आतंक की घाटी
खबरों के मुताबिक, शोपियां जिले के चौधरीगुंड गांव के दस कश्मीरी पंडित परिवार गांव छोड़ कर जम्मू पहुंच गए। पिछले दो हफ्ते में हुई दो लक्षित हत्याओं के बाद वहां रह रहे लोगों में इस कदर भय व्याप्त है कि वे परिवार सहित गांव छोड़ गए। कश्मीरी पंडितों का वह गांव अब खाली हो गया है।
Written by जनसत्ता; खबरों के मुताबिक, शोपियां जिले के चौधरीगुंड गांव के दस कश्मीरी पंडित परिवार गांव छोड़ कर जम्मू पहुंच गए। पिछले दो हफ्ते में हुई दो लक्षित हत्याओं के बाद वहां रह रहे लोगों में इस कदर भय व्याप्त है कि वे परिवार सहित गांव छोड़ गए। कश्मीरी पंडितों का वह गांव अब खाली हो गया है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि निशाना बना कर की जा रही हत्याओं की वजह से उन लोगों में भी डर समा गया है, जो नब्बे में हुए पलायन के बाद वहीं अपने पुश्तैनी घरों में रह रहे थे। कश्मीरी पंडित लंबे समय से अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। वे धरने पर बैठे हुए हैं। सरकार उन्हें आश्वासन तो देती है, मगर लक्षित हत्या का सिलसिला रुक नहीं पा रहा, जिसकी वजह से उनमें भय बना हुआ है। स्थिति यह है कि आतंकवादी कश्मीरी पंडितों को निशाना बना कर उनकी दुकान, दफ्तर, घर, बाजार, बाग आदि कहीं भी मार डालते हैं। इस तरह उनके पुनर्वास का मकसद कहीं हाशिए पर चला गया लगता है। कश्मीरी पंडितों का संगठन कई महीने से मांग कर रहा है कि उन्हें सुरक्षित जगहों पर चले जाने दिया जाए।
करीब बत्तीस साल पहले कश्मीरी पंडितों ने इसीलिए घाटी से पलायन कर जम्मू के शिविर में पनाह ली थी कि उन्हें निशाना बना कर मारा जा रहा था। इस बीच केंद्र और राज्य में कई सरकारें बदलीं, सबका वादा यही था कि कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास कराया जाएगा। इसके लिए प्रयास भी हुए। घाटी में सरकारी नौकरियों में उनके लिए जगह बनाई गई, उनमें अपने पुश्तैनी घरों में वापस लौटने का भरोसा जगाया गया।
इस तरह कई परिवार वापस अपने गांव लौटे भी। मगर अब जब फिर वही स्थितियां उनके सामने उपस्थित हो गई हैं, तो उन्हें पलायन के अलावा कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आ रहा। पिछले तीन महीनों में कई बार चुपके से कुछ कश्मीरी परिवारों ने रात के अंधेरे में पलायन की कोशिश की, मगर उन्हें सुरक्षा बलों ने रोक दिया। बताते हैं कि उसके बावजूद कई परिवार पलायन कर चुुके हैं। जो वहां रह रहे हैं, वे भी किसी सुरक्षित जगह जाना चाहते हैं। कश्मीरी पंडितों का इस तरह दुबारा पलायन करना एक तरह से आतंकवादी संगठनों का मनोबल बढ़ाने वाली घटना है। उनका मकसद यही है कि बाहरी लोगों को निशाना बना कर उन्हें घाटी से खदेड़ा और सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
हालांकि सरकार दावा करती रही है कि घाटी से आतंकवाद को काफी हद तक खत्म किया जा चुका है, मगर हकीकत यह है कि आतंकवादी संगठन नई-नई रणनीति बना कर सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं। उन पर कड़ी नजर बनी हुई है, फिर भी वे अपनी साजिशों को अंजाम दे पा रहे हैं। बेशक वे कोई बड़ी वारदात करने में कामयाब न हो पा रहे हों, मगर लक्षित हिंसा करके सुरक्षा व्यवस्था के लिए चुनौती तो पेश कर ही रहे हैं।
आए दिन मुठभेड़ में आतंकियों के मारे जाने के समाचार आते हैं, फिर भी उनकी उपस्थिति बनी हुई है। मसलन, बुधवार को एक ओर कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ की कोशिश करते एक आतंकवादी को सुरक्षाबलों ने मार गिराया, तो दूसरी ओर बारामूला से भी आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ की खबर आई। ऐसी स्थिति में कश्मीरी पंडितों के पलायन से सरकार की रणनीति पर प्रश्न खड़े होते हैं कि वह घाटी में आतंकवाद से निपटने और वहां रह रहे कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा उपलब्ध करा पाने में सफल क्यों नहीं हो पा रही।