है।
इस स्थिरता को बनाए रखने के लिए आपको यह मानना होगा कि आप जो चाहते थे, वह आपके पास है। किसी चीज की आस नहीं करनी कि ऐसा होगा तो वैसा हो जाएगा, बल्कि इसके विपरीत सोचना है कि अगर वैसा हो जाता है तो आप कैसा व्यवहार करेंगे और वैसा व्यवहार करना है। कहते हैं कि कोई पैसे से अमीर-गरीब नहीं होता, मन से अमीर या गरीब होता है। अपने आप पर संदेह न करें कि हम ऐसा कर सकेंगे या नहीं, न ही अपने आप को रोकना है। आप अगर अच्छा महसूस करने लगेंगे तो आप किसी बात को लेकर उत्साहित भी होंगे अन्यथा निराशा आपको कब घेर लेगी, पता भी नहीं चलेगा। उत्साह है, इसका अर्थ है कि आप सही मायने में जी रहे हैं। खींच-तानकर अगर आप अपने भीतर उत्साह ला रहे हैं तो वह उत्साह नहीं, उसका छलावा है और छलावों से हमें बचना है।
उत्साहित, उल्ससित होना ही जीवन है। यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है और न ही हर समय खुश और उत्साहित रहना असंभव है। उत्साहित बने रहना इस बात का प्रतीक है कि आप जिस बात में विश्वास करते हैं उसके प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं। आप अपने अच्छे दिनों को लेकर सोचिए। उन अच्छे दिनों को जीते रहिए, उन्हें याद कीजिए, बुरे दिन, बुरी घटनाओं को नहीं। हमेशा से कहा जाता रहा है कि अगर आप किसी को हरा नहीं सकते तो उनके साथ हो लीजिए। इसका अर्थ है कि सहजीवन और साहचर्य के अर्थ को नए सिरे से समझिए।
अगर आप कुछ जान नहीं पा रहे तो उसे लेकर भी हताश मत होइए। ठीक है कि कई बातों से हम अनजान होते हैं, मगर अनजाने के साथ वैसे जीने का हुनर आना चाहिए जैसे हम उसे भली-भांति जानते हैं। मत भूलिए कि आप जो चाहते हैं वह पहले से मौजूद है। आप इस दुनिया का एक हिस्सा हैं तो दुनिया में जो है आप उससे बाहर कुछ नहीं चाह सकते। चिंता और संदेह को दूर कर दीजिए। अधैर्य के बजाए धीरज से काम लीजिए। वर्तमान पर ध्यान केंद्रित कीजिए और जोखिम उठाने की हिम्मत कीजिए। आप जो चाहते हैं वह होकर रहेगा, कैसे, कब इसकी चिंता करने की कोई तुक नहीं है।
आपका ध्येय अपने आप को ऊंचा उठाना है, आपके जीवन में जो बेहतर आने वाला है, उसके लिए खुद को तैयार करना है। आप कुछ चाह रहे हैं इसके एवज में ऐसा सोचिए कि जो चाहा जा रहा है, वह इस प्रतीक्षा में है कि कब आप उसके लिए पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं। अनजाने से डर को हटाने का आसान तरीका है कि सोचना शुरू कीजिए कि जो आप चाहते हैं, वह आपका ही है। थोड़ी खुली हवा में सांस लीजिए और थोड़ा रास्ता खाली भी छोड़िए कि आप तक पहुंचने वाली चीज आप तक पहुंच जाए। जो आ रहा है, उसे आने दीजिए। याद रखिए, जब जब जो जो होना है, तब तब, सो सो होता है।