UP Election : ममता बनर्जी का खेला, रैली बनारस में और नज़र दिल्ली की कुर्सी पर

ममता बनर्जी का खेला

Update: 2022-03-06 05:18 GMT
अजय झा.
उत्तरप्रदेश चुनाव (UP Election) में सोमवार को होने वाले आखिरी चरण के चुनाव के प्रचार का काम शनिवार को थम गाया. चुनाव के आते आते यूं प्रतीत होने लगा जैसे कि प्रदेश के सत्ता की कुंजी बनारस में ही है. जिस तरह विपक्ष के बड़े बड़े धुरंधर नेता बनारस में चक्कर लगाते दिखे उससे तो ऐसा ही लगने लगा था. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) बुधवार को बनारस पधारीं, मंदिर के दर्शन किये, गंगा आरती देखी और अगले दिन एक रैली को संबोधित करते हुए ऐलान कर दिया कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी खेला करने जा रही है. उस रैली में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh yadav) और जयंत चौधरी भी मौजूद थे. उधर दीदी रैली में खेला करने की कोशिश कर रहीं थीं और दूसरी तरफ प्रियंका गांधी बनारस के कबीर मठ में चार दिनों के प्रवास पर पहुंची, मकसद था मुस्लिम मतदाताओं को लुभाना. अगले दिन प्रियंका के बड़े भाई राहुल गांधी भी बनारस पधारे, मंदिरों में मत्था टेका और मस्तक पर चंदन टीका लगा कर फोटो भी खिंचवाई. फिर भाई बहन की जोड़ी की एक संयुक्त रैली हुयी.
चूंकि बनारस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनाव क्षेत्र है, जाहिर सी बात है कि मोदी का बनारस आना बनता ही था. और जब मोदी आएंगे तो फिर केंद्रीय मंत्री अमित शाह और बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा का भी चक्कर लगना ही था. एक बार तो ऐसा लगा कि उत्तर प्रदेश की राजधानी कहीं बनारस तो शिफ्ट नहीं होने वाली है या फिर बनारस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले पांच विधानसभा क्षेत्रो के परिणाम से ही फैसला होगा कि उत्त्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी.
बनारस लोकसभा सीट का गणित
बनारस लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र हैं, उनके नाम हैं रोहनिया, बनारस उत्तर, बनारस दक्षिण, बनारस कैंट और सेवापुरी. 2017 के चुनाव में जहां चार सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी चुनाव जीते थे, सेवापुरी में बीजेपी की सहयोगी दल अपना दल के उम्मीदवार की जीत हुयी थी. 2017 में बनारस में बीजेपी का परचम लहराता दिखा और लखनऊ में बीजेपी की सरकार बनी. अब इस बार उसी सत्ता की कुंजी ढूंढने वहां ममता बनर्जी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, जयंत यादव जैसे नेता पहुंचे, हालांकि कल आखिरी चरण के मतदान में बनारस की पांच सीटों के अलावा 49 अन्य सीटों पर भी मतदान होने वाला है.
बनारस के प्रति विपक्षी दलों के नेताओं के आकर्षण का कारण सिर्फ यही नही रहा होगा कि बनारस मंदिरों का शहर है और चुनाव जीतने के लिए उन्हें भोले नाथ के आशीर्वाद की अत्यंतत आवश्यकता है, बल्कि इसलिए कि मोदी बनारस से लोकसभा सांसद हैं. उन्हें बनारस के पांच विधानसभा क्षेत्रों से कहीं अधिक रुचि 2024 के लोकसभा चुनाव में है. 2024 में मोदी बनारस से जीत की हैटट्रिक लगाने की कोशिश करेंगे.
