केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी का पत्रकारों के प्रति ऐसा अभद्र और अश्लील व्यवहार होगा, इसकी न तो अपेक्षा और न ही कल्पना की जा सकती है। पत्रकार अपना पेशेवर धर्म निभा रहे थे। मंत्री जी से सवाल पूछकर उन्होंने कोई अतिक्रमण नहीं किया था। मंत्री जवाब दें या चुपचाप वहां से चले जाएं, यह उनका विवेकाधिकार है, लेकिन पत्रकारों से गाली-गलौज करना, धक्के देना, पत्रकार का कॉलर पकड़ लेना, जबरन मोबाइल बंद कराना अथवा छीन लेना, धमकी देना आदि मंत्री का संवैधानिक व्यवहार नहीं, बल्कि गुंडई है। कमोबेश भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा ऐसा नहीं माना जाता। मंत्री के व्यवहार की कई संवैधानिक परिधियां हैं। वह तानाशाह या अभद्र नहीं हो सकता। ऐसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं है। मंत्री ने किन अपशब्दों का इस्तेमाल किया था, हम उन्हें लिख नहीं सकते। हमारी नैतिकता ऐसा नहीं करने देती। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर उस वक़्त का वीडियो मौजूद है।
ं केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने अपनी सामाजिक और सार्वजनिक सीमाएं लांघी हैं, लिहाजा हमारा आग्रह है कि उनसे इस्तीफा लिया जाए। वह शख्स गृह मंत्रालय में देश की जन-व्यवस्था के गुरुत्तर पद पर आसीन होने योग्य नहीं है, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी को विशेषाधिकार के तहत उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए अथवा राजनीतिक संरक्षण की मजबूरी है, तो इस्तीफे के लिए बाध्य करना चाहिए। अजय मिश्रा टेनी को जब केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया गया था, तब भी उन पर अपराध की गंभीर धाराओं के तहत केस थे। एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया कि हत्या के केस में, उच्च न्यायालय में, 2018 में सुनवाई खत्म हो चुकी है, लेकिन न्यायाधीश का फैसला आज तक लंबित है।
यह न्यायिक इतिहास का दुर्लभ उदाहरण हो सकता है। हमें केस पर सम्यक विश्लेषण की जरूरत नहीं है, लेकिन मंत्री पद का निर्वाह लोकलाज और संवैधानिक मर्यादाओं के दायरे में किया जाना चाहिए। लोकतंत्र में मंत्री की जिम्मेदारी और उसका चरित्र दोनों ही 'आदर्श' प्रस्तुत कर सकते हैं, लेकिन गृह राज्यमंत्री ने पूरी केंद्र सरकार की छवि और काशी-अयोध्या में आस्था की आराधनाओं पर पलीता लगा दिया है। संदर्भ उप्र में लखीमपुर कांड का है, जिसमें चार किसानों की गाड़ी से कुचल कर हत्या कर दी गई थी। केंद्रीय मंत्री का बेटा मुख्य आरोपी है और बीती 9 अक्तूबर से जेल में है। उसी संदर्भ में विशेष जांच दल (सिट) ने सर्वोच्च न्यायालय में रपट दी है कि वे हत्याएं गैर-इरादतन या दुर्घटनावश नहीं थीं, बल्कि सुनियोजित साजि़श का हिस्सा थीं। किसानों को साजि़शन कुचला गया और उसके लिए बाकायदा षड्यंत्र रचा गया। उस अपराध में कई लोग शामिल थे। गौरतलब यह है कि उप्र में चुनाव हैं। ब्राह्मण समुदाय भाजपा से कुछ खिन्न है और मंत्री भी इसी समुदाय के नेता हैं। प्रधानमंत्री के लिए असमंजस की स्थिति हो सकती है, लेकिन केंद्र सरकार की छवि का भी सवाल है। संभव है कि किसी भी दिन गृह राज्यमंत्री की 'कुर्सी' छीनी जा सकती है। यह व्यवहार संविधान पर भी सवाल है। हालांकि लखीमपुर खीरी कांड में जो प्राथमिकी दर्ज की गई थी, उसमें गृह राज्यमंत्री का नाम नहीं है।
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