चिराग पासवान-तेजस्वी यादव की जोड़ी बिहार की राजनीति में क्या नया गुल खिलाएगी?

बिहार की राजनीति

Update: 2021-11-23 06:19 GMT
अजय झा.
बिहार से एक बड़ी खबर आ रही है कि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और राष्ट्रीय जनता दल के बीच आगामी विधान परिषद चुनाव के मद्देनजर कोई नई खिचड़ी पक रही है. यह खिचड़ी कितनी लजीज होगी और क्या जानता को यह रास आएगा, इस पर अभी सिर्फ कयास ही लगाया जा सकता है. एलजेपी (रामविलास) की पटना में बिहार प्रदेश के संसदीय बोर्ड की बैठक में यह फैसला लिया गया कि एलजेपी को आगामी विधान परिषद चुनाव लड़ना चाहिए, पर अकेले नहीं. खबर है कि आरजेडी के सर्वोच्च नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एलजेपी को 5-6 सीटों का ऑफर दिया है.
75 सदस्यों वाली बिहार विधानपरिषद के 24 सीटों पर चुनाव होने वाला है. हर दो वर्ष के बाद विधानपरिषद एक तिहाई सदस्य रिटायर हो जाते हैं और नए सदस्यों का चयन होता है. वर्तमान में बिहार विधान परिषद में आरजेडी के पांच सदस्य हैं जबकि एलजेपी का ना तो विधानसभा में और ना ही विधानपरिषद एक भी सदस्य है. 2020 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी का एक विधायक चुना गया था जिसने बाद में सत्तारूढ़ जनता दल-यूनाइटेड जॉइन कर लिया था. अभी कुछ ही महीने पहले हुए पार्टी के विभाजन के बाद एलजेपी (रामविलास) के एक मात्र सांसद पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान हैं.
विधान परिषद चुनाव साथ लड़ने की तैयारी
एलजेपी के बिहार संसदीय बोर्ड की तरफ से घोषणा की गई है कि यह फैसला लिया गया है कि आगामी विधान परिषद चुनाव पार्टी गठबंधन में लड़े और यह गठबंधन किसके साथ हो, इसका अंतिम फैसला पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान पर छोड़ा जाता है. उम्मीद की जा रही है कि 28 नवम्बर को, जो एलजेपी का स्थापना दिवस है, चिराग पासवान आरजेडी के साथ गठबंधन की घोषणा कर सकते हैं.
आरजेडी की व्याकुलता समझी जा सकती है. अभी हाल ही में विधानसभा उपचुनाव में आरजेडी ने पुराने सहयोगी कांगेस पार्टी से गठबंधन भंग कर दिया. दो विधानसभा क्षेत्रो में उपचुनाव हुआ, दोनों सीट जेडी-यूके खाते में गई और दोनों सीटों पर आरजेडी दूसरे स्थान पर रही. अगर कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में नहीं होता हो आरजेडी तारापुर सीट जीत सकती थी. यानि, आरजेडी अभी इस स्थिति में नहीं है कि वह पूरे बिहार में अकेले और अपने दम पर चुनाव लड़ सके और 2025 के विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने की स्थिति में आ जाए. गठबंधन तोड़ने के बाद आरजेडी अब वापस कांग्रेस के पास तो जा नहीं सकती है, इसलिए एलजेपी के साथ वह गठबंधन करने को उत्सुक है. वैसे भी विधानसभा उपचुनाव में एलजेपी का प्रदर्शन कांग्रेस पार्टी के मुकाबले कहीं बेहतर था.
एनडीए का साथ छोड़ने का अहसास
रही चिराग पासवान की बात तो शायद उन्हें भी यह अहसास हो गया है कि जोश और हकीकत में कितना अंतर होता है. युवा जोश में चिराग पासवान पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग हो गई. फैसला किया कि उनकी पार्टी जेडी-यू के खिलाफ चुनाव लड़ेगी और बीजेपी का समर्थन करेगी. ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि कोई पार्टी किसी गठबंधन के किसी एक दल का समर्थन करे और दूसरे का विरोध. चिराग की लौ लगभग बुझ गई और पार्टी सिर्फ एक ही सीट जीतने के सफल रही. बाकी का सारा काम चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने विद्रोह कर के पूरा कर दिया. पशुपति पारस केन्द्रीय मंत्री बन गए और चिराग अलग-थलग पड़ गए. विधानसभा उपचुनाव के नतीजे ने यह साफ़ कर दिया कि पिता रामविलास पासवान द्वारा गठित पार्टी का सतीत्व तब ही बच सकता है अगर एलजेपी किसी बड़ी पार्टी की पूंछ पकड़ ले. चूंकि एनडीए में चाचा पशुपति पारस वाली एलजेपी है, लिहाजा चिराग के पास और कोई चारा बचा भी नहीं है कि वह आरजेडी का दामन थाम लें. तेजस्वी यादव की सोच है कि अगर आरजेडी के यादव वोट बैंक और एलजेपी के दलित वोट बैंक का विलय हो जाए तो इससे उनका भविष्य में मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.
दोनों हाथ पक़ड़ने को आतुर
कुछ समय पहले रामविलास पासवान की पहली बरसी के अवसर पर जब चिराग तेजस्वी से आमंत्रण देने के नाम पर मिले तो दोनों की गर्मजोशी देखी जा सकती थी. तेजस्वी ने चिराग को अपना बड़ा भाई करार दिया और इस नई खिचड़ी पकने का व्यंजन वही तय हो गया था. अब जबकि तेजस्वी और चिराग अपने अपने पिता द्वारा अर्जित साख खोते दिख रहे हैं तो एक दूसरे का हाथ पकड़ने को आतुर होना स्वाभाविक है.
भविष्य में इस गठबंधन की क्या रूपरेखा होगी, यह कितना सशक्त बन पाएगा और कैसे तेजस्वी और चिराग एक दूसरे के पूरक बनेगें, इसका फैसला विधानपरिषद चुनाव के निर्णय से ही पता चल पाएगा. पर इतना तो तय है कि ताकि उनकी लौ पूरी तरह ना बुझ जाए, चिराग अब कुछ भी करने के लिए तैयार हैं. चाहे इस प्रस्तावित गठबंधन से उनके स्वर्गीय पिता की आत्मा को ठेस ही क्यों ना पहुंचे. आखिर राजनीति इसी को कहते हैं और मौकापरस्ती राजनीति का अभिन्न हिस्सा होता है.
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