बनारस से मोदी को हराने का अभी से प्रयास
अंग्रेजी में एक कहावत है, प्रहार वहां करो जहां दर्द सबसे ज्यादा होता है. यानि अगर 2024 में विपक्ष बीजेपी को हरा कर सत्ता में आने का सपना देख रहा है तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि वह बनारस में मोदी को हराने का अभी से प्रयास शुरू कर दे. यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि बनारस में दीदी का क्या काम? तृणमूल कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ भी नहीं रही है. यह दीदी का उत्तर प्रदेश का दूसरा दौरा था जबकि गोवा में जहां तृणमूल कांग्रेस विधानसभा चुनाव लड़ रही है, चुनाव की घोषणा के बाद ममता बनर्जी ने राज्य का रुख भी नहीं किया. दीदी का समाजवादी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार उनकी मजबूरी थी. दीदी की तमन्ना है कि वह 2024 में भारत की प्रधानमंत्री बने, जिसके लिए उन्हें अन्य विपक्षी दलों के समर्थन की जरूरत होगी. अगर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बन जाती है तो फिर विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा इसमें समाजवादी पार्टी की एक अहम भूमिका रहेगी. भले ही समाजवादी पार्टी चुनाव नहीं जीते, पर दीदी ने अपना जाल बिछा दिया है ताकि समाजवादी पार्टी कांग्रेस पार्टी से दूरी बनाये रखे.
वैसे पिछले वर्ष हुए पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा की थी कि 2024 में ममता बनर्जी बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी, हालांकि विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम से उनकी हार के बाद इस घोषणा का फिर से जिक्र नहीं हुआ है. वैसी दीदी जिद्दी किस्म की नेता हैं. नंदीग्राम वह शुवेंदु अधिकारी को सबक सिखाने चली गयी थीं. अधिकारी उनका साथ छोड़ कर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. पासा उल्टा पड़ा और सबक सिखाने की लालसा में दीदी से स्वयं सबक सीख लिया. मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहने के लिए दीदी को अपने पुराने भवानीपुर क्षेत्र से उपचुनाव लड़ना पड़ा. अगर वह बनारस से चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर अडिग हैं तो फिर उन्हें समाजवादी पार्टी और उनके सहयोगी दलों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी, जिसकी तैयारी वह अभी से करने लगी हैं. यानि रैली बनारस में थी, पर दीदी की नज़र दिल्ली की कुर्सी पर टिकी थी.
दीदी की तरह एक और नेता भी जिद्दी
दीदी की तरह ही एक और जिद्दी नेता हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ नयी दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में पहुंच गये. दीक्षित की हार हुयी और दिल्ली से कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा ऐसे साफ़ हुआ कि दिल्ली विधानसभा में पिछले दो चुनावों में कांग्रेस पार्टी का एक भी विधायक चुन कर नहीं आया है. केजरीवाल को भी ममता बनर्जी की तरह प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश है, तो 2014 में वह मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने बनारस पहुंच गए पर उन्हें यहां ऐसी करारी हार मिली की वह बनारस का रास्ता ही भूल गए.
वैसे बनारस की ही तरह कोलकाता से भी होते हुए गंगा नदी गुजरती है. गंगा तट पर एक प्रसिद्ध और प्राचीन काली मंदिर है. उस मंदिर और उसके आसपास कितनी गंदगी है, वह किसी से छुपी नहीं है. दीदी ने शायद देखा और अनुभव किया हो कि किस तरह मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को बनवाया, कैसे मंदिर और गंगा नदी के बीच के अतिक्रमण को हटाया और बनारस को सुन्दर बनाया. दीदी बनारस में अगर नंदीग्राम का अनुभव एक बार फिर से करना चाहती हों तो यह अलग बात है, वर्ना उन्हें भवानीपुर जैसी ही कोई सुरक्षित सीट अभी से ढूंढ लेनी चाहिए. उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि मोदी को सबक सिखाने की जगह वह मोदी से सबक सीख लें. जिस तरह मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण करवाया, अगर ममता बनर्जी कोलकाता के काली मंदिर कॉरिडोर का निर्माण करवाएं, मंदिर से गंगा तक के सभी अतिक्रम को हटाएं तो शायद उनका ज्यादा भला होगा और काली मां के आशीर्वाद से ही उनका भारत के प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा हो सकता है, सिर्फ खेला होबे नारे से नहीं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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