विरोध के स्वर: पिछले दरवाजे से जी एम फसलों का प्रवेश

भारत में जी.एम. (जेनेटिकली मोडिफाइड) फसलों के कारोबार को लेकर विरोध के स्वर तेज हो चले हैं

Update: 2021-09-11 06:49 GMT

के. सी. त्यागी। भारत में जी.एम. (जेनेटिकली मोडिफाइड) फसलों के कारोबार को लेकर विरोध के स्वर तेज हो चले हैं। पोल्ट्री उद्योग के संगठन पोल्ट्री बीडर्स एसोसिएशन का आकलन है कि इस साल दुनिया भर में सोयाबीन की कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है, जिसके कारण पोल्ट्री उद्योग के लिए फीड के दाम तेजी से बढ़े हैं। इसलिए पोल्ट्री उद्योग लगातार सरकार से सोयामील के आयात की मांग कर रहा है। फिलहाल पोल्ट्री फीड बनाने वाली कंपनियां अपनी क्षमता से काफी कम उत्पादन कर रही हैं। इसलिए सरकार ने 12 लाख टन सोयाबीन से तैयार सोयामील के आयात की अनुमति दी है।

सोयामील जी.एम. फसलों से तैयार खाद्य उत्पाद है, जिसके आयात के खिलाफ कई संगठन लामबंद हो चुके हैं। सबसे तीव्र विरोध आरएसएस से जुड़े संगठन द्वारा किया जा रहा है, लिहाजा सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक है। किसान संघ ने पशुपालन सचिव को पत्र लिखकर इस अनुमति को वापस लेने की मांग की है। यह पहला अवसर नहीं है, जब जी.एम. फसलों को लेकर विरोध हुआ है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, जी.एम. प्रक्रिया के अंतर्गत पौधों में कीटनाशक गुण सम्मिलित हो जाते हैं, जिससे फसलों की गुणवत्ता का प्रभावित होना लाजिमी है। यह प्राकृतिक फसलों को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ.एम.एस. स्वामीनाथन जी.एम. फसलों के प्रयोग से पहले भूमि परीक्षण अनिवार्य करने की सिफारिश कर चुके हैं। अमेरिका में मात्र एक फीसदी भाग में मक्के की खेती की गई थी, जिसने 50 फीसदी गैर-जी.एम. खेती को प्रभावित कर दिया। नुकसान को देखकर चीन ने भी वर्ष 2014 के बाद से जी.एम. खेती बंद कर दी है।
भारत में बी.टी. कॉटन की खेती का अनुभव आंखें खोलने वाला है। महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश और पंजाब के किसानों द्वारा इस कपास की खेती के जो परिणाम आए हैं, वे चौकाने वाले हैं। फिर भी किसानों को सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं कि इस कपास में कीटनाशकों का छिड़काव कम होने से लागत में कमी और प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में वृद्धि होगी। जबकि संसद की कृषि मामलों की समिति ने अपनी 37वीं रिपोर्ट में बताया है कि बी.टी. कपास की व्यवसायिक खेती करने से कपास उत्पादक किसानों की माली हालत सुधरने के बजाय बिगड़ गई। बी.टी. कॉटन में कीटनाशकों का अधिक प्रयोग करना पड़ा। जी.एम. फसलों के पैरोकार तीसरी दुनिया के मुल्कों को डरा रहे हैं कि वर्तमान में 100 करोड़ से अधिक लोग भूखे सोते हैं। लिहाजा जी.एम फसलों के जरिये अतिरिक्त उत्पादन कर इनका मुकाबला संभव है।
भारत खाद्यान उत्पादन में न सिर्फ आत्मनिर्भर हो चला है, बल्कि गेहूं, चावल, सब्जी, फलों आदि का ऊंचे पैमाने पर निर्यात कर रहा है। भारत में मौत अनाज की कमी की वजह से नहीं होती, बल्कि वितरण प्रणाली का दोषपूर्ण होना इसका बड़ा कारण है। लेकिन हमारे यहां लालफीताशाही ऐसी है कि बौद्धिक संपदा के अधिकार संबंधी कानूनों और अपने पेटेंट कानूनों के लिए मसौदे पर मसौदे बनाते रहे, लेकिन उन्हें अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया। इस तरह इन कानूनों के बनने से पहले ही बाहर से माल आयात के लिए दरवाजे खोल दिए। बारह लाख टन जी.एम. सोयाबीन से तैयार सोयामील के आयात की अधिसूचना पर उठाए गए सवालों के जवाब मिलने चाहिए, ताकि नौकरशाहों के अविवेकपूर्ण एवं जल्दबाजी में किए गए निर्णय भविष्य में जी.एम. फसलों के लिए नया रास्ता खुलने का मौका न बने।
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान सोयाबीन के तीन मुख्य उत्पादक राज्य हैं। इन राज्यों के सांसदों और किसान संगठनों को भी एतराज है कि जब अपने यहां फसल अक्तूबर के अंत तक आ जाएगी, तो इससे पूर्व सोयाबीन के आयात की आवश्यकता क्या है? बाजार में आयातित माल आने के बाद स्थानीय उत्पादकों को उत्पाद का उचित मूल्य भी नसीब नहीं होगा। किसान संघ समेत कई संगठनों के विरोध का असर दिखने लगा है। क्या जी.ई.आर.सी. की मंजूरी के बिना भी प्रतिबंधित जी.एम. उत्पाद भारत में आयातित किए जा सकते हैं?

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