युद्ध बताते हैं कि हम सबकुछ हो सके, लेकिन मुनष्य थोड़े कम हुए
साल 2017- 18 में मैं पौलेंड के रॉक्लॉ शहर में थी. मैंने हिस्ट्री नहीं पढ़ी थी कभी
अपर्णा देवल।
साल 2017- 18 में मैं पौलेंड के रॉक्लॉ शहर में थी. मैंने हिस्ट्री नहीं पढ़ी थी कभी, लेकिन मैं ऐसी जगह थी, जहां का इतिहास उसके वर्तमान पर हावी था. इतिहास वहां सब जगहों और लोगों में झलकता था और वहां के लोगों की बातें और अनुभव बहुत पुराने नहीं लगते थे. वे युद्ध के विषय में बात करने से झिझकते थे क्योंकि युद्ध के अवशेष उनके जीवन का हिस्सा थे. जितने लोगों से मैं मिली, उनमें से बहुत कम लोग खुलकर बात कर पाए. जैसे वे सब अभी अभी पीड़ा से निकले हों या निकल ही न पा रहे हों शायद. चाइल्डहुड ट्रॉमा और जेनरेशनल ट्रॉमा के बारे में तो बहुत बाद में पढ़ा. वहां रहते हुए मैंने समझा कि आप उनसे युद्ध के विषय में बहुत सवाल नहीं कर सकते. बस महसूस कर सकते हैं कि उन्हें सब याद है और वे अब भी उस सब से निकलने, हील होने और उबरने की कोशिश कर रहे हैं. साल भर पौलेंड में रहकर मैं युद्ध के बारे में यह कुछ बातें समझ पाई.
युद्ध के लगभग सत्तर सालों बाद भी युद्ध वहां की मुख्य कहानी, उनकी मुख्य पहचान था. जिधर देखो उधर कुछ ऐसा था, जो इस बात की याद दिलाता था कि इस जगह ने और यहां के लोगों ने कितनी यातना झेली. यहां तक कि दुनिया के सबसे सुंदर शहरों में एक क्रेकोव की पहचान यह है कि यह युद्ध में पूरी तरह नष्ट हो गया था और इसे फिर से बनाया गया. मुझे याद है क्रेकोव के रिनिक में खड़े होकर सोचना कि शहरों में मैं क्रेकोव शहर होना चाहती हूं, जो फिर-फिर खुद को बना ले. हर बार पहले से अधिक सुंदर और मजबूत. क्रेकोव का आसमान – वैसे रंग मैंने कहीं नहीं देखे. यह सब सोचने के लिए अच्छा है, लेकिन जो क्रेकोव ने देखा है, उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती. और विडंबना यह कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, वह फिर-फिर हो जाता है. और हम अपने रोल्स और रेस्पांसबिलिटी क्या हो, इसी में उलझे रह जाते हैं.
मैं एक ऑश्वित्ज सरवाइवर का इंटरव्यू देख रही थी, जिसमें वे कह रही थीं कि वे अक्सर सोचती थीं कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में लोग कैसे रह रहे होंगे. उन्हें मालूम होगा या नहीं कि हमारे साथ क्या हो रहा है. दुनिया के किसी हिस्से में किसी परिवार में सब साथ बैठकर खाना खा रहे होंगे. बच्चे खेल रहे होंगे. स्वीमिंग के लिए जा रहे होंगे. क्या उन्हें मालूम है कि हमारे साथ क्या हो रहा है. आज सुबह जब मैं यह लिख रही हूं तो सोच रही हूं कि हो सकता है कि उस समय अन्य देशों के आम लोगों तक बहुत सी जानकारियां नहीं पहुंचती हों लेकिन हम तक तो सब कुछ पहुंच रहा है. एक-एक बात. जो लोग इस यातना से आज गुजर रहे हैं, वे जानते हैं कि हम जानते हैं. पूरी दुनिया जानती है. पूरी दुनिया युद्ध को घटते हुए देख रही है. यह वैसे ही दृश्य हैं, जिन्हें हमने म्यूजियम की तस्वीरों में देखा और कई-कई दिन उनका असर रहा, जबकि वह सब हमारे साथ नहीं घटा था.
यूरोप के कई देशों में लोग अभी भी उबरने का प्रयास कर रहे थे. पोलिश लोगों के पास युद्ध की अनगिनत भयावह यादें थीं और यह जर्मन लोगों के माफी मांग लेने और उदारता दिखाने के बावजूद कम नहीं होती थीं.
मेरी एक पोलिश दोस्त के दादाजी अब भी अपने तहखाने में खाने का बहुत सारा सामान जैम, अचार, सोर कुकुंबर आदि इकट्ठा करके रखते थे. वे चार साल के थे, जब उन्होंने अपने सहपाठी को गोली लगकर मरते देखा था. व्रॉक्लोव में और आसपास के शहरों सबकुछ द्वितीय विश्व युद्ध की याद दिलाने वाला था. वे शायद संभल रहे थे. बड़े-बूढ़े बाहर के लोगों को देखकर चिढ़ते थे और कहीं-कहीं कस्बों में बाहर के लोगों को देखकर 'गो बैक गो बैक' कहने वाले लोगों को भी सुना.
रिनिक (यूरोपीय शहरों में शहरों के बीचोंबीच रखा जाने वाला क्षेत्र, जिसमें सब समय-समय पर इकट्ठे हो सकें) की पहचान आज भी वहां इस तरह होती है कि हिटलर ने यहां सभा की थी और हिटलर की सेना इन्हीं सड़कों से होती हुई क्रेकोव पहुंची थी. नई पीढ़ी उबर भी रही थी शायद, लेकिन उनसे पहले की पीढि़यों के दर्द की झलक बदस्तूर थी.
युद्ध मनुष्यता को फिर से एक सदी पीछे धकेल देता है. युद्ध सिर्फ और सिर्फ नष्ट ही करता है. युद्ध बताते हैं कि हम सबकुछ हो सके, लेकिन मुनष्य थोड़े कम हुए. क्या ही कहा जाए इस बारे में कि अब हम युद्ध को लाइव देख सकते हैं, लेकिन उसे रोक नहीं सकते.
युद्धों की राजनैतिक विवेचना और पड़ताल के समय पूरी दुनिया में लोग एक बात को नजरअंदाज किए जाते हैं. युद्ध में जेंडर के परस्पेक्टिव को जगह नहीं देते. दुनिया के सारे युद्ध पुरुषों के दंभ और लालसा की वजह से लड़े गए, कि सारे युद्धों की जड़ पुरुष हैं. युद्ध जर जोरु जमीन के लिए अगर हुए तो किए किसने. युद्ध कहीं भी हुए तो किस के कहने पर हुए. यह जो पुरुषों का दंभ है न दुनिया की सबसे पहली और अंत तक रहने वाली महामारी है. सबसे ज्यादा जानें इसी महामारी की वजह से गई हैं और लगातार जा रही हैं.