कोरोना से लड़ाई की कमजोर कड़ी: भ्रामक दुष्प्रचार के कारण वैक्सीन नहीं लगने से लोग हो गए कोविड से कालकवलित

घृणाग्रस्त और अंधा-लालच या फिर इन दोनों दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति या समूह समाज को कितने भयंकर संकट में डाल सकता है,

Update: 2021-06-22 05:03 GMT

भूपेंद्र सिंह | घृणाग्रस्त और अंधा-लालच या फिर इन दोनों दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति या समूह समाज को कितने भयंकर संकट में डाल सकता है, इसकी बानगी हमें कोविड काल में देखने को मिल रही है। इस कड़ी में हालिया प्रयास कांग्रेस में डिजिटल संचार के राष्ट्रीय समन्वयक गौरव पांधी ने बीते दिनों किया। उन्होंने कोवैक्सीन में 'गाय के बछड़े का सीरम' होने का दावा किया। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि पांधी या फिर उनकी पार्टी की गोवंश के प्रति कोई श्रद्धा है। यहां उनका उद्देश्य केवल लोगों को वैक्सीन के प्रति हतोत्साहित करना था। स्मरण रहे कि 2017 में केरल में कांग्रेस नेताओं ने दिनदहाड़े सरेआम गाय के बछड़े की हत्या करके सेक्युलरवाद में अपनी कथित आस्था का प्रमाण दिया था।

