हम रूस और अमेरिका दोनों से प्यार करते हैं, लेकिन उनके बीच चल रहे टकराव से हमारा सरोकार नहीं

ओपिनियन

Update: 2022-04-21 08:49 GMT

चेतन भगत का कॉलम: 

जब मैं दोस्तों से मिलता हूं तो अकसर एक गेम खेलता हूं, जिसे कुछ हद तक विवादास्पद कहा जा सकता है। सभी दोस्त साथ बैठते हैं और एक सवाल का जवाब देते हैं : अगर इस रूम में मौजूद कोई भी कपल डाइवोर्स लेते हैं तो उन दोनों में से आप किसके दोस्त बने रहना पसंद करेंगे और क्यों? इस गेम में आप कपल में से किसी एक को ही चुन सकते हैं, दोनों को नहीं। अगली बार आप भी जब अपने यार-दोस्तों से मिलें, तो यह गेम खेलकर देखें (अग्रिम चेतावनी : यह कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है)।
जब हर व्यक्ति को किसी कपल में से केवल एक को चुनने को कहा जाता है, तो जिसे नहीं चुना जाता है वह हर्ट हो जाता है और बुरा मान बैठता है। कुछ राउंड के बाद टेंशन इतना बढ़ जाता है कि दोस्त ही नहीं, कपल्स भी आपस में लड़ बैठते हैं। अंत में, यह गेम हमें सबक सिखाता है कि जब भी दो में से किसी एक को चुनना पड़ता है तो यह कोई बहुत अच्छा अहसास नहीं होता। मैं किसी कपल का बेस्ट फ्रेंड हो सकता हूं, लेकिन अगर मैंने उनमें से किसी एक की साइड ली तो दूसरा इसके लिए मुझे कभी माफ नहीं करेगा।
इसके बावजूद कभी-कभी कपल्स में झगड़ा होता है और उनमें डाइवोर्स की नौबत आ जाती है। तब हमें किसी एक का पक्ष लेना ही पड़ता है। अगर हम दोनों को पसंद करते हों तब क्या करेंगे? रूस-यूक्रेन के मामले में आज यही हो रहा है, जो कि वास्तव में रूस और अमेरिका का प्रॉक्सी टकराव भी है। भारत अमेरिका को पसंद करता है। लेकिन भारत रूस को भी पसंद करता है। यकीनन, रूस और अमेरिका कपल्स नहीं हैं और न ही यह कोई डिनर पार्टी गेम है।
लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि आज भारत इस दबाव को महसूस कर रहा है कि वह दो में से किसकी साइड ले। पश्चिमी मीडिया पूरी तरह से रूस के विरुद्ध लामबंद है और उसने अपने अनेक हाई-प्रोफाइल लेखों में भारत को खरी-खोटी सुनाई है। वे कह रहे हैं कि रूस ने यूक्रेन पर बर्बरतापूर्ण तरीके से हमला बोला है, लेकिन भारत इसकी निंदा नहीं कर रहा है। या भारत रूस से बिजनेस करना बंद नहीं कर रहा है।
क्या भारत को मासूमों की हत्याएं और अन्यायपूर्ण हिंसा नहीं दिखाई देतीं? भारत इतना पाखण्डी कैसे हो सकता है? क्या वह एक लोकतांत्रिक देश नहीं हैं? क्या उसे स्वतंत्रता और शांति का समर्थन नहीं करना चाहिए? ये बहुत सारा प्रेशर है। भारत जैसे विकासशील देश की छवि बनाने में पश्चिमी मीडिया घरानों की भूमिका आज भी निर्णायक है। उन्होंने सबको अपने से सहमत करने के लिए सुपरिचित हथकंडे अपनाने की कोशिश की है, जैसे शर्मिंदा करना, चीखना-पुकारना, नैतिकता का उपदेश देना, कैंसल-कल्चर को बढ़ावा देना आदि।
उनका नैरेटिव यह है कि रूस बुरा है, इसलिए हमें उसकी निंदा करनी चाहिए और उससे सम्बंध तोड़ लेने चाहिए। लेकिन अतीत में स्वयं पश्चिम द्वारा किए गए अत्याचारों पर कोई चर्चा नहीं की जाती है। इतना ही नहीं, पश्चिम द्वारा लगाई गई पाबंदियों से निर्दोष रूसी नागरिकों को जो परेशानियां हो रही हैं, उनकी भी उन्हें परवाह नहीं है। लेकिन अगर आप उनके नैरेटिव को न मानें तो वे आपको पाखण्डी, हिंसाप्रेमी, पिछड़ा और बुरा कहेंगे। उफ्फ! इतने दबाव के बावजूद अपना संतुलन नहीं गंवाने के बारे में कल्पना कीजिए। भारत ने ठीक यही किया है।
ऐसी स्थिति में कोई भी बड़ी आसानी से एक बयान जारी करके पश्चिमी नैरेटिव के साथ हो सकता है, ये कह सकता है कि हम मनुष्यता के साथ हैं और इतना भर करने से हमारे सिर पर चढ़कर बैठा पश्चिमी मीडिया हमें बख्श देगा। लेकिन भारत ये नहीं कर रहा है। विश्वयुद्धों के दौरान स्विट्जरलैंड ने जो किया था, आज भारत भी वही कर रहा है। दो में से किसी एक की साइड लेना एक खतरनाक खेल है। भारत इसे समझ गया है और उसने इस खेल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है। इसके लिए हमारी सराहना की जानी चाहिए।
क्योंकि भारत रूस की तरफ भी झुका नहीं है। पश्चिमी मीडिया चाहे जितना अस-वर्सेस-दैम का नैरेटिव खड़ा करे, सच्चाई यही है कि भारत ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का समर्थन नहीं किया है। हमने शांति की अपील की है और डिप्लोमैटिक तरीकों से समस्याओं का समाधान खोजे जाने की बात कही है। हमने बूचा में हुई हत्याओं की निंदा भी की है और उसकी जांच की मांग की है।
और ये तब है, जब हम रक्षा संसाधनों और तेल के आयात के लिए रूस पर निर्भर हैं (भारत अपने रक्षा-संसाधनों के कुल आयात का लगभग आधा रूस से प्राप्त करता है) और अनेक दशकों से हमारे रूस से मैत्रीपूर्ण सम्बंध हैं। रूस-अमेरिका-यूक्रेन की इस रस्साकशी में आज भारत स्विट्जरलैंड वाली भूमिका में है। यह यूक्रेन के झंडे के साथ तस्वीरें डिस्प्ले करने जितना करुणापूर्ण भले न लगे, लेकिन हम जो कर रहे हैं, वह सही है।
हम अपनी आबादी को सपोर्ट कर रहे हैं। हम रूस और अमेरिका दोनों से प्यार करते हैं, लेकिन उनके बीच चल रहे टकराव से हमारा कोई सरोकार नहीं। दोस्तों या कपल्स के बीच हो रही लड़ाई में कभी साइड न लें। इसमें आपका नुकसान ही होगा।
दो देशों के बीच चल रही लड़ाई पर भी यही नियम लागू होता है। हम इंडिया हैं। जब हमारे दोस्त आपस में लड़ते हैं तो हमें बुरा लगता है। लेकिन अगर आप हमसे साइड लेने को कहेंगे तो हम हाथ जोड़कर इतना ही कहेंगे- 'आशा करते हैं आपकी लड़ाई जल्द ही खत्म हो जाएगी, जब ऐसा हो तो हमें खबर कर दीजिएगा। नमस्ते!'
न्यूट्रल बने रहना ही सबसे बेहतर
चूंकि रूस ने हमला बोला है और हिंसा की तस्वीरें विचलित करने वाली हैं, इसलिए पश्चिम के नैरेटिव में बहकर रूस के खिलाफ हो जाना सरल है। चूंकि रूस भारत का दोस्त है और हमें दशकों से हथियार दे रहा है, इसलिए उसका पक्ष लेना भी इतना ही आसान है। हमने दोनों ही नहीं किया है। हम निष्पक्ष रहे हैं। सम्बंधों की तरह कूटनीति में भी न्यूट्रल बने रहना ही अच्छा विकल्प होता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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