छीजती ऊर्जा

यह त्योहारों के मौसम है और बिजली संकट की आशंका गहराने लगी है। स्वाभाविक ही इसे लेकर विशेषज्ञ और राजनीतिक दल तरह-तरह से चिंता जाहिर कर रहे हैं।

Update: 2021-10-15 01:18 GMT

यह त्योहारों के मौसम है और बिजली संकट की आशंका गहराने लगी है। स्वाभाविक ही इसे लेकर विशेषज्ञ और राजनीतिक दल तरह-तरह से चिंता जाहिर कर रहे हैं। पहले तथ्य सामने आया कि बिजली घरों के पास महज चार दिनों का कोयला बचा है। फिर इसके घटते जाने के आंकड़े आने शुरू हो गए। कायदे से बिजली घरों के पास चौदह दिन का कोयला भंडार सुरक्षित रहना चाहिए। मगर कोयले की आपूर्ति न हो पाने की वजह से यह भंडारण लगातार कम हो रहा है। इसलिए आशंका जाहिर की जा रही है कि यही स्थिति रही, तो पूरा देश अंधेरे में डूब जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो सबसे बुरी मार उद्योगों और कारोबार पर पड़ेगी। कुछ राज्यों की सरकारों और विपक्षी दलों ने इस पर सरकार को घेरने की भी कोशिश की। मगर सरकार का दावा है कि ऐसी स्थिति नहीं आने दी जाएगी। हमारे पास पर्याप्त मात्रा में कोयला उपलब्ध है। ऊर्जामंत्री ने इस बात पर विशेष बल देते हुए आश्वस्त किया है कि बिजली संकट को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। हालांकि कुछ दिनों पहले सरकार की तरफ से ही यह चिंता जाहिर की गई थी कि बिजली घरों के पास महज कछ दिनों के लिए कोयला बचा है।

बेशक सरकार बिजली संकट को लेकर चिंतित न होने का आश्वासन दे रही हो, पर इस हकीकत से मुंह नहीं फेरा जा सकता कि देश में कोयले का उत्पादन काफी तेजी से घटा है। पहले सरकार ने कहा कि इस साल बरसात अधिक होने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। मगर तथ्य यह भी है कि ऐसी स्थिति हर साल आती है, जब बरसात के मौसम में कोयला उत्पादन घट जाता है। इसलिए बरसात शुरू होने से पहले ही खदानें अपना उत्पादन तेज कर देती हैं। फिलहाल कोयला उत्पादन में कमी आने की दो मुख्य वजहें हैं। एक तो यह कि कोरोना काल में हुई बंदी के चलते इस पर असर पड़ा। दूसरा यह कि करीब तीन साल पहले जिन सरकारी खदानों को निजी हाथों में सौंपा गया, वे लक्ष्य उत्पादन का एक तिहाई भी नहीं कर पाई हैं। ऐसी करीब पचास खदानें हैं। इसलिए इसकी असल वजह बरसात नहीं, कुछ और है। कोयला उत्पादन कम होने का सीधा असर बिजली घरों पर पड़ रहा है। हमारे यहां कुल ऊर्जा जरूरतों का करीब दो तिहाई हिस्सा ताप बिजली संयंत्रों से पैदा होता है। जाहिर है, वे प्रभावित होंगे, तो ऊर्जा का संकट गहराएगा।
फिलहाल इस संकट से पार पाने का आसान तरीका यही है कि दूसरे देशों से कोयला आयात किया जाए। मगर सरकार अभी तक इससे इसलिए बचने का प्रयास करती रही है, क्योंकि कोयला आयात करना खासा खर्चीला काम है। हालांकि चीन भी बिजली संकट से गुजर रहा है, मगर उसने पहले की अपेक्षा करीब चार गुनी कीमत पर भी दूसरे देशों से कोयला खरीदना शुरू कर दिया है। हम पहले ही भारी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं, अगर दूसरे देशों से तीन-चार गुना अधिक कीमत पर कोयला खरीदना और बिजली घरों तक पहुंचाना पड़ेगा, तो खजाने पर बुरा असर पड़ेगा। इसकी भरपाई स्वाभाविक रूप से बिजली कंपनियां दरों में बढ़ोतरी करके करेंगी। कई राज्यों में, जहां निजी बिजली घरों से बिजली खरीद कर आपूर्ति की जाती है, पहले ही दरें बहुत ऊंची हैं और लोग उनमें कटौती की मांग करते रहते हैं। नए सिरे से दरें तय करनी पड़ेंगी, तो स्वाभाविक ही हाहाकार बढ़ेगा। मगर इस संकट से सरकार मुंह नहीं फेर सकती।

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