मोदी से घृणा करने वाला कुनबा महामारी के खिलाफ संघर्ष को कमजोर कर रहा
वैश्विक महामारी के खिलाफ भारत गत वर्ष से संघर्षरत है, किंतु विशुद्ध राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से घृणा करने वालों का कुनबा इस युद्ध में भारत का पक्ष कमजोर कर रहा है। इस षड्यंत्र के एक छोर पर जहां सांप्रदायिक मानस से प्रेरित अलीगढ़ की स्वास्थ्य कर्मचारी निहा खान है तो दूसरी ओर प्रभावशाली स्थानों पर आसीन स्वघोषित सेक्युलरवादियों की जमात-दुष्प्रचार और कुतर्क से लैस खड़ी है। वैक्सीन के लिए 'खतरनाक', 'भारतीय कोई गिनीपिग नहीं', 'वैक्सीन निर्माता मोदी के मित्र', 'भाजपा की वैक्सीन' सहित नपुंसकता बढ़ाने जैसे बयानों ने विश्व में भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास किया, साथ ही तमाम लोगों के जीवन को खतरे में भी डाल दिया। ऐसे दुर्भाग्यशाली लोगों की गणना शायद ही हो पाए, जो दुष्प्रचार के चलते कोरोना रोधी वैक्सीन न लगने के कारण कोविड से कालकवलित हो गए।
विपक्षी नेताओं के कुप्रचार से पहले चरण में वैक्सीन लगाने का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका
देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत 16 जनवरी 2021 को हुई थी। तब पहले चरण में तीन करोड़ कोरोना योद्धाओं को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा गया था। उस समय शशि थरूर, जयराम रमेश, मनीष तिवारी सहित विपक्षी नेताओं और इंटरनेट मीडिया साइट्स पर कई प्रभावशाली लोगों ने स्वदेशी वैक्सीन को लेकर संदेह जताना प्रारंभ कर दिया। परिणामस्वरूप, 28 मार्च 2021 तक मात्र 90 लाख कोरोना योद्धाओं अर्थात 30 प्रतिशत ने ही टीका लगवाया।
क्या निर्दोष लोगों की जान की कीमत पर मोदी विरोध करना उचित है
लोकतंत्र में प्रधानमंत्री मोदी को पसंद-नापसंद करने का अधिकार सभी को है, परंतु क्या निर्दोष लोगों की जान की कीमत पर मोदी विरोध करना उचित है? मई के अंतिम सप्ताह में जारी आंकड़े के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर देश में 6.3 प्रतिशत टीके बर्बाद हुए। राज्यों की बात करें तो इसमें सबसे ऊपर झारखंड है, जहां 37.3 प्रतिशत अर्थात हर तीन में से एक टीका जाया हुआ, तो छत्तीसगढ़ में 30.2 प्रतिशत वैक्सीन किसी के काम नहीं आईं। राजस्थान में 11.5 लाख से अधिक टीके खराब हुए। यहां के 35 वैक्सीन केंद्रों के कचरे में 532 वैक्सीन वायल (2,500 से अधिक खुराक) मिली। सोचिए, जो लाखों टीके नष्ट हुए, उनसे कितने लोगों को मौत और कोविड संक्रमण से बचाया जा सकता था।
मोदी ने की वैक्सीन कार्यक्रम को नियंत्रण में लेकर सभी वयस्कों को मुफ्त टीकाकरण की घोषणा
प्रारंभ से मोदी सरकार मुफ्त कोविड टीकाकरण कार्यक्रम का नेतृत्व कर रही थी, किंतु विपक्ष ने राज्यों के संघीय अधिकार का मुद्दा उठाकर विकेंद्रीकरण और आयु-सीमा हटाने के नाम पर टीकाकरण कार्यक्रम में अवरोध खड़े कर दिए। विवाद खत्म करने और अभियान को निर्विघ्न बनाने हेतु केंद्र ने इन मांगों को स्वीकार करते हुए एक मई से इसे लागू कर दिया। जब कोई राज्य इसमें सफल नहीं हुआ, तब 7 जून को पीएम मोदी ने पुन: संपूर्ण वैक्सीन कार्यक्रम को नियंत्रण में लिया और सभी वयस्क नागरिकों के मुफ्त टीकाकरण की घोषणा कर दी। स्पष्ट है कि विपक्ष की हठधर्मिता ने देश का वह उपयोगी समय व्यर्थ कर दिया, जिसमें कई लोगों की जिंदगियां वैक्सीन से बच सकती थीं।
वैक्सीन विरोध इसलिए कि भारतीय टीके की बदनामी हो
वैक्सीन विरोध में केवल मोदी से राजनीतिक विद्वेष रखने वाले दल ही नहीं, अपितु सहायक नर्स निहा खान जैसे भी शामिल हैं। निहा पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में वैक्सीन को कूड़ेदान में फेंककर लोगों को खाली सिरिंज चुभाने का आरोप है। आखिर उसने ऐसा क्यों किया? संभवत: इसलिए कि कोरोना वैक्सीन न लगे, संक्रमण फैले, अफरातफरी हो, भारतीय टीके की बदनामी हो और उसकी वैज्ञानिक प्रामाणिकता पर सवाल उठें। निहा एक व्यक्ति नहीं, बल्कि घृणा जनित रुग्ण मानसिकता है। ऐसे तमाम लोग हमारे बीच सक्रिय हैं, जो अपने उद्देश्य प्राप्ति हेतु किसी भी हद तक जाने को तत्पर हैं। इनमें से कुछ चिन्हित हो गए तो अधिकांश गुमनाम हैं। यह तबका भारत और उसकी कोरोना विरोधी लड़ाई के खिलाफ है।
कोरोना की दूसरी लहर में देश की चिकित्सीय व्यवस्था चरमरा गई
यह ठीक है कि जब देश में कोरोना की दूसरी लहर आई, तब हमारी चिकित्सीय व्यवस्था कई विकसित देशों की भांति चरमरा गई। रातों रात ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, बिस्तर, अन्य चिकित्सीय उपकरणों और जीवनरक्षक दवाओं की मांग कई गुना बढ़ने से स्थिति बेकाबू हो गई, किंतु भारत में 'कोढ़ में खाज' का काम उन तुच्छ मानसिकता वालों ने किया, जिन्होंने त्रासदी के वक्त मरीजों का शोषण किया और ऑक्सीजन से लेकर दवाओं की कालाबाजारी कर मनमाने दाम वसूले। नकली टीके और दवाओं के बाजार में बेचे जाने की खबरें भी आने लगीं। नि:संदेह, इन लोगों के लालच ने भी कोरोना को भयावह बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है।
कोरोना वायरस का जन्म चीन की धरती पर हुआ
यह अकाट्य सत्य है कि कोविड-19 के खिलाफ भारत का प्रारंभिक संघर्ष योजनाबद्ध और सफल रहा था, किंतु बाद में हम पिछड़ गए। इसका कारण उपरोक्त घटनाक्रम में भी छिपा है। कोरोना वायरस का जन्म चीन की धरती पर हुआ। हमारी लड़ाई तार्किक तौर पर कोरोना वायरस और उसके जन्मदाता के खिलाफ होनी चाहिए थी। कठिनाइयों के बावजूद हम इसमें सफल होते, किंतु इस युद्ध में हमारी त्रासदी इसलिए कई गुना बढ़ गई, क्योंकि समाज के एक प्रभावशाली वर्ग ने सार्वजनिक विमर्श को हाईजैक कर लिया और आमजन के बजाय शत्रुओं (कोविड सहित) का प्रत्यक्ष-परोक्ष साथ दिया या यूं कहे कि अब भी दे रहे हैं। फिलहाल, भारत ने कोविड-19 की दूसरी लहर को रोकने में काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली है, किंतु यह समय संतुष्ट होने का नहीं है। एक लड़ाई में हमने निर्णायक बढ़त अवश्य हासिल कर ली है, परंतु युद्ध जारी है। भारत को अभी तीन मोर्चों पर निरंतर लड़ना है। कोविड-19 से, इसके जनक चीन से और भारत में सक्रिय 'कोरोना बंधुओं' की टोली से।


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