जब यात्रा में कष्ट हो तो एक अनंत यात्रा को याद करें, कष्ट कुछ कम हो जाएंगे
ओपिनियन
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
यात्रा नाम ही तकलीफ का है। अपने-अपने ढंग से छोटी-बड़ी यात्रा सभी लोग करते हैं। मैंने भी कथाओं के सिलसिले में पिछले पच्चीस दिनों में लगातार और हर प्रकार के साधनों से यात्रा की और मेरा मानना है सफर कैसा भी हो, असुविधा से भरा जरूर होगा। यात्रा में तकलीफें क्यों मिलती हैं? दरअसल इसके पीछे जिम्मेदार वह सिस्टम और वे लोग ही होते हैं जो उसे सुगम भी बना सकते हैं।
कौन-सी बस कब फेल हो जाए, ट्रेन कितनी लेट हो जाए, फ्लाइट कब कैंसल हो जाए, इस तरह की तकलीफें तो आए दिन प्रसाद के रूप में बांटते हैं ये लोग। जब इंसान ही निकम्मे हों तो डिजिटल इंडिया क्या करे? कुछ जिम्मेदार लोग तो राक्षस जैसा व्यवहार करते हैं मुसाफिरों से। इनकी शिकायत करें तो किससे? इसलिए c
जन्म से मृत्यु तक की यात्रा में बीच में जीवन होता है। हम लोगों को जीवन यापन की जानकारी है, पर जीवन के रहस्यों के प्रति अनभिज्ञ हैं। जितना जीवन के प्रति जागरूक होंगे, उतनी हमारी अंतिम यात्रा दिव्य होगी। ऐसे ही जीवन के प्रति जागरूक लोगों को आजकल के साधनों की यात्रा में भी कष्ट उठाने का साहस आ जाएगा। एक बात और, यात्रा जो भी हो, स्वयं को सबसे बड़ा आश्वासन यह दें कि सबकुछ भगवान के भरोसे है, वही किसी तरह पार लगाएगा।