जब देश कई गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है, तब संसद में उन पर गहन विचार-विमर्श होना चाहिए
संसद का बजट सत्र भले ही तय समय से एक दिन पहले समाप्त हो गया हो
संसद का बजट सत्र भले ही तय समय से एक दिन पहले समाप्त हो गया हो, लेकिन कुल मिलाकर वह सुचारु रूप से चला। यह इसलिए उल्लेखनीय होने के साथ संतोष का विषय है, क्योंकि संसद के पिछले कुछ सत्र हंगामे से दो-चार हुए। इसके चलते न तो राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर व्यापक चर्चा हो सकी और न ही प्रस्तावित विधेयक पारित हो सके।
इसे विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए कि शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में हंगामे के चलते सत्र की समाप्ति पर सभापति वेंकैया नायडू को नाखुशी जताते हुए यह कहना पड़ा था कि उच्च सदन ने इस बार अपनी क्षमता से बहुत कम काम किया। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मानसून सत्र किस तरह इस कारण बर्बाद हो गया था, क्योंकि विपक्ष अपने उन सांसदों को लेकर संसद के भीतर-बाहर हंगामा करता रहा, जिन्हें उनके अशोभनीय आचरण के लिए निलंबित किया गया था।
इस हंगामे के जरिये विपक्ष एक तरह से अमर्यादित व्यवहार को सही साबित करने की कोशिश ही कर रहा था। ऐसे रवैये को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे केवल संसद की गरिमा ही नहीं गिरती, बल्कि अन्य विधानमंडलों को भी गलत संदेश जाता है। क्या इसे भूला जा सकता है कि अभी हाल में बंगाल विधानसभा में किस तरह हिंसा हुई?
यह महत्वपूर्ण है कि दो चरणों वाले संसद के बजट सत्र में जहां लोकसभा में 13 विधेयक पारित हुए और उसकी उत्पादकता सौ प्रतिशत से अधिक रही, वहीं राज्यसभा ने 11 विधेयकों को हरी झंडी दिखाई और उसकी उत्पादकता करीब 99 प्रतिशत दर्ज की गई। यह सिलसिला कायम रहे, इसके लिए सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों को प्रतिबद्धता दिखानी होगी। इस अवधारणा का एक सीमित महत्व ही है कि सदन चलाना सत्तापक्ष का उत्तरदायित्व है। नि:संदेह ऐसा ही है, लेकिन यदि विपक्ष हंगामा करने की ठान ले तो फिर सरकार सदन कैसे चला सकती है? सदन तो दोनों पक्षों के सहयोग और समझबूझ से ही चल सकता है।
आम तौर पर ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि उन्हें अपने पार्टी प्रमुख से यही सब करने को कहा गया होता है। जब देश कई गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है, तब संसद में उन पर गहन विचार-विमर्श होना चाहिए। यह तब होगा, जब सत्तापक्ष सकारात्मक तो विपक्ष रचनात्मक रवैये का परिचय देगा और राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर आम सहमति की राजनीति पर बल दिया जाएगा।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय