सोची-समझी रणनीति
पिछले हफ्ते दिल्ली के जहांगीरपुरी में जो बुलडोजर चले, वे चलाए गए थे एक सोची-समझी नीति के तहत। धीरे-धीरे यह बात साफ दिखने लगी है। यह नीति बनाई गई है भारतीय जनता पार्टी के सबसे ऊंचे गलियारों में।
तवलीन सिंह: पिछले हफ्ते दिल्ली के जहांगीरपुरी में जो बुलडोजर चले, वे चलाए गए थे एक सोची-समझी नीति के तहत। धीरे-धीरे यह बात साफ दिखने लगी है। यह नीति बनाई गई है भारतीय जनता पार्टी के सबसे ऊंचे गलियारों में। वरना केंद्रीय गृहमंत्री के दफ्तर में मिलने न गए होते भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता, कुछ प्रवक्ता। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक गृहमंत्री से मिलने के बाद इन लोगों ने पत्रकारों को बताया कि यूरोप के कुछ देशों में जैसे 'नो-गो' क्षेत्र बनाए हैं प्रवासी नागरिकों ने, ऐसा कुछ होने लगा है भारत में और इसको रोकना जरूरी हो गया है। इन लोगों ने प्रवासी शब्द के पहले मुसलिम नहीं कहा, लेकिन समझने वाले समझ गए कि ये प्रवासी कौन हैं। यथार्थ यह है कि स्वीडेन और बेल्जियम में इन मुसलिम प्रवासियों ने साबित किया है स्थानीय अधिकारियों पर कई बार हमले करके कि उनकी नीयत जिहादी किस्म की है। क्या ऐसा अपने देश में हो रहा है? क्या यही कारण है कि खरगोन के बाद दिल्ली में बुलडोजर चले हैं?
यहां याद रखना चाहिए कि गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता कानून में संशोधन लाते समय कहा था कि बांग्लादेशी लोग अवैध तरीकों से इतनी बड़ी तादाद में आए हैं भारत में कि 'दीमक की तरह' फैल गए हैं। इस बयान के बाद आ गया था कोरोना का दौर, सो न नागरिकता कानून (सीएए) को लागू करने की जरूरत महसूस की नरेंद्र मोदी की सरकार ने और न बातें हुईं अवैध घुसपैठियों की। स्पष्ट हो रहा है कि बुलडोजर नीति तबसे बनने लगी थी और अब उस पर अमल होने लगा है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को अगर आपने सुना होगा टीवी पर पिछले हफ्ते, तो संबित पात्रा को सुना होगा यह कहते हुए कि जहांगीरपुरी में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलिम बहुत बड़ी तादाद में बसे हुए हैं और यही लोग थे, जिन्होंने हनुमान जयंती के जुलूस पर पत्थरों से हमला किया था।
समस्या यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता एक कारण बताते हैं बुलडोजरों के चलने का और स्थानीय अधिकारी बिल्कुल कुछ और। जहांगीरपुरी में खरगोन की तरह स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि बुलडोजर सिर्फ अवैध इमारतों को तोड़ने के लिए लाए गए हैं, सो इस काम को राजनीतिक या सांप्रदायिक नजरों से देखना गलत है। खरगोन और जहांगीरपुरी में अगर एक चीज बिल्कुल एक जैसी है, तो यह कि दोनों जगहों पर हिंदू जुलूसों पर मुसलमानों के घरों से पत्थर फेंके गए थे और इसके फौरन बाद आ गए थे बुलडोजर उन मुसलमानों के घरों को तोड़ने, जहां से पथराव हुआ था।
बुलडोजर नीति लेकिन इन दोनों घटनाओं से बहुत पहले शुरू की थी योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में। तथाकथित माफिया सरदारों के घर तोड़े गए थे कई शहरों में और ऐसा करने पर योगी को समर्थन मिला कई हिंदुओं से, जिन्होंने हाल में हुए चुनावों में योगी के दुबारा जीतने का एक कारण यह बताया कि उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था को उन्होंने मजबूत किया है गुंडों के साथ सख्ती से पेश आकर।
ऐसा अगर वास्तव में हुआ होता, तो हर दूसरे दिन खबर न आती किसी बच्ची के साथ बलात्कार की, किसी दलित बच्चे के साथ अत्याचार की। लेकिन योगी की दूसरी शानदार जीत के बाद ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं को उनकी बुलडोजर नीति पर विश्वास होने लगा है।
तोड़फोड़ की प्रक्रिया को फिलहाल रोक दिया है सर्वोच्च न्यायालय ने, सो थोड़ा समय मिल गया है हमारे शासकों को इस बुलडोजर नीति से गंभीर संवैधानिक नुकसान पर विचार करने के लिए। समय उन टीवी पत्रकारों को भी मिला है, जिन्होंने इस नीति का स्वागत किया पिछले हफ्ते। कुछ तो जाने-पहचाने मोदी भक्त थे, लेकिन कुछ अपने आपको मोदी भक्त नहीं, देशभक्त मानते हैं।
उम्मीद है कि इन देशभक्तों को जल्दी समझ में आ जाए एक सत्य, जो चीख-चीख के कह रहा है कि जिस देश में शासक कानून को अपने हाथों में लेने की गलती करते हैं, वे देश का संगीन नुकसान करते हैं, क्योंकि लोकतंत्र का आधार है कानून प्रणाली को सुरक्षित रखना। बुलडोजर नीति मानव अधिकारों का उल्लंघन है और लोकतंत्र का भी उल्लंघन है। सो, जो लोग इसका समर्थन कर रहे हैं, वे देशभक्त नहीं देशद्रोही माने जाएंगे।
जब आम नागरिक कानून की धज्जियां उड़ाने का काम करते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन जब ऐसा काम शासक करते हैं तो देशवासियों को संदेश यही जाता है कि ऐसा वे भी कर सकते हैं। कई जाने-माने राजनीतिक पंडितों ने खरगोन और दिल्ली में जो हुआ, उसको मुसलमानों को नीचा दिखाने की नजर से देखा है। लेकिन दिल्ली में तोड़े गए हैं कई गरीब हिंदुओं के घर और उनके छोटे-मोटे कारोबार। किस वास्ते हुआ है ये सब? अगर वास्तव में रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान बस गए हैं दिल्ली में, तो सवाल है कि इनको बसाया किसने? उनके मकान अवैध हैं, तो इनको इतने सालों से सलामत क्यों रखने दिया गया है?
सच यह है कि ये बुलडोजर नीति किसी तरह से भी ठीक नहीं देश के लिए। भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं का अगर इरादा है नफरत फैला कर चुनावों में हिंदुओं के वोट हासिल करने का, तो उनको सावधान इस बात को लेकर हो जाना चाहिए कि अराजकता इसी तरह फैलती रही देश में, तो देश का सुरक्षित रहना ही किसी न किसी दिन मुश्किल हो जाएगा। सांप्रदायिक नफरत जिन देशों में आम हो जाती है, तो थोड़े दिनों के लिए कुछ राजनेताओं के लिए लाभदायक बेशक हो, लेकिन अंत में गंदी राजनीति गंदगी फैलाने का ही काम करती